Lok Sabha Elections 2024: जातियों के चक्रव्यूह को तोड़ता 'राम का नाम', लोकसभा चुनाव में कठिन होगी विपक्ष की डगर
22 जनवरी को रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के बाद से श्रद्धालुओं का सैलाब अयोध्या में देखने को मिल रहा है। पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक के राज्यों के साथ ही श्रद्धालु रामलला के दर्शन कर रहे हैं। यहां न जातियों का चक्रव्यूह है और न बड़े-छोटे का वर्ग विभाजन और भारत की राजनीति को यही तो चाहिए। राज्य ब्यूरो प्रमुख अजय जायसवाल की रिपोर्ट...
अजय जायसवाल, लखनऊ। धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखने के बावजूद अयोध्या अरसे से उपेक्षित-तिरस्कृत ही थी। सात वर्षों में राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार ने जहां 31 हजार करोड़ रुपये खर्च कर भव्य-दिव्य-नव्य अयोध्या बनाई है वहीं सदियों की लंबी लड़ाई के बाद रामलला अब अपने भव्य मंदिर में विराजमान हैं। ऐतिहासिक प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दौरान योगी सरकार ने चौतरफा राममय माहौल बनाने के लिए 100 करोड़ रुपये खर्च किए।
ऐसे में देश-दुनिया के रामभक्त अब रामलला के दर्शन को अयोध्या की ओर रुख किए हैं। न केवल लाखों आम श्रद्धालु बल्कि केंद्रीय मंत्री, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री अपने मंत्रिपरिषद के सहयोगियों के साथ अयोध्या पहुंच रहे हैं। बड़ी संख्या में अयोध्या पहुंचने वालों का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्राण प्रतिष्ठा से सिर्फ एक माह में ही रिकार्ड 62 लाख श्रद्धालुओं ने रामलला के दर्शन किए।
डेढ़ माह गुजरने को हैं, लेकिन आज भी औसतन सवा लाख श्रद्धालु अलौकिक नगरी अयोध्या पहुंच रहे हैं। जम्मू-कश्मीर से लेकर बंगाल, कर्नाटक, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड आदि राज्यों के हजारों रामभक्त अयोध्या की सड़कों, गलियों और फुटपाथ पर देखे जा सकते हैं।
प्रदेश की राजनीति कई खांचों में बंटी दिखती है। पूरब में जातियों का चक्रव्यूह तो पश्चिम में धर्म के स्तर पर बुंदेलखंड के स्थानीय मुद्दे राजनीति को प्रभावित करते हैं। इन सबको एकता के एक सूत्रवाक्य में बांधता है तो भगवान श्रीराम का मंदिर। अयोध्या से अपने-अपने राज्य में वापसी करने वाले लाखों श्रद्धालुओं द्वारा अपनों के बीच दर्शन की बेहतर व्यवस्था का गुणगान हो रहा है।
मोदी-योगी को राम-लक्ष्मण की जोड़ी से लेकर कई संज्ञाएं भी जनमानस के बीच हैं। कोई संशय नहीं कि रामलला के भव्य मंदिर में विराजने का श्रेय मोदी को ही मिलेगा और वे भाजपा नेता इसे अपने मंचों से लोगों के बीच भावनात्मक रूप से ले भी जाएंगे।
यही वजह है कि लोकसभा चुनाव से पहले देशभर के मतदाताओं के बीच ‘रामलला’ के कारण मोदी के चौतरफा बढ़ते प्रभाव को किसी तरह बेअसर करने में नाकाम दिख रहा विपक्ष भाजपा पर धर्म की राजनीति करने का लगातार आरोप लगा रहा है।
हालांकि, भाजपा नेता खुले आम यह स्वीकारने से गुरेज नहीं करते कि श्रीराम हमारे आराध्य हैं। चूंकि मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के साथ ही समाजवादी पार्टी जैसे दलों ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह से दूरी बनाई थी इसलिए भाजपा नेता इन दलों को घेरने का कोई मौका भी नहीं छोड़ रहे हैं।राम को काल्पनिक बताने से लेकर शपथ समारोह में शामिल न होने पर कांग्रेस व सपा के कई वरिष्ठ नेताओं द्वारा भी अपनी ही पार्टी के प्रमुखों को घेरते हुए भाजपा का दामन थामा जा रहा है।
भाजपा नेताओं द्वारा मोदी के काम संग ‘रामलला’ से बनते ‘भगवा’ माहौल के दम पर सूबे में क्लीन स्वीप कर मोदी सरकार की वापसी के साथ ही विपक्ष के चारों खाने चित होने का दावा किया जा रहा है। श्रद्धालुओं के मनोभाव से भी यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि अबकी लोकसभा चुनाव में ‘रामलला’ की अयोध्या देश की राजनीति की नई गाथा लिखने में अहम भूमिका निभाएगी।यह भी पढ़ें: क्या आप जानते हैं राम मंदिर से जुड़ी ये महत्वपूर्ण बातें?
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