Land Exchange In UP: यूपी में सार्वजनिक उपयोग की जमीन की अदला-बदली व श्रेणी परिवर्तन का अधिकार मंडलायुक्त को
उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक उपयोग की जमीन की अदला-बदली व श्रेणी परिवर्तन के लिए अब सरकारी आफिसों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। अब मंडलायुक्त सार्वजनिक उपयोग की जमीन की अदला-बदली व श्रेणी परिवर्तन कर सकेंगे। परियोजनाओं में विलंब रोकने और कारोबारी सुगमता के लिए सरकार ने यह निर्णय लिया है। वहीं खेती की जमीन को गैर कृषिक घोषित कराने के लिए न्यायालय शुल्क भी माफ होगा।
By Jagran NewsEdited By: Prabhapunj MishraUpdated: Wed, 02 Aug 2023 03:09 PM (IST)
लखनऊ, राज्य ब्यूरो। राज्य सरकार ने परियोजनाओं के क्रियान्वयन में होने वाले विलंब को रोकने तथा उद्यमियों व व्यवसायियों को कारोबार करने में सहूलियत देने के लिहाज से सार्वजनिक उपयोगिता की भूमि की अदला-बदली और श्रेणी परिवर्तन का अधिकार मंडलायुक्त को देने का निर्णय किया है। अभी तक यह अधिकार शासन को था।
मंगलवार को हुई कैबिनेट बैठक में राजस्व विभाग के इस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी गई। अभी तक परियोजनाओं के लिए सार्वजनिक उपयोगिता की भूमि की अदला-बदली और श्रेणी परिवर्तन के प्रस्ताव शासन के पास आते थे। इससे परियोजनाओं में विलंब होता था। इसलिए शासन ने यह अधिकार मंडलायुक्त को देने का निर्णय किया है।
कैबिनेट ने खेती की जमीन को गैर कृषिक घोषित कराने के लिए किए जाने वाले आवेदन के लिए निर्धारित न्यायालय शुल्क को माफ करने का भी निर्णय किया है। न्यायालय शुल्क जमीन के सर्किल रेट का एक प्रतिशत था। इसके अलावा 12.5 एकड़ से अधिक भूमि खरीदने के लिए जो सूचनाएं मांगी जाती थीं, उनका भी सरलीकरण करने का निर्णय किया है। पहले इसके लिए जमीन का गाटा नंबर आदि जानकारियां मांगी जाती थीं लेकिन अब तहसील और गांव का नाम ही बताना होगा।
शौर भूमि को लेकर दूर होगी मुआवजे की कठिनाई
कैबिनेट ने प्रदेश में जहां कहीं भी शौर (क्षारीय) भूमि खतौनी में अंकित है, उसे ऊसर की तरह अनारक्षित/सामान्य श्रेणी की जमीन माने जाने के लिए 18 मई 2016 को जारी शासनादेश को रद करने का भी निर्णय किया है। शौर भूमि पश्चिमी उप्र में पाई जाने वाली ऊसर प्रकार की भूमि है। इस आदेश की विसंगति के कारण राजस्व अभिलेखों में शौर भूमि के संक्रमणीय भूमिधर के रूप में दर्ज आवंटियों और उनके उत्तराधिकारियों को नोएडा अंतरराष्ट्रीय ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट के निर्माण के लिए अर्जित की गई भूमि के प्रतिकर का भुगतान संभव नहीं हो पा रहा था। इस व्यावहारिक कठिनाई को दूर करने के लिए सरकार ने यह निर्णय किया है।
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