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KGMU Convocation 2020: 115 बरस का हुआ केजीएमयू, दुनियाभर में जॉर्जियंस का डंका

KGMU Convocation Ceremony कोरोना ही नहीं...विश्वयुद्ध में भी संभाल चुके हैं मोर्चा। ब्रिटिश आर्मी मेडिकल कोर में चला गया था पहला पूरा बैच। वक्त के हिसाब से खुद को ढालने में माहिर जॉर्जियंस का परिवार अब 21 हजार पार कर चुका है।

By Divyansh RastogiEdited By: Updated: Mon, 21 Dec 2020 10:54 AM (IST)
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KGMU Convocation Ceremony: कोरोना ही नहीं...विश्वयुद्ध में भी संभाल चुके हैं मोर्चा।
लखनऊ [संदीप पांडेय]। 115 बरस के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) का इतिहास समृद्धता से भरा है। दुनिया भर में जॉर्जियंस के नाम से मशहूर यहां के डॉक्टरों की अलग ही धमक है। बात, चाहे चिकित्सकीय दक्षता की हो या फिर जनमानस को संकट से उबारने की, इनके हौसले हमेशा बुलंद रहते हैं। खुद को दांव पर लगाकर जिंदगियां बचाना इनका जुनून है। कोरोना जैसे जैविक युद्ध में इनकी जीवटता का जहां देश साक्षी है, वहीं पुरानी पीढ़ी विश्वयुद्ध में मोर्चा संभाल कर दुनिया को लोहा मनवा चुकी है। वक्त के हिसाब से खुद को ढालने में माहिर जॉर्जियंस का परिवार अब 21 हजार पार कर चुका है। वहीं, फौलादी इरादों वाले डॉक्टरों की नई फौज सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया का संकल्प लेकर मानव सेवा के लिए तैयार है।

22 दिसंबर को केजीएमयू अपना 115वां स्थापना दिवस मना रहा है। कोरोना से युद्ध में फ्रंट लाइन पर लड़ाई लड़ रहे डॉक्टरों में वार्षिक उत्सव को लेकर उमंग है। मगर, संक्रमण काल की वजह से सांस्कृतिक कार्यक्रम टल गया है। ऐसे में सीनियर सभी मेधावियों को वाट्सएप, मेल और कैंपस में मिलते-जुलते बधाई दे रहे हैं। साथ ही नई पीढ़ी को जॉर्जियंस के समृद्ध इतिहास से भी रूबरू करा रहे हैं। उनका कहना है कि जनमानस की रक्षा के लिए खुद को हर वक्त तैयार रखना होगा। महामारी, आपदा जैसे मुश्किल हालातों से निपटने के लिए हौसला बुलंद रखना ही जीत का मूल मंत्र है। इन्हीं संकटों से जूझकर उबरना ही जॉर्जियंस की खूबी है। संघर्षों से बने गौरवपूर्ण इतिहास पर स्वर्णिम आभा कायम रखना अब नई टीम की जिम्मेदारी है। इस दौरान वह विश्वयुद्ध, नेपाल भूकंप, केदारनाथ में प्रलय, रायबरेली के बछरावां में रेल दुर्घटना, थर्मल पावर हादसे में जनजीवन की रक्षा में जॉर्जियंस के साहस, चिकित्सकीय दक्षता के किस्से भी साझा कर हैं।

घायल ब्रिटिश सैनिकों को दीं सांसें  

जॉर्जियंस एल्युमनाई एसोसिएशन के एग्जीक्यूटिव सेक्रेटरी डॉ. सुधीर सिंह के मुताबिक वर्ष 1905 में किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज की स्थापना हुई। 1911 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से संबद्धता मिलने पर एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू हुई। पहले बैच में 31 छात्रों ने दाखिला लिया। वर्ष 1916 में पहला बैच पास आउट हुआ। यह विश्व युद्ध का वक्त था। युद्ध में बड़ी तादाद में ब्रिटिश सैनिक घायल हो गए थे। ऐसे में ब्रिटिश हुकूमत सैनिकों के जीवन रक्षा को लेकर चिंतित थी। उन्हेंं दक्ष डॉक्टरों की आवश्यकता थी। फिर सैनिकों के इलाज के लिए ब्रिटिश आर्मी मेडिकल कोर में केजीएमयू का पहला पूरा बैच भेजा गया। डॉक्टरों ने बड़ी तादाद में घायल सैनिकों का इलाज कर उनकी जान बचाई। पूरी दुनिया ने यहां के डॉक्टरों के जज्बे को सलाम किया। जॉर्जियंस की नींव ही संघर्षों से भरी पड़ी है। एक मार्च 1921 को मेडिकल कॉलेज को लखनऊ विश्वविद्यालय से संबद्ध किया गया। वहीं वर्ष 2002 में मेडिकल कॉलेज को यूनिवर्सिटी में तब्दील कर दिया गया।

