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डिंपल-अखिलेश समेत यादव परिवार के पांच दिग्गज चुनावी मैदान में, इन सीटों पर जबरदस्त मुकाबला; दांव पर लगी साख

Lok Sabha Election उत्तर प्रदेश की राजनीति में सैफई परिवार अहम किरदार निभाता आ रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए इस बार लोकसभा चुनाव में बहू डिंपल बेटे व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अक्षय आदित्य और धर्मेंद्र यादव चुनावी मैदान में हैं। राजनीतिक पंडित कयास लगा रहे हैं कि इस बार तीसरे चरण से उठने वाली बयार का असर पूर्वांचल तक पड़ेगा।

By Jagran News Edited By: Abhishek Pandey Updated: Mon, 06 May 2024 11:26 AM (IST)
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डिंपल-अखिलेश समेत यादव परिवार के पांच दिग्गज चुनावी मैदान में, इन सीटों पर जबरदस्त मुकाबला; दांव पर लगी साख
राजनीति के दंगल में धोबी पछाड़ से विपक्षियों को चकमा देने वाले पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की चुनावी विरासत नए दौर में कड़ी परीक्षा देने जा रही है। उनकी बहू डिंपल यादव सीट का भावनात्मक मिजाज समझते हुए अपने ससुर के नाम पर वोट मांग रही हैं, वहीं मुलायम के दो भतीजे भी समाजवादी राजनीति की चुनावी प्रयोगशाला में उतर गए हैं।

सैफई परिवार की चुनावी कसरत पर राजनीतिक पंडितों की नजरें हैं। तीसरे चरण से उठने वाली चुनावी बयार का असर पूर्वांचल तक पड़ेगा। विशेष संवाददाता शोभित श्रीवास्तव की रिपोर्ट...

समाजवाद के वैचारिक धरातल पर सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला खड़ाकर सत्ता तक पहुंचने वाले मुलायम सिंह 2014 और 2019 की मोदी लहर में भी चट्टान की तरह खड़े रहे। पहली बार यादव परिवार मुलायम के बिना लोकसभा चुनाव में उतर रहा है।

मुलायम की मैनपुरी में उनकी बहू व सपा मुखिया अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव मैदान में हैं। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद वर्ष 2022 में हुए उपचुनाव में डिंपल ने सहानुभूति की लहर पर सवार होकर बड़ी जीत दर्ज की थी।

मैनपुरी में वोटों की गणित

डिंपल इस बार भी मुलायम के नाम पर मतदाताओं से कनेक्ट बढ़ा रही हैं। इस लोकसभा सीट पर सर्वाधिक 22 प्रतिशत यादव, 14 प्रतिशत शाक्य और 11 प्रतिशत क्षत्रिय मतदाता हैं। लोधी और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या क्रमश: सात एवं चार प्रतिशत है।

यही वजह है कि जातीय समीकरणों की ठोस सड़क पर (1996, 1998, 1999, 2004, 2009, 2014 व 2019) व तीन उपचुनाव (2004, 2014 व 2022) में साइकिल पूरी रफ्तार से दौड़ी। इस बार भाजपा ने यहां मुलायम सिंह की नर्सरी से निकले व अब प्रदेश सरकार में पर्यटन व संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह को उतारा है।

वहीं, भगवा खेमे ने यादव मतदाताओं को साधने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव को प्रचार के रथ पर चढ़ा दिया है। बसपा ने इस सीट पर अपना प्रत्याशी बदलकर शिव प्रसाद यादव को उतारते हुए सपा की चुनौती बढ़ाने का प्रयास किया है।

बदायूं बनी नाक का सवाल

समाजवादी पार्टी ने बदायूं पर मुलायम सिंह यादव के भतीजे और शिवपाल सिंह यादव के पुत्र आदित्य यादव को उतारा है। यहां पार्टी पहले असमंजस में रही, जहां तीन बार प्रत्याशी बदला गया। पहले पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव, फिर शिवपाल यादव और अब आदित्य को दंगल में उतारा गया।

