सनातन धर्म अपना लिया तो नाम आरिफ क्यों? हाई कोर्ट ने पूछा सवाल तो जवाब न दे सका… याचिका खारिज
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने धर्म छिपाकर शादी और दुष्कर्म करने के आरोप में दर्ज एफआईआर को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। आरोपी ने कहा था कि उसने 15 साल पहले इस्लाम छोड़कर सनातन धर्म अपनाया था लेकिन उसके आधार कार्ड पर अभी भी आरिफ हुसैन नाम है। अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस यह जांच करे कि आरोपी ने कोई अपराध तो नहीं किया।
विधि संवाददाता, लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने धर्म छिपाकर शादी व दुष्कर्म करने के आरोप में दर्ज एफआईआर को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है।
मामले में अभियुक्त व तथाकथित पति ने कहा कि उसने 15 वर्ष पहले वर्ष 2009 में इस्लाम धर्म छोड़कर सनातन धर्म अपना लिया, जिसके बाद पीड़िता से आर्य समाज मंदिर में विवाह किया था।
संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाया याची
न्यायालय ने पाया कि याचिका के साथ दाखिल अभियुक्त के आधार कार्ड पर आरिफ हुसैन नाम लिखा है। इस पर न्यायालय ने अभियुक्त के अधिवक्ता से पूछा कि यदि उसने सनातन धर्म अपना लिया है तो नाम अब भी आरिफ हुसैन क्यों है? इसका अभियुक्त के अधिवक्ता कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे सके। इस पर न्यायालय ने याचिका को खारिज कर दिया।
पुलिस करे जांच- कोई अपराध तो नहीं किया
साथ ही पुलिस को स्वतंत्रता दी है कि वह इस बिंदु की भी जांच करे कि क्या अभियुक्त ने आरिफ हुसैन के नाम से आधार कार्ड बनवाकर कोई अन्य अपराध तो नहीं किया है, क्योंकि वह धर्म परिवर्तन कर चुका था। यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक चौधरी व न्यायमूर्ति एनके जौहरी की पीठ ने आरिफ हुसैन उर्फ सोनू सिंह व अन्य की याचिका पर पारित किया है।
एफआईआर को दी थी चुनौती
याचियों की ओर से लखनऊ के सुशांत गोल्फ सिटी थाने में नौ सितंबर, 2024 को दर्ज हुई एफआईआर को चुनौती देते हुए दलील दी गई कि याची आरिफ व पीड़िता का विवाह 24 जनवरी, 2009 को आर्य समाज मंदिर अलीगंज में हुआ था। इस विवाह से पूर्व उसी आरिफ ने धर्म परिवर्तन कर सनातन धर्म अपना लिया था।
कहा गया कि 15 वर्ष बाद पीड़िता ने एफआईआर दर्ज कराते हुए आरोप लगाया है कि याची आरिफ ने धर्म छिपाकर उससे विवाह किया तथा उसके साथ दुष्कर्म किया।
यह भी दलील दी गई कि वास्तव में उनके मध्य वैवाहिक विवाद है, जिसे दुष्कर्म और धर्म छिपाने का रंग देकर एफआईआर दर्ज करा दी गई है।
याचिका का राज्य सरकार के अधिवक्ता ने विरोध करते हुए कहा कि एफआईआर में लगाए गए आरोप गंभीर हैं, लिहाजा इसे खारिज नहीं किया जा सकता है।
संगठित अपराध में पूर्व से भी लागू होंगे नए बीएनएस के प्रावधान
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अन्य मामले में स्पष्ट किया है कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की संगठित अपराध की धारा 111 का पूर्ववर्ती प्रभाव भी होगा। अर्थात इसमें वह अपराध भी शामिल माने जाएंगे जो इस कानून के लागू होने की तिथि पहली जुलाई 2024 से पूर्व संगठित अपराध के रूप में हैं।
यह भी पढ़ें: बहराइच एनकाउंटर पर सियासत: अखिलेश बोले- सरकार का नया तरीका, राजभर ने किया पलटवार …तो क्या पुलिस माला पहनाएगी