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मुख्तार को ‘गरीबों का मसीहा’ कहे जाने पर पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने दी प्रतिक्रिया- मंशा को समझना भी बेहद जरूरी

माफिया मुख्तार अंसारी। यह वह नाम है जो दशकों तक आतंक का पर्याय रहा और जिसका विवादों से रिश्ता कभी नहीं छूटा। अब मुख्तार की मृत्यु को लेकर सवाल और उसे दी जा रही उपाधियों को लेकर आपत्तियां दोनों हैं। एक ओर मुख्तार समेत अन्य माफिया पर कसे कानूनी शिकंजे की कहानी है तो दूसरी ओर बाहुबल के बलबूते माननीय बनने के किस्से भी।

By Alok Mishra Edited By: Shivam Yadav Updated: Tue, 02 Apr 2024 11:30 PM (IST)
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मुख्तार को ‘गरीबों का मसीहा’ कहे जाने पर पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने दी प्रतिक्रिया।
राज्य ब्यूरो, लखनऊ। माफिया मुख्तार अंसारी। यह वह नाम है, जो दशकों तक आतंक का पर्याय रहा और जिसका विवादों से रिश्ता कभी नहीं छूटा। अब मुख्तार की मृत्यु को लेकर सवाल और उसे दी जा रही उपाधियों को लेकर आपत्तियां दोनों हैं। एक ओर मुख्तार समेत अन्य माफिया पर कसे कानूनी शिकंजे की कहानी है तो दूसरी ओर बाहुबल के बलबूते माननीय बनने के किस्से भी।

पूर्व डीजीपी डॉ. विक्रम सिंह मुख्तार का नाम आते ही बड़ी बेबाकी से कहते हैं कि वह एक दुर्दांत अपराधी था। वह मुख्तार को ‘गरीबों का मसीहा’ व ‘रॉबिनहुड’ कहे जाने पर कड़ी आपत्ति भी जताते हैं। कहते हैं, मुख्तार की बांदा मेडिकल कॉलेज में हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई। उसके परिवार वालों का आरोप है कि मुख्तार को स्लो प्वाइजन दिया गया था, जिससे मौत हुई। इसकी न्यायिक जांच प्रारंभ हो चुकी है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप जांच हो रही है।

यह चिंता की बात है कि गैंगस्टर मुख्तार के अंतिम संस्कार व उसके घर राजनेता इकट्ठा हुए और उसे रॉबिनहुड, गरीबों का हमदर्द व ऐसी अन्य उपाधियां दी गई। यह दर्शाता है कि राजनीति, तुष्टिकरण किस निचले स्तर तक तक जा चुका है। 

सवाल उठाते हैं कि इनमें शामिल लोगों ने भारत के लोकप्रिय पूर्व राष्ट्रपति भारतरत्न एपीजे अब्दुल कलाम के अंतिम संस्कार में उनकी प्रतिभा के लिए दो शब्द क्यों नहीं कहे थे। 

स्पष्ट है कि कलाम के जनाजे में जाने में कोई राजनीतिक लाभ नहीं था, बल्कि मुख्तार के जनाजे में जाने से राजनीतिक लाभ और स्वार्थ सिद्धि दिखाई पड़ती है। ऐसी परिस्थितियों में राजनीतिक लाभ उठाने वाले तत्वों को चिन्हित कर उनके बारे में निर्णय किए जाने का सवाल भी उठाते हैं।

मुख्तार अपने धनबल और बाहुबल के चलते कानून की गिरफ्त से बचता रहा। उसके विरुद्ध 66 जघन्य अपराध पंजीकृत थे। सिंह कहते हैं कि मुख्तार के विरुद्ध जब पहला मुकदमा दर्ज हुआ, तब उसकी उम्र 15 वर्ष थी। वह बाहुबल के बलबूते पांच बार विधायक बना। तीन बार जेल में रहकर चुनाव जीता। 

राजनीतिक संरक्षण ने ही उसे एक संगठित अपराधी और माफिया बनाया। वर्ष 2004 में ईमानदार पुलिस उपाधीक्षक शैलेंद्र सिंह को मुख्तार से प्रताड़ित होकर ही त्यागपत्र देना पड़ा था। माफिया के विरुद्ध प्रभावी पैरवी को वह वर्तमान सरकार की बड़ी उपलब्धि के रूप में देखते हैं। 

कहते हैं, योगी सरकार आने के बाद जिस तरह प्रदेश के चिन्हित माफिया पर नकेल कसी गई, ठीक उसी तरह उनमें शामिल मुख्तार पर भी शिकंजा कसा। उसकी 586 करोड़ रुपये की संपति जब्त की गईं। 

आठ मामलों में मुख्तार को न्यायालय द्वारा सजा भी सुनाई गई, जिनमें दो मामलों में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। कुछ लोग यह आरोप भी लगाते हैं कि केवल जाति विशेष के अपराधियों पर कार्रवाई हो रही है। आंकड़े गवाह है कि वास्तव में बिना जाति, धर्म, संप्रदाय देखे कानून की परिधि में कार्रवाई हुई है।

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