बेटे का चुनाव शिवपाल के लिए भी नाक का सवाल बन गया है। वह लगातार प्रचार मैदान में हैं। यहां 21 प्रतिशत यादव व 19 प्रतिशत मुस्लिम हैं। कुशवाहा, मौर्य, शाक्य भी 10 प्रतिशत हैं। दलित मतदाता यहां 12.50 प्रतिशत, जबकि ब्राह्मण आठ और वैश्य एवं क्षत्रिय मतदाता सात-सात प्रतिशत हैं।

वर्ष 2014 में मोदी की प्रचंड लहर के बावजूद सपा के धर्मेंद्र यादव ने यह गढ़ बचा लिया था, लेकिन 2019 में भाजपा ने अपनी धारदार रणनीति से सपा का तंबू उखाड़ दिया। यह सीट 1996 से 2014 तक लगातार सपा के कब्जे में रही है।

वहीं, भाजपा ने मौजूदा सांसद संघमित्रा मौर्य का टिकट काटकर दुर्विजय शाक्य को प्रत्याशी बनाया है। बसपा ने मुस्लिम खान को उतारकर मुस्लिम कार्ड खेला है। यदि मुस्लिमों के वोट बंटते हैं तो सपा को नुकसान हो सकता है।

सपा ने सैफई परिवार के बाहर किसी भी यादव को मैदान में नहीं उतारा

परिवारवाद को लेकर विरोधियों के निशाने पर रही सपा ने विचलित हुए बिना अपने परिवार के पांच सदस्यों को मैदान में उतारा है। पार्टी 62 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। अभी तक 59 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस बार पांच यादवों को टिकट दिया है और ये सभी सैफई परिवार के महारथी हैं। यह पहला लोकसभा चुनाव है जब सपा ने सैफई परिवार के बाहर किसी भी यादव को चुनाव नहीं लड़ाया। सपा ने मैनपुरी से डिंपल यादव, कन्नौज से अखिलेश यादव, आजमगढ़ से धर्मेंद्र यादव, फिरोजाबाद से अक्षय यादव व बदायूं से आदित्य यादव को टिकट दिया है।

संभल में किसका बल

सपा के लिए तीसरे चरण में संभल सीट पर भी कड़ी परीक्षा होगी। मुलायम सिंह यादव ने संभल से 1998 व 1999 का चुनाव जीता। वर्ष 2004 में मुलायम ने यहां से प्रो. रामगोपाल यादव को चुनाव लड़ाया, और वो जीते भी।

सपा ने सांसद शफीकुर्रहमान बर्क के निधन के बाद उनके पोते व कुंदरकी के सपा विधायक जियाउर्रहमान बर्क को चुनावी मैदान में उतारा है। 48 प्रतिशत मुस्लिम व 10 प्रतिशत यादव मतदाताओं वाली इस सीट पर भाजपा ने 2014 में पहली बार कमल खिलाया, लेकिन 2019 में फिर सपा जीत गई।

अब भाजपा से परमेश्वर लाल सैनी और बसपा से सौलत अली चुनाव मैदान में हैं। भाजपा ने मुस्लिम मतों में बिखराव के बीच अपनी जीत का नक्शा तैयार किया है, जबकि सपा दिग्गज नेता बर्क के निधन के बाद उपजी सहानुभूति से जीत का पहाड़ चढ़ने की रणनीति पर काम कर रही है।

क्या फिरोजाबाद में मिलेगा इस बार परिवार की एकता का लाभ

मुलायम सिंह यादव के दूसरे भतीजे व पूर्व सांसद अक्षय यादव फिरोजाबाद से मैदान में हैं। वह सपा के प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव के बेटे हैं। सैफई परिवार की एकता का लाभ फिरोजाबाद सीट पर मिल सकता है।

अक्षय वर्ष 2014 की मोदी लहर के बावजूद यहां से चुनाव जीते थे, किंतु 2019 में वह चाचा शिवपाल यादव के कारण भाजपा से हार गए। उस समय सैफई परिवार में झगड़े के कारण शिवपाल ने अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली थी। उन्होंने फिरोजाबाद से चुनाव लड़कर 91,869 वोट प्राप्त किए थे।

अब शिवपाल अखिलेश के साथ हैं। इस बार अक्षय का मुकाबला भाजपा के ठाकुर विश्वदीप सिंह से है। भाजपा ने वर्तमान सांसद चंद्रसेन जादौन का टिकट काटकर ठाकुर विश्वदीप को प्रत्याशी बनाया है।

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