Jagran Samvad 2023: 'सात जन्म लेकर भी साहित्य की बराबरी नहीं कर पाएगा सिनेमा', यतींद्र मिश्र व सलीम आरिफ से अनंत विजय की बातचीत
भारतेंदु नाट्य अकादमी में शनिवार को संवादी के दूसरे दिन पहले सत्र में वरिष्ठ साहित्यकार यतींद्र मिश्र की पुस्तक गुलज़ार साब पर विमर्श की यात्रा शुरू हुई। इस रोमांचक सफर का अंत उतना ही दिलचस्प रहा जितना की आरंभ। पूरी यात्रा में गुलज़ार के जीवन के कई अनछुए पहलू सामने आए तो मीना कुमारी से लेकर चांद तक चर्चा के केंद्र में रहे।
By Jagran NewsEdited By: Nitesh SrivastavaUpdated: Sat, 02 Dec 2023 05:16 PM (IST)
महेन्द्र पाण्डेय, लखनऊ । सिनेमा कभी साहित्य नहीं हो सकता, क्योंकि जिस चीज को लेकर सिनेमा रचा गया था, उसकी नींव में साहित्य है। साहित्य वास्तविक है तो सिनेमा आभास। सिनेमा सात जन्म लेगा तो भी साहित्य के बराबर नहीं पहुंच पाएगा। इसलिए साहित्य की अमरता कभी झुठलाई नहीं जा सकती। अगर विषय गुलज़ार सा'ब पर हो तो साहित्य और सिनेमा की बात न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता।
भारतेंदु नाट्य अकादमी में शनिवार को संवादी के दूसरे दिन पहले सत्र में वरिष्ठ साहित्यकार यतींद्र मिश्र की पुस्तक गुलज़ार सा'ब पर विमर्श की यात्रा शुरू हुई। इस रोमांचक सफर का अंत उतना ही दिलचस्प रहा, जितना की आरंभ। पूरी यात्रा में गुलज़ार के जीवन के कई अनछुए पहलू सामने आए तो मीना कुमारी से लेकर चांद तक चर्चा के केंद्र में रहे।
सत्र के खेवनहार दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर अनंत विजय ने पूछा इस पुस्तक में मीना कुमारी जी हैं या नहीं? यतींद्र बोले- जब मैंने लताजी पर काम किया तो मुझसे पूछा गया कि उनका इश्क कहां है तो मैंने कहा कि लताजी 88 साल की हैं और मैं 35 का। दादी-पोते के बीच का अंतर है। मैं अपनी दादी से नहीं पूछ सकता कि किससे इश्क लड़ाया। यह कहकर मैं निकल लेता था।
गुलज़ार साब अब 90 के हैं और मैं 47 वर्ष का। यहां भी दादा-पोते जैसा रिश्ता है। जैसा इश्क फिल्मी गाशिप मैग्जीन में देखा जाता है वैसा तो मैंने कभी किसी से नहीं पूछा। मीना कुमारी के काम और उनके शायरी के जुनून को लेकर मैंने बात की, वो सब इसमें मौजूद है।
अनंत विजय ने फिलहाल चर्चा मीना कुमारी पर ही केंद्रित रखी। सलीम से बोले- मीना कुमारी से गुलज़ार के क्या रिश्ते थे? सलीम कुछ बोलते, इससे पहले अनंत ने जोड़ा- बेटे से बाप के इश्क के किस्से नहीं पूछे जाते... यह कहकर टालिएगा नहीं।
सलीम मुस्कुराए और कहा- मोहब्बत और इज्जत का रिश्ता महसूस होता है दोनों में। अनंत फिर यतींद्र से मुखातिब हुए। सवाल किया- 15-16 साल लग गए इस किताब को आने में, आखिर ऐसा कौन सा हीरा मोती जड़ा है इसमें? यतींद्र ने बड़ी साफगोई से जवाब दिया। बोले- यह कोई महानता नहीं है। आलस्य का परिचायक है। मैं गुलज़ार साब पर काम कर रहा था, बीच में लताजी आ गईं तो यह काम स्थगित कर दिया।दर्शक भी विमर्श के सेतु से ऐसे बंधे कि यह चर्चा पूरी न हो, मानो यही चाह है उनकी, पर समय की पाबंदी को जानते हुए अनंत ने जल्दी से अगला मजेदार सवाल किया- आप किस चिट्ठी का जिक्र कर रहे थे जिसमें गुलज़ार ने कहा है कि आपने उनका तेल निकाल लिया । यह कौन सा तेल था? यतींद्र ने गुलज़ार के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए विशाल भारद्वाज से लेकर सलीम तक से उनके रिश्ते को बयां किया।
यह बताया कि किस तरह गुलज़ार ने हेमा मालिनी और जितेंद्र सरीखे कलाकारों को गढ़ा है। यह सब इस किताब में है। गुलज़ार जैसा कवि अपनी पुस्तक के पीछे केदारनाथ सिंह के सम्मति को कोट करवाता है, इस आश्चर्य से आवरण यतींद्र के साथ ही सलीम ने भी हटाया। दोनों का मंतव्य साफ था- गुलज़ार मराठी, हिंदी, उर्दू सभी भाषाओं के कवियों को बहुत इज्जत देते हैं।
आवाज को पहन, रूह का कपड़ा उतार देते हैं गुलज़ार चांद से गुलज़ार का क्या लगाव है? सलीम ने कहा कि गुलज़ार चांद को नए तरीके से देखते हैं। कभी रोटी के रूप में तो कभी थाली के तौर पर। कभी चलते हुए पहिए के रूप में। उन्होंने सूरज पर भी लिखा है, लेकिन चांद को विशेष और रोमांटिक तरीके से प्रस्तुत किया है। यतींद्र ने इससे सहमति जताते हुए कहा कि गुलज़ार रिश्तों से इश्क करते हैं। वह आवाज को पहन लेते हैं और रूह का कपड़ा उतार देते हैं।
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