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Ground Report Kaiserganj: यूपी की इस लोकसभा में दांव पर 'दबदबा', मैदान में सीधे भले न हों, मगर समीकरण में बृजभूषण सिंह की बड़ी भूमिका

Ground Report Kaiserganj भगवान श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या से सटी कैसरगंज लोकसभा सीट का चुनावी पारा यूं तो सांसद बृजभूषण की उम्मीदवारी को लेकर गहराए रहस्य के साथ ही गर्म था। अब जबकि उनके बेटे करण भूषण को भाजपा से टिकट मिल गया है तो बहुत कुछ साफ हो गया है। राजनीतिक जानकार कह रहे हैं- भले ही बेटा मैदान में है मगर लड़ तो बृजभूषण ही रहे हैं।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Tue, 07 May 2024 11:35 AM (IST)
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मैदान में सीधे भले न हों, मगर चुनावी समीकरण में बृजभूषण सिंह की बड़ी भूमिका
 अंतिम समय तक प्रत्याशी चयन को लेकर वीआइपी सीट रायबरेली और अमेठी के साथ ही कैसरगंज लोकसभा सीट भी देशभर में चर्चा का विषय बनी रही। सबकी दृष्टि थी कि विवादों से घिरे सांसद बृजभूषण सिंह पर भाजपा क्या फिर भरोसा जताएगी या कोई और मैदान में आएगा ?

दबदबा तो है...अक्सर इन शब्दों से अपने अस्तित्व को मजबूत करते रहने वाले बृजभूषण का प्रभाव ही माना जाएगा कि टिकट कहीं और नहीं गया, उनके घर में ही आया, उनके छोटे पुत्र करण भूषण के लिए। अब इस चर्चित सीट पर मैदान में खड़े विरोधियों से मुकाबले में अब दबदबा दांव पर है। राजनीतिक परिदृश्य पर रमन मिश्र की रिपोर्ट...

भगवान श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या से सटी कैसरगंज लोकसभा सीट का चुनावी पारा यूं तो सांसद बृजभूषण की उम्मीदवारी को लेकर गहराए रहस्य के साथ ही गर्म था। अब जबकि उनके बेटे करण भूषण को भाजपा से टिकट मिल गया है तो बहुत कुछ साफ हो गया है। राजनीतिक जानकार कह रहे हैं- भले ही बेटा मैदान में है, मगर लड़ तो बृजभूषण ही रहे हैं।

चुनावी तैयारी में वह पहले ही कितने आगे निकल चुके हैं, इससे अंदाज लगा लीजिए कि टिकट फाइनल होने से पहले तक बृजभूषण 165 सभाएं कर चुके थे। दूसरी ओर अन्य दल भाजपा के फैसले का इंतजार करते रह गए। बहरहाल, अब यहां चुनावी मैदान सज चुका है। सपा से भगतराम मिश्र मैदान में हैं। वह जातीय समीकरण और सत्ता के विरोध के सहारे मुकाबले को रोचक बनाने की कोशिश में हैं तो कैडर वोट के सहारे बसपा के नरेंद्र पांडेय भी लड़ाई में आने की आस लगाए हुए हैं।

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उम्मीदवारों में किसकी राजनीतिक उम्मीदों को जनता अपने वोटों से सींचेगी, यह जानने हम कैसरगंज की सड़कों पर निकले। आग उगलते सूरज से यहां केवल मौसम में ही तपिश नहीं है बल्कि, जन चर्चाओं में भी चुनावी तपिश का अहसास होता है, लेकिन अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद से आस्था की बयार भी बह रही है।

बालपुर बाजार में दुकानों पर खरीदारों की भीड़ है। सब्जी की दुकान पर महिलाएं खड़ी हैं। चुनाव का माहौल पूछने पर जवाब मिला- कइसन चुनाव भइया?, कोई वोटवा मांगय आवय तब कुछ जान मिलय, वैसे अयोध्या जी मा मंदिर बन गवा ई बहुत अच्छा भवा।’ बीच में ही बात काटते हुए माथे पर टीका लगाए बुजुर्ग बोले- ‘चुनाव कउनव नाही हय, अबकी तव मैदान साफ हय।’ उनका इशारा शायद टिकट वितरण में देरी और भाजपा के उम्मीदवार को लेकर था। यहां लोगों से चुनाव को लेकर संवाद आगे बढ़ा तो बेसहारा पशुओं को लेकर टीस उभरी जरूर, लेकिन कानून व्यवस्था व राम मंदिर निर्माण की चर्चा में सब गुम हो जाता है।

