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Harela Festival: पर्वतीय गीतों के बीच मना हरेला उत्सव, पापरंपरिक परिधानों के साथ महिलाओं ने लिया हिस्सा

हरियाली जीवन में उतारने और उन्नति के प्रतीक हरेला उत्सव का पुरस्कार वितरण के साथ शनिवार को समापन हुआ। पर्वतीय महापरिषद की ओर से गोमतीनगर के महापरिषद कार्यालय परिसर में आयोजित उत्सव के दौरान महिलाएं पर्वतीय गीतों के साथ अपने हरेला का प्रदर्शन किया।

By Vikas MishraEdited By: Updated: Sun, 18 Jul 2021 11:08 AM (IST)
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प्राकृतिक संपदा को बचाने और लोगों को जागरूक करने के लिए हमारे त्योहार भी अपनी भूमिका निभाते हैं।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। हरियाली जीवन में उतारने और उन्नति के प्रतीक हरेला उत्सव का पुरस्कार वितरण के साथ शनिवार को समापन हुआ। पर्वतीय महापरिषद की ओर से गोमतीनगर के महापरिषद कार्यालय परिसर में आयोजित उत्सव के दौरान महिलाएं पर्वतीय गीतों के साथ अपने हरेला का प्रदर्शन किया। पर्वतीय महापरिषद के अध्यक्ष गणेश चंद्र जोशी ने बताया कि शहर के हर इलाकों से महिलाएं हरेला लेकर शामिल हुईं। सर्वश्रेष्ठ टोकरियों में उगे हरेला को सम्मानित किया गया। मुख्य संयोजक टीएस मनराल, संयोजक केएन चंदोला, व महासचिव महेंद्र सिंह रावत की मौजूदगी में नीता जोशी को सर्वश्रेष्ठ हरेला के लिए शिव पार्वती सम्मान दिया गया। आकाश वाणी के पूर्व उप निदेशक हरीश सनवाल व एनके उपाध्याय निर्णायक शामिल हुए। 

महिलाओं ने महेंद्र पंत द्वारा लिखित गीत जी रैया जागि रैया, जुग-जुग बची जी रैया...पर नृत्य कर महिलाओं ने सभी का दिल जीत लिया। उत्सव में सांस्कृतिक सचिव गोविंद सिंह बोरा, सह-सांस्कृतिक सचिव ख्याली सिंह कड़ाकोटी, नीता जोशी, सरोज खुल्बे, दीप्ति जोशी, बीना रावत, सीमा भट्ट, विमला बोरा, ज्ञान पंत, केसी पंत, केएन पाठक, केएस रावत, रमेश उपाध्याय, हेमंत सिंह गडिय़ा, केएस बोरा, उमराव सिंह बिष्ट व माया रावत सहित समाज के लोग मौजूद थे। 

प्राकृतिक संपदा को बचाने का पर्व है हरेलाः प्राकृतिक संपदा को बचाने और उनके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हमारे त्योहार भी अपनी भूमिका निभाते हैं। पर्वतीय समाज के हरेला पर्व में भी कुछ ऐसा ही होता है। हरेला पर्व पर्वतीय समाज का पारंपरिक त्योहार है। घर में सुख-समृद्धि के प्रतीक के रूप में हरेला बोया व काटा जाता है। इसके मूल में यह मान्यता है कि हरेला जितना बड़ा होगा उतनी ही फसल बढिय़ा होगी। घर की बुजुर्ग महिला ने परिवार के सभी लोगों को हरेला लगाती हैं। हरेला बोने के लिए किसी थालीनुमा पात्र या टोकरी का चयन किया जाता है। सात प्रकार के अनाज को बोया जाता है। नौ दिनों तक इस पात्र में रोज सुबह को पानी छिड़कते रहते हैं। चार से छह इंच लंबे इन पौधों को ही हरेला कहा जाता है। जिसे काटकर सिर पर रखकर पूजा की जाती है। खीर, पूड़ी, पुआ और सिंघल जैसे पारंपिरक पकवान बनाए जाते है। हरेला काटने के बाद गृह स्वामी द्वारा इसे तिलक, चंदन, अक्षत से अभिमंत्रित किया गया। इसे हरेला पतीसना कहा जाता है।

गणेश चंद्र जोशी, अध्यक्ष, पर्वतीय महापरिषद

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