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GI Tagging: पनियाला के लिए संजीवनी साबित होगी जीआइ टैगिंग कराने की योगी आदित्यनाथ सरकार की पहल

Geographical indication Tagging of Fruit Paniyala योगी आदित्यनाथ सरकार ने जिन उत्पादों को जीआई पंजीकरण के आवेदन के लिए चुना है उनमें गोरखपुर का पनियाला भी है। कुछ खट्टा कुछ मीठा और थोड़ा सा कसैले स्वाद वाले इस फल को देखते ही नाम के अनुरूप मुंह में पानी आता है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Updated: Sat, 19 Nov 2022 05:01 PM (IST)
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Effort of Geographical indication Tagging of Fruit Paniyala
लखनऊ, जेएनएन। Geographical indication (GI) Tagging of Fruit Paniyala : प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार (Yogi Adityanath Government) वन डिस्ट्रिकट वन प्रोडक्ट (ODOP) से विश्व भर में शोहरत पाने के बाद अब जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) जीआइ के दम प्रदेश के कई उत्पादों को संजीवनी दिलाने के प्रयास में लगी है। पनियाला को जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) दिलाने की योगी आदित्यनाथ सरकार की पहल औषधीय गुणों से भरपूर इस फल के लिए संजीवनी साबित होगी।

जियोग्राफिकल इंडिकेशन दिलाने की सरकार की पहल से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कर्मस्थली गोरखपुर के इस फल की पूछ बढ़ जाएगी। सरकार की इसकी ब्रांडिंग करा देने से भविष्य में यह भी टेरोकोटा की तरह पनियाला भी गोरखपुर का बड़ा ब्रांड बन सकता।

दर्जन भर जिलों के लाखों किसानों को मिलेगा लाभ

योगी आदित्यनाथ सरकार पनियाला को जीआइ दिलाने की पहल सफल रही तो इसका लाभ न केवल गोरखपुर के किसानों को बल्कि देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, बहराइच, गोंडा और श्रावस्ती के लाखों किसानों के साथ बागवानों को मिलेगा। यह सभी जिले एक एग्रोक्लाईमेट जोन (कृषि जलवायु क्षेत्र) में आते हैं। इन जिलों में जो भी उत्पाद होगा उसकी खूबियां भी एक जैसी होंगी।

योगी आदित्यनाथ सरकार ने अब जिन उत्पादों को जीआई पंजीकरण के आवेदन के लिए चुना है उनमें गोरखपुर का पनियाला भी है। कुछ खट्टा, कुछ मीठा और थोड़ा सा कसैले स्वाद वाले इस फल को देखते ही नाम के अनुरूप मुंह में पानी आता है। काफी हद तक जामुनी रंग का यह फल जामुन से कुछ बड़ा और आकर में गोल होता है।

लुप्त हो रहे वृक्ष को संजोने की पहल

यूपी स्टेट बायोडायवरसिटी बोर्ड की ई पत्रिका के अनुसार मुकम्मल तौर पर यह ज्ञात नहीं कि यह कहां का वृक्ष है, लेकिन बहुत संभावना है की यह मूल रूप से उत्तर प्रदेश का ही है। पनियाला के पेड़ चार-पांच दशक पहले तक गोरखपुर में बड़ी संख्या में थे, पर अब यह लगभग लुप्तप्राय हैं।

गोरखपुर के वरिष्ठ चिकित्सक डॉक्टर आलोक गुप्ता के मुताबिक पनियाला गोरखपुर का विशिष्ट फल है। शारदीय नवरात्रिके आस पास यह बाजार मे आता है। सीधे खाएं तो इसका स्वाद मीठा एवं कसैला होता है। हथेली या उंगलियों के बीच धीरे-धीरे घुलाने के बाद खाएं तो एक दम मीठा।

जड़ से लेकर फल में एंटीबैक्टीरियल गुण

पनियाला को लेकर 2011 में एक हुए शोध के अनुसार इसके पत्ते, छाल, जड़ों एवं फलों में एंटी बैक्टिरियल प्रापर्टी होती है। इसके नाते पेट के कई रोगों में इनसे लाभ होता है। पेट के कई रोगों, दांतों एवं मसूढ़ों में दर्द, इनसे खून आने, कफ, निमोनिया और खरास आदि में भी इसका प्रयोग किया जाता रहा है। इस फल को लीवर के रोगों में भी उपयोगी पाया गया है। फल को जैम, जेली और जूस के रूप में संरक्षित कर लंबे समय तक रखा जा सकता है। लकड़ी जलावन और कृषि कार्यो के लिए उपयोगी है।

किसान और बागवान को कर देगा मालामाल

पनियाला तो परंपरागत खेती से अधिक लाभ देता है। कुछ वर्ष पहले करमहिया गांव सभा के करमहा गांव में पारस निषाद के घर यूपी स्टेट बायोडयवरसिटी बोर्ड के आर दूबे गये थे। पारस के पास पनियाला के नौ पेड़ थे। अक्टूबर में आने वाले फल के दाम उस समय प्रति किग्रा 60-90 रुपये थे। उस समय प्रति पेड़ से करीब 3300 रुपये आय होती थी। अब तो यह दाम दोगुने या इससे अधिक होंगे। इसी कारण आय भी काफी अच्छी बढ़ जाएगी। खास बात यह है कि वृक्षों की ऊंचाई करीब नौ मीटर होती है। लिहाजा इसका रखरखाव भी आसान होता है।

जीआइ टैग का लाभ

जीआइ टैग किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले कृषि उत्पाद को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है। जीआइ टैग से कृषि उत्पादों के अनाधिकृत प्रयोग पर अंकुश लगाया जा सकता है। यह किसी भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित होने वाले कृषि उत्पादों का महत्व बढ़ा देता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में जीआइ टैग को एक ट्रेडमार्क के रूप में देखा जाता है। इससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है, इसके साथ ही स्थानीय आमदनी भी बढ़ती है तथा विशिष्ट कृषि उत्पादों को पहचान कर उनका भारत के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात और प्रचार प्रसार करने में आसानी होती है। 

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