'कोई हिजाब पहन सकता है तो मुझे भी जय श्रीराम कहने का अधिकार', जागरण संवादी में बोलीं अमी गणात्रा
जगरण संवादी 2024 के दूसरे दिन के पहले सत्र में भारत की बात पर चर्चा हुई। लेखिका अमी गणात्रा लेखक अरुण आनंद और वरिष्ठ स्तंभकार हर्ष वर्धन त्रिपाठी ने भारत के बदलते स्वरूप चुनौतियों और शिक्षा के भविष्य पर अपने विचार रखे। चर्चा में राम मंदिर हिंदुत्व 5जी नेटवर्क आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और राष्ट्रीय शिक्षा नीति जैसे विषयों पर भी बात हुई।
गोविन्द मिश्र, लखनऊ। समय बदला है। परिस्थितियां बदली हैं। अपना भारत भी बदला है। अब हर जगह चर्चा भारत की ही है। सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका का चुनाव तो चर्चा भारत और भारतवंशियों की। दुनिया के किसी हिस्से में युद्ध तो चर्चा भारत की। विश्व को पर्यावरण की चुनौती से निपटना हो तो भी याद भारत की। बदलते भारत ने पाया तो बहुत कुछ है, लेकिन अभी बड़ी चुनौतियां भी हैं।
दैनिक जागरण संवादी में दूसरे दिन का पहला सत्र था- भारत की बात और इस पर चर्चा करने के लिए मंच पर उपस्थित थीं लेखिका अमी गणात्रा, लेखक अरुण आनंद और वरिष्ठ स्तंभकार हर्ष वर्धन त्रिपाठी।
चर्चा की शुरुआत करते हुए हर्ष वर्धन त्रिपाठी कहते हैं कि समाज से लेकर दुनिया के जितने यु5जी नेटवर्क के विस्तार में चीन से भी तेजद्ध और विवाद के विषय हैं, उनमें सबको भारत ही नजर आता है। एक समय तक इस देश में बड़ा वर्ग था, जो यह कहकर उपहास करता था कि बड़ा विश्वगुरु बनने चले हैं, लेकिन आज वही यह कहते नहीं अघाते कि कुछ भी कहो, भारत का यह प्रभाव है कि अमेरिका से लेकर रूस और अब तो चीन भी हमारी बात सुनने के लिए तैयार है। यह बड़ा बदलाव है। इसके अलावा राम के उद्घोष ने भी भारत की बात को मजबूत करने में बड़ी भूमिका निभाई है।
अब माइक संभाला अमी गणात्रा ने। नमस्ते, जय श्रीराम, जय-जय श्रीराम... कर अमी ने अभिवादन किया तो कुर्सियों से भी जय-जय श्रीराम के स्वर गूंज उठे। उन्होंने राम नाम के किस्से से ही जुड़े एक प्रसंग का जिक्र छेड़ अपनी चर्चा को आगे बढ़ाया। कहा, कुछ वर्ष पूर्व विद्यार्थियों के एक कार्यक्रम में मैंने अपने संबोधन की शुरुआत जय श्रीराम से की तो बच्चों ने भी जय श्रीराम बोला।
कार्यक्रम के बाद में एक छात्रा आई और उसने कहा- आपका वक्तव्य तो अच्छा था, लेकिन आपने राम नाम से कैसे शुरू किया। हमारा कालेज कम्युनल नहीं है। हमारा कालेज तो सेक्युलर है। हिजाब पहनकर मेरी सखी भी बैठी थी। यह सही नहीं है। मैंने उसे समझाया कि सरकार मुझे यह अधिकार देती है कि मैं अपना धर्म जी सकूं। अगर यहां पर कोई हिजाब पहनकर बैठा है तो उससे दिक्कत नहीं तो मेरे जय श्रीराम कहने से भी परेशानी नहीं होनी चाहिए। संविधान सबको समानता का अधिकार देता है। वह कहती हैं कि आज बदलाव अवश्य आ रहा है। आप ही देखिए, राम के नाम पर प्रश्न उठाने वालों की हालत क्या हो गई है। धर्म आगे बढ़ने ही वाला है। धर्मो रक्षति रक्षत:... हमें इसका रक्षण करते ही रहना पड़ेगा। चर्चा राजनीति पर भी हुई।
अरुण आनंद ने कहा कि समाज में परिवर्तन आता है तो सरकारें ज्यादा नहीं कर सकतीं। मैंने 2014 में भी कहा था कि नरेन्द्र मोदी के कारण हिंदुत्व का उभार नहीं हो रहा, देश में हिंदुत्व की तीव्र लहर चल रही है और इसी कारण नरेन्द्र मोदी व भाजपा सत्ता में आई। करिश्मा मोदी का भी था, लेकिन बड़ा कारण हिंदुत्व ही था। एक बड़ी चुनौती भी है। पूरी दुनिया के अंदर जो विमर्श होता है, उसका प्रभाव भारत पर भी पड़ता है। 10-15 वर्षों से जो बदलाव दिखे हैं, क्या यह लंबे समय तक कायम रह पाएंगे।
क्या राजनीतिक परिवर्तन के बाद यह सामाजिक बदलाव कायम रह जाएगा। चुनौतियां और भी हैं कहकर वह चर्चा को शिक्षा से जोड़ते हैं। कहते हैं कि जिस तरह से तकनीक बढ़ रही है, उससे यही लगता है कि अगले 15-20 वर्षों में ग्लोबल क्लास रूम चलेंगे। दुनिया ग्लोबल क्लास रूम बनाने की तैयारी कर रही है और हम अभी नई शिक्षा नीति के तहत एनसीईआरटी की किताबों को ही बनाने में जुटे हैं।
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