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बिना अनुमति धार्मिक स्थलों पर कैसे बज रहे लाउडस्पीकरः हाईकोर्ट

हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने धार्मिक स्थलों समेत शादी समारोह, जुलूस और अन्य स्थानों पर बिना अनुमति लाउडस्पीकरों के प्रयोग पर सख्त एतराज जताया है।

By Nawal MishraEdited By: Updated: Wed, 20 Dec 2017 10:43 PM (IST)
बिना अनुमति धार्मिक स्थलों पर कैसे बज रहे लाउडस्पीकरः हाईकोर्ट
लखनऊ (जेएनएन)। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने प्रदेश में धार्मिक स्थलों (मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा आदि)  समेत शादी समारोह, जुलूस और अन्य स्थानों पर बिना सरकारी अनुमति के लाउडस्पीकरों के प्रयोग पर सख्त एतराज जताया है। कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि क्या जगह-जगह ऐसे स्थानों पर लगे लाउडस्पीकरों को लगाने के लिए लिखित में संबंधित अधिकारी की अनुमति ली गई है। यदि अनुमति नहीं ली गई तो ऐसे लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है।

अदालत ने यह भी पूछा है कि क्या प्रदेश में ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए कोई मशीनरी बनी है। अदालत ने प्रमुख सचिव गृह एवं यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन को यह जानकारी व्यक्तिगत हलफनामों के जरिये एक फरवरी तक पेश करने का आदेश दिया है। अदालत ने चेताया भी है कि यदि यह जानकारी नहीं दी जाती है तो दोनों अफसरों अगली सुनवाई पर व्यक्तिगत रूप से हाजिर रहेंगे।

यह आदेश न्यायमूर्ति विक्रम नाथ एवं न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन की बेंच ने एक स्थानीय वकील मोतीलाल यादव की याचिका पर दिया। याची ने वर्ष 2000 में केंद्र सरकार द्वारा ध्वनि प्रदूषण को रोकने के संबंध में बनाये गए न्वॉयज पॉल्यूशन रेग्यूलेशन एंड कंट्रोल रूल्स 2000 का प्रदेश में कड़ाई से पालन न होने का आरोप लगाते हुए मांग की थी सरकार इसके प्रावधान को लागू करवाए। इसमें नियम है कि संबंधित अधिकारी की अनुमति के बिना लाउडस्पीकरों या किसी अन्य पब्लिक एड्रेस सिस्टम का प्रयोग नहीं किया जायेगा। यह भी प्रावधान है कि आॉडिटोरियम, कांफ्रेंस रूम, कम्युनिटी हाल जैसे बंद स्थानों को छोड़कर अन्य स्थानों पर रात दस बजे से सुबह छह बजे तक लाउडस्पीकरों का प्रयोग नहीं किया जायेगा। 

शर्तों के साथ राज्य सरकार दे सकती छूट

हालांकि राज्य सरकार को यह छूट है कि वह एक कैलेंडर वर्ष में अधिकतम 15 दिनों के लिए सांस्कृतिक या धार्मिक अवसरों पर रात दस बजे से रात बारह बजे के बीच ध्वनि प्रदूषण कम करने की शर्तों के साथ लाउडस्पीकर बजाने की छूट दे सकती है। याची का कहना है कि इन नियमों की हर जगह धड़ल्ले से खिल्ली उड़ायी जा रही है, जिसके चलते बच्चों, रोगियों, वृद्धों व आम आदमी को ध्वनि प्रदूषण से काफी परेशानी होती है।

शांतिपूर्ण नींद सांविधानिक अधिकार

इस पर कोर्ट ने कहा कि जब ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए नियम बना दिये गए हैं तो फिर अफसर उनका कड़ाई से पालन क्यों नहीं करते और कान बंद किये बैठे हैं। ध्वनि प्रदूषण से स्वतंत्रता एवं शांतिपूर्ण नींद को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मूलभूत अधिकार होने की बात को दोहराते हुए अदालत ने कहा, बार बार इस विषय पर याचिकाएं दाखिल होने से एक बात तो तय है कि या तो संबंधित अफसरों के पास 2000 रूल्स के प्रावधान को लागू करने की इच्छाशक्ति नहीं है या उनका उत्तरदायित्व तय नहीं हैं। दोनों ही हालात इतने गंभीर हैं कि अदालत को दखल देना पड़ रहा है।

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