Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Famous Temples In Bahraich: युधिष्ठिर ने वनवास में स्थापित किया था शिवलिंग, नाम पड़ा सिद्धनाथ

Famous Temples In Bahraich उत्‍तर प्रदेश के बहराइच ज‍िले की पौराणिक पहचान सिद्धनाथ महादेव से है। मान्‍यता है क‍ि सम्राट युधिष्ठिर जब वनवास के लिए निकले तो उन्होंने हिमालय की तलहटी में जिस शिवलिंग की स्थापना की वह कालांतर में सिद्धनाथ कहलाया।

By Anurag GuptaEdited By: Updated: Wed, 22 Jun 2022 09:06 AM (IST)
Hero Image
Famous Temples In Bahraich: द्वापर काल से चली आ रही कमल पुष्प से अभिषेक की परंपरा।

बहराइच, [मुकेश पांडेय]। Famous Temples In Bahraich: द्वापर युग में ब्रह्मा की तपोभूमि रही ब्रह्माइच अब बहराइच कहलाती है। इस नगरी की पौराणिक पहचान सिद्धनाथ महादेव से है। सिद्धनाथ यानी कि हर मनोकामना पूर्ण करने वाले महादेव। हृदय के अंतस्तल से मनोकामना लेकर आने वाले श्रद्धालु यहां से निराश नहीं लौटते, बशर्ते मनोकामना सद्कार्य की हो। मान्यता है कि इंद्रप्रस्थ के सम्राट युधिष्ठिर जब जुए में शकुनि की कुटिल चालों के चलते दुर्योधन से अपना राज-पाट हार गए और वनवास के लिए निकले तो उन्होंने हिमालय की तलहटी को चुना था। इस क्षेत्र में पांडवों ने कई शिवलिंग स्थापित किए। इनमें घने जंगल में जिस शिवलिंग की स्थापना स्वयं युधिष्ठिर ने की थी वह कालांतर में  सिद्धनाथ कहलाया।

वनवास काल में लगातार कमल पुष्पों से पूजन कर अपने खोए हुए वैभव को वापस दिलाने की कामना की। कारण स्पष्ट है कि अज्ञातवास की सफलता के बाद कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा और भगवान शिव के आशीर्वाद से युधिष्ठिर को विजय मिली थी।

यहां तभी से यहां भगवान शिव का अभिषेक कमल पुष्पों से करने की परंपरा चली आ रही हैं। नदियों और झीलों से आच्छादित बहराइच में अब भी कमल पुष्पों की बहुतायत है। स्वेत कमल हो या लाल! पहले यहां नीले रंग के कमल भी पाए जाते थे, जो महारानी द्रौपदी को बेहद पसंद थे। मंदिर परिसर से 10-12 किलोमीटर की परिधि में तकरीबन आधा दर्जन ऐसी झीलें अब भी हैं, जहां कमल पुष्प अब भी उपलब्ध हैं।

शहर के मध्य ब्राह्मणीपुरा मोहल्ले में स्थित सिद्धनाथ मंदिर बस स्टेशन से महज एक किलोमीटर एवं रेलवे स्टेशन से दो किलोमीटर की दूरी पर है। यहां पैदल रिक्शा अथवा निजी साधन से आया जा सकता है। यहां का प्रबंधन श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा काशी के जिम्मे है। यहां के महंत रवि गिरी जी महाराज बताते हैं कि पांच हजार वर्ष पुराने द्वापर कालीन इस मंदिर का समय-समय पर जीर्णोद्धार होता रहा। वर्तमान समय में मंदिर का विस्तारीकरण कराया जा रहा है।

कजरी तीज पर होता है खास मेला : यूं तो यह ऐसा मंदिर है, जहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु सिद्धनाथ का दर्शन करने आते हैं, लेकिन कजरी तीज एवं शिवरात्रि पर दर्शन-पूजन के लिए बहराइच जिले के अलावा पड़ोसी जिलों और नेपाल के श्रद्धालु भी आते हैं। यहां कृष्ण जन्माष्टमी, गुरुपूर्णिमा, अन्नकूट जैसे उत्सव भी परंपरागत ढंग से मनाए जाते हैं। यहां प्रातः काल मंगला आरती, दोपहर भोग आरती, रात्रि में शयन आरती और सायंकाल भोलेनाथ के श्रंगार की विशेष परंपरा है।

शिव के अलावा भी हैं कई देवी-देवताओं के विग्रह : सिद्धनाथ के अलावा मां पार्वती, मां दुर्गा मां काली, भैरव बाबा, गौरीशंकर, तिरुपति बालाजी, शनिदेव हनुमानजी, सूर्यनारायण, गणपति, नंदीश्वर, राधा-कृष्ण के भी विग्रह स्थापित है। इन्हें भी श्रद्धालु उसी श्रद्धा भाव से नमन करते हैं, जिस भाव से वह भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं।

आपके शहर की तथ्यपूर्ण खबरें अब आपके मोबाइल पर