Election Results 2024: मायावती की एक ‘जिद’ से… दशक बाद फिर ‘हाथी’ चारों खाने चित, बसपा को जनाधार में भी हुआ नुकसान
10 सांसदों वाली बसपा से वंचितों के दूर जाने के साथ ही मुस्लिम समाज के भी मायावती संग खड़ा न होने से पार्टी न केवल शून्य पर सिमट कर रह गई है बल्कि उसका जनाधार भी 10 प्रतिशत से कहीं अधिक खिसक गया है। मायावती इस बार तमाम अटकलों को अंतत खारिज करते हुए न एनडीए और न ही विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए के साथ रहीं। इससे उन्हें भारी नुकसान हुआ।
अजय जायसवाल, लखनऊ। लोकसभा चुनाव के मैदान में अकेले ही ताल ठोकना एक बार फिर बसपा को भारी पड़ा। गरीब वंचित-शोषित समाज के मतदाताओं पर मोदी-योगी के प्रभाव और सपा-कांग्रेस गठबंधन ने बसपा प्रमुख मायावती को बड़ा झटका दिया है।
10 सांसदों वाली बसपा से वंचितों के दूर जाने के साथ ही मुस्लिम समाज के भी मायावती संग खड़ा न होने से पार्टी न केवल शून्य पर सिमट कर रह गई है, बल्कि उसका जनाधार भी 10 प्रतिशत से कहीं अधिक खिसक गया है।
पांच वर्ष पहले सपा-रालोद से गठबंधन करने वाली मायावती इस बार तमाम अटकलों को अंतत: खारिज करते हुए न एनडीए और न ही विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए के साथ रहीं। इससे उन्हें भारी नुकसान हुआ। 80 में से 79 सीटों (बरेली सीट पर पर्चा खारिज) पर चुनाव लड़ी बसपा एक भी सीट जीतना तो दूर, दूसरे नंबर पर भी नहीं रही।
मुस्लिम समाज ने भी नहीं दिया साथ
मोदी सरकार की मुफ्त राशन-मकान, सम्मान निधि सहित दूसरी गरीब कल्याण की योजनाओं से प्रभावित वंचित समाज का कोर वोट बैंक पहले ही बसपा से दूर जाते दिख रहा था, इस बार मुस्लिम समाज भी उसके साथ बिल्कुल खड़ा नहीं दिखाई दिया।
इस बार गैर जाटव के साथ ही गैर यादव पिछड़ी जातियों ने भी ‘हाथी’ का पूरी तरह से साथ छोड़ दूसरे दलों का ही बटन दबाया। यही कारण रहा कि बसपा किसी भी लोकसभा सीट पर त्रिकोणीय लड़ाई में भी नहीं दिखाई दी।
बसपा को जबरदस्त नुकसान के पीछे डेढ़ दशक से सत्ता से बाहर रहने और मायावती के फील्ड में सक्रिय न दिखाई देने को भी बड़ा कारण माना जा रहा है। पार्टी के नेता इस बार गठबंधन में शामिल होने के पक्ष में थे, लेकिन मायावती उन्हें यही समझाती रहीं कि कांग्रेस या सपा से गठबंधन करने पर पार्टी को फायदे की बजाय नुकसान ही होता है।
इससे पार्टी के जनाधार वाले नेताओं के साथ ही दो सांसद सपा में व एक-एक भाजपा-कांग्रेस में चले गए। सिर्फ दो सांसद गिरीश चंद्र व श्याम सिंह यादव ही फिर बसपा से मैदान में उतरे। अकेले चुनाव लड़ने से जीत का समीकरण न दिखाई देने पर बसपा को इस बार कई सीटों पर दमदार प्रत्याशी तक नहीं मिले। प्रदेश में 28 सभाओं सहित देश में 35 रैलियां करने वाली मायावती अपनी सभाओं में यही बताने की कोशिश करती रहीं कि मुफ्त राशन देकर भाजपा सरकार कोई उपकार नहीं कर रही है, लेकिन इसका असर भी बसपा के कोर वोट बैंक पर नहीं पड़ा। वह बसपा ही नहीं भाजपा से भी दूरी बनाकर संविधान को बचाने के लिए सपा-कांग्रेस गठबंधन के साथ ही खड़ा हो गया।
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