Poet Jigar Moradabadi ने ठुकरा दी थी पाकिस्तान की पेशकश, वाराणसी में जन्मे और गोंडा में गुजार दी जिंदगानी
Poet Jigar Moradabadi गोंडा को कर्मभूमि बनाने वाले जिगर दुनिया को बड़ी बारीकी से देखते थे। तभी तो वह कहते हैं कि ...आदमी आदमी से मिलता है दिल मगर कम किसी से मिलता है। जिंदगी को उन्होंने अपने तरीके से जिया।
By Anurag GuptaEdited By: Updated: Thu, 09 Sep 2021 09:20 AM (IST)
गोंडा, [रमन मिश्र]। जिगर मुरादाबादी उस शख्सियत का नाम है, जिसने पाकिस्तान की हर पेशकश को ठुकरा दिया था। बंटवारे के बाद पाकिस्तान ने कई बार जिगर मुरादाबादी को अपने यहां की नागरिकता व वजीफा देने की बात कही, लेकिन उन्होंने उसे ठुकराते हुए कहा था कि ...'उनका जो फर्ज है वो अहले सियासत जाने, मेरा पैगाम मुहब्बत है जहां तक पहुंचे।'
उर्फियत में मुरादाबादी लिखने वाले प्रख्यात शायर जिगर छह अप्रैल, 1890 में बनारस में जन्मे। उनका बचपन का नाम अली सिकंदर था। बाद में उनके पिता मुरादाबाद चले गए। वहां से वह चश्मे के कारोबार के सिलसिले में मुरादाबाद से गोंडा आ गए। यहां पर उन्होंने शायरी शुरू कर दी। शायरी का ऐसा जादू चढ़ा कि दागे जिगर, आतिश-ए-गुल सहित उनकी अन्य रचनाएं लोगों की जुबां पर छा गई। वर्ष 1960 में नौ सितंबर को उनका निधन हो गया। यहां उनकी आरामगाह (कब्र) होने के साथ ही स्मृति के रूप में जिगरगंज मुहल्ला व जिगर मेमोरियल इंटर कॉलेज भी है। जिगर मुरादाबादी की रचनाओं ने न सिर्फ गोंडा की ही शान बढ़ाई, बल्कि गंगा-जमुनी तहजीब को भी आगे बढ़ाने का काम किया है। गोंडा को कर्मभूमि बनाने वाले जिगर दुनिया को बड़ी बारीकी से देखते थे। तभी तो वह कहते हैं कि ...'आदमी आदमी से मिलता है, दिल मगर कम किसी से मिलता है।' जिंदगी को उन्होंने अपने तरीके से जिया। जिसका जिक्र उनकी रचना में कुछ यूं दिखा, ...'गुलशन परस्त हूं मुझे गुल ही नहीं अजीज, कांटों से भी निबाह किए जा रहा हूं मैं।' शायर नजमी कमाल कहते हैं कि जिगर ने हर तबके के लिए कुछ न कुछ लिखा है।
एक नजर में जिगर मुरादाबादी : जिगर मुरादाबादी का पूरा नाम अली सिकंदर था। इनके पिता का नाम अली नजर था। छह अप्रैल 1890 को बनारस में इनका जन्म हुआ। छह माह की उम्र में ही उनका पूरा परिवार मुरादाबाद जाकर बस गया। वहीं पर उर्दू व फारसी की पढ़ाई की। गोंडा आने पर इनकी मुलाकात असगर गोंडवी से हुई। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि दी। साहित्य अकादमी ने आतिश-ए-गुल पर उन्हें पांच हजार रुपये का इनाम दिया था।
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