यह इलाका कटराबाजार विधानसभा क्षेत्र में आता है, जहां से भाजपा के बावन सिंह लगातार तीन बार से विधायक हैं। आगे बढ़ने पर तिराहे पर टैक्सी वाहनों का जमावड़ा है। चुनावी सवालों पर लोग खुलकर बोलने में संकोच करते हैं। निश्शुल्क राशन, किसान सम्मान निधि, उज्ज्वला गैस योजना से संतुष्ट हैं, लेकिन रोजगार की व्यवस्था न होने से लोग व्यथित हैं।

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दुकानदार सतीश कहते हैं- अब दौर बदल गया है। कानून व्यवस्था सुधरी है। पड़ोसी दुकानदार और अधिकांश ग्राहक भी सहमति जताते हैं। 1952 से 2019 तक कुल 17 चुनावों में कैसरगंज सीट ने बसपा को छोड़ हर दल को मौका दिया है। समाजवादी झंडा यहां पर सर्वाधिक पांच बार लहरा चुका है। सपा के टिकट पर चार बार पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा और एक बार बृजभूषण शरण सिंह ने जीत दर्ज की थी।

2014 से बृजभूषण यहां कमल खिलाए हुए हैं। इससे पहले 1989 में रुद्रसेन चौधरी और 1991 में लक्ष्मी नारायण मणि त्रिपाठी यहां भाजपा को जीत दिला चुके हैं। कांग्रेस तीन बार ही जीत सकी है। इस बार क्या समीकरण पलटेंगे।

इस पर कटराबाजार मार्ग पर स्कूल के समीप छाया में खड़े सियाराम कहते हैं- टिकट वितरण में बहुत देरी हुई है। भाजपा के पास संसाधन के साथ ही तैयारी भी पूरी है, लेकिन विपक्ष कमजोर है। सपा और बसपा ने बहराइच व लखनऊ में रहने वालों को उम्मीदवार बनाया है। वे इतने कम समय में मतदाता तक कैसे पहुंचेंगे?

राकेश टोकते हैं- अब मोबाइल के युग में हर कोई पहुंच जाता है। प्रत्याशी स्वयं इतने बड़े क्षेत्र में प्रत्येक मतदाता तक नहीं पहुंच सकते, लेकिन उनका संदेश जरूर पहुंच सकता है। विरतिया गांव को जाने वाले मार्ग के समीप रेलवे क्रासिंग पर भी कुछ लोग यही चर्चा कर रहे थे कि चुनाव में सपा ने प्रत्याशी तो ठीक दिया है, लेकिन यदि टिकट की घोषणा 15 दिन पहले हो जाती तो चुनाव का पूरा माहौल बदल जाता। शफीक बोले- चुनाव एकतरफा नहीं है। मतदाताओं की अलग-अलग विचारधारा है।

2019 के लोकसभा चुनाव की स्थिति

  • बृजभूषण शरण सिंह, भाजपा को मिले वोट-5,81,358
  • चंद्रदेव राम यादव, सपा-बसपा गठबंधन को मिले वोट-3,19,757
  • विनय कुमार पांडेय विन्नू, कांग्रेस को मिले वोट-37,132
इस बार ये हैं मैदान में...

  • भगतराम मिश्र (सपा)
  • करण भूषण सिंह (भाजपा)
  • नरेंद्र पांडेय (बसपा)
सबके अपने दावे-मुद्दे

भैरमपुर में छात्र सत्यम का सधा सा जवाब है-रोजगार की व्यवस्था करने वाली सरकार को ही मतदान करूंगा। पहाड़ापुर में भैंस चरा रहे रामकुमार बोले- यहां भाजपा की लड़ाई सपा से है। बसपा से कौन चुनाव लड़ रहा है, इसकी जानकारी नहीं है। बुजुर्ग राम जियावन हों या फिर युवा मनीष, सतीश व शिवम, सभी का मानना है कि सपा व बसपा का संगठन कमजोर है, जिससे भाजपा को मजबूती मिली है।

कर्नलगंज का परिदृश्य एकदम बदला हुआ है। यहां क्षत्रिय, ब्राह्मण व अनुसूचित वर्ग के मतदाता की सोच एक है। मनोज कुमार अनुच्छेद 370, अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण को अंडर करंट मानते हैं। तरबगंज में व्यापारी नेता हरी सिंह का कहना है कि यहां कोई लड़ाई नहीं है। बेलसर चौराहे पर चाय पीने आए इम्तियाज ने कहा कि चुनाव में चार सौ पार का दावा हवा-हवाई हो जाएगा। मतदाता खामोश हैं, परिणाम आएगा तब पता चलेगा।

इस बार इतने मतदाता- 1898276

पुरुष मतदाता-1006252

महिला मतदाता-891651

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