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Earth Day 2023: धरती से हर दिन खींच रहे 140 करोड़ लीटर पानी, कट जाते हैं तीन सौ से अधिक पेड़,

Earth Day 2023 आज पृथ्वी दिवस है। इस मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं क‍ि हर रोज धरती से 140 करोड़ लीटर पानी लेने के कारण भूजल के स्ट्रैटा में खाई नुमा संरचना विकसित हो गई है। ये भूगर्भीय घटनाओं को लेकर खतरे की घंटी है।

By Jagran NewsEdited By: Prabhapunj MishraUpdated: Sat, 22 Apr 2023 02:54 PM (IST)
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Earth Day 2023: आज पृथ्वी दिवस है
लखनऊ, [अजय श्रीवास्तव]। शहर में हर दिन प्रतिवर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में 30 से 40 लाख लीटर भूजल का दोहन हो रहा है। यह दोहन सौ मीटर से अधिक गहराई में हो रहा है और हर दिन करीब 140 करोड़ लीटर धरती की गगरी को खाली किया जा रहा है। इससे भू-गर्भ में मौजूद एक्यूफर्स (भूजल धारक स्ट्रेटा) में बदलाव आ रहा है और वह सूखती जा रहा है। बिना पानी के एक्यूफर्स में मौजूद बालू के भुरभुरी होने की संभावना बढ़ती जा रही है। इसका परिणाम यह है कि भूजल के स्ट्रैटा में खाई नुमा संरचना विकसित हो गई है, जो भूगर्भीय घटनाओं को लेकर खतरे की घंटी है।

अमीनाबाद क्षेत्र समेत आसपास के इलाकों में 1980 में करीब सात से आठ मीटर गहराई पर भूजल था, जो वर्तमान में तीस मीटर से अधिक गहराई में चला गया है। महानगर, अलीगंज, इंदिरानगर, हजरतगंज, लालबाग, आलमबाग, कैंट और गोमतीनगर भी डार्क जोन में आने को तैयार है। ऐसी स्थिति में जमीन भी फटने और भूकंप के झटके पडऩे से इंकार नहीं किया जा सकता है। एक तरफ भूजल का दोहन तो दूसरी तरफ से पचास हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल वाले सौ से अधिक तालाब और झीलें पाट दी गई हैं।

लखनऊ में 1400 तालाब थे, जिसमे अधिकांश अपना अस्तित्व खो चुके हैं। 48 प्रतिशत क्षेत्रफल में भूजल का स्तर में 25 मीटर तक नीचे चला गया है। पेड़ लगे और कटते भी रहे हर साल तीन सौ से अधिक पेड़ों को काटा जाता है, ये वे पेड़ होते हैं, जिन्हें काटने की अनुमति वन विभाग देता है। अवैध कटान से भी अधिकांश पेड़ों पर आरी चल जाती है। मलिहाबाद और काकोरी के आम पट्टी क्षेत्र में कंकरीट के जंगल दिखने लगे हैं। वैसे लखनऊ के 2528 वर्गकिलोमीटर क्षेत्रफल के हिसाब से हरित क्षेत्र 33 प्रतिशत होना चाहिए, जो अभी 14 प्रतिशत में ही सिमट गया है।

2021 में 35 लाख, 2022 में 36 लाख पौधे लगाए गए थे और 2023 में भी 36 लाख पौधे लगाए जाने हैं लेकिन कितने बचे यह भी सवाल है। सरकारी अभिलेखों में शहरी क्षेत्र में पचास फीसद और ग्रामीण क्षेत्रों में 70 प्रतिशत पौधे ही जीवित रह पाए हैं।

वायु भी हो जाती है प्रदूषित

तीन साल पहले की बात है, जब हवा में प्रदूषण इस कदर घुल गया था कि लोगों को मुंह पर मास्क लगाना पड़ा था। शहर में चल रहीं अवैध फैक्ट्रियां, कूड़े और पालीथीन को जलाने के साथ ही काला धुआं फेंकते वाहन भी हवा को जहरीली बनाने का काम करते, जो पृथ्वी की सुरक्षा पर हमला बोलने जैसा ही काम करते हैं। भूजल दोहन रोकने की नीति और वर्षा जल बचाने का कड़ाई से पालन कराना होगा।

पेयजल आपूर्ति के लिए नलकूपों के बजाय नदी जल का उपयोग करना चाहिए। 653 स्थानीय निकायों में से 622 में पेयजल की आपूर्ति पूरी तरह से भूजल पर ही निर्भर है, जो भविष्य के लिए खतरे का संकेत है।

आरएस सिन्हा, भूगर्भ जल विभाग के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक

पचास हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल वाले सौ से अधिक तालाब और झीलों को पाट दिया गया है। 1400 तालाबों में से अधिकांश पर आवासीय योजनाएं बन गई हैं। मौजूदा समय बची झील और तालाबों को बचाना होगा।

वेंकटेश दत्ता, प्रोफेसर बाबा साहेब डा. भीम आंबेडकर यूनिवर्सिटी

पिछले साल भी 36 लाख पौधे लगाए गए थे और इस साल भी इतने ही पौधे लगाए जाने हैं। बक्शी का तालाब और मोहनलालगंज में हरित पट्टी बनाई जानी है। पौधे लगाने के साथ हर किसी को उसे बचाने की पहल करनी चाहिए।

डा. रवि कुमार सिंह, प्रभागीय वनाधिकारी लखनऊ अवध

कौन कितना पानी दोहन कर रहा

  • लखनऊ जलकल 350 एमएलडी (मिलीयन लीटर डेली)रेलवे व अन्य सरकारी विभाग 145 एमएलडी
  • मल्टीलेवल अपार्टमेंट और आवासीय कालोनियां 315 एमएलडी
  • होटल, अस्पताल, माल व अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठान 130 एमएलडी
  • टैंकर, बोतल यूनिट, वाटर पार्क, स्वीमिंग पुल 38 एमएलडी
  • औद्योगिकी क्षेत्र 178 एमएलडी निर्माण कार्य 24 एमएलडी
  • पार्क व अन्य में 10एमएलडी
  • सबमर्सिबल पंप 195 एमएलडी (2020 की सर्वे रिपोर्ट ग्राउंड वाटर एक्शन ग्रुप)
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