नेपाल भूकंप-केदारनाथ प्रलय में बचाई हजारों की जानें

बात वर्ष 2015 की है। नेपाल में भयानक भूकंप आया। पड़ोसी देश में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई। हजारों की तादाद में लोग घायल हुए। ऐसे में केंद्र सरकार ने नेपाल की मदद करने का फैसला किया और केजीएमयू की टीम वहां भेजने का निर्देश दिया। इसके बाद तत्कालीन कुलपति प्रो. रविकांत ने नेपाल स्पेशल-45 टीम बनाई। ट्रॉमा सर्जरी के विभागाध्यक्ष डॉ. संदीप तिवारी के नेतृत्व में बस के जरिए डॉक्टरों की टीम नेपाल पहुंची। यहां के दाधिंग, सिलेंटर जैसे तबाही वाले इलाकों में टीम ने रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया। कई घायलों की मौके पर ही सीमित संसाधनों से माइनर सर्जरी कर डाली। गंभीर रूप से घायलों को ले जाकर अस्पताल में बड़े ऑपरेशन किए। फिर नेपाल के डॉक्टरों को डिजास्टर एंड ट्रॉमा मैनेजमेंट सिखाकर कई दिनों बाद वापस लौटे। वहीं 2013 में केदारनाथ में आए महाप्रलय में आर्मी ने मोर्चा संभाला। मदद के लिए केजीएमयू की टीम भी बद्रीनाथ पहुंची। यहां 10 से 12 डॉक्टरों की टीम ने हजारों फंसे यात्रियों को उपचार मुहैया कराया।

जान की परवाह छोड़ वायरस से जंग

कोरोना को लेकर केंद्र सरकार ने अलर्ट जारी किया। जनवरी में ही केजीएमयू ने तैयारी शुरू कर दी। वायरस से अनजान डॉक्टरों ने यूपी की पहली बीएसएलथ्री-लैब शुरू की। यहां आगरा का मरीज पहला कोरोना पॉजिटिव पाया गया। साथ ही 11 मार्च को शहर में पहला कोरोना मरीज मिला। राजधानी के कई इलाकों को ब्लॉक कर दिया गया। हर तरफ सन्नाटा व घर-घर भय पसरा हुआ था। अपने भी संक्रमित मरीजों से किनारा कर रहे थे। ऐसे में केजीएमयू के डॉक्टरों ने आगे बढ़कर इलाज की कमान संभाली। उस वक्त वायरस से निपटने की कोई पुख्ता रणनीति नहीं थी। असरकारी दवाओं के बारे में भी स्पष्ट नहीं था। बावजूद, मरीज को अनुभवों के जरिए इलाज किया और उन्हें जीवनदान देकर घर भेजा। ऐसे ही कुछ वर्षों पहले रायबरेली के बछरावां में रेल हादसा और थर्मल प्लांट हादसे में तमाम लोगों की जिंदगियां बचाईं।

अंग्रेजों की तीन शर्तों पर पड़ी नींव

डॉ. सुधीर के मुताबिक केजीएमयू को हिंदू राजाओं व नवाबों ने मिलकर बनवाया। लंबे मंथन के बाद 20 अक्टूबर 1905 को अयोध्या के महाराजा प्रताप नारायण सिंह और राजा जहांगीराबाद तसादुक खान ब्रिटिश गर्वनर जेम्स लॉ से मिले। दोनों राजाओं ने प्रदेश की जनता के लिए मेडिकल कॉलेज की स्थापना की मांग की। इस पर ब्रिटिश सरकार ने तीन शर्तें रखीं। पहली शर्त, मेडिकल कॉलेज की स्थापना के लिए आठ लाख रुपये का खर्च भारतीय राजाओं को उठाना होगा। दूसरी, भूमि का प्रबंध भी करना होगा। तीसरी, रकम-जमीन देने के बाद पूरे प्रोजेक्ट का निर्माण ब्रिटिश सरकार कराएगी।

यह भी जानें

  • 07 वर्ग किलोमीटर में फैला परिसर, चार संकाय हैं
  • 75 विभागों का यूनिवर्सिटी में गठन, 56 का संचालन 
  • 4400 बेडों की क्षमता है, आधा दर्जन मेडिकल कॉलेज जुड़े
  • 01 पैरामेडिकल कॉलेज और सात नॄसग कॉलेज हैं संबद्ध
  • 525 फैकल्टी के पद, 750 रेजीडेंट, 5000 स्थाई कर्मी
किस कोर्स में कितनी सीटें

  • एमबीबीएस-250
  • बीडीएस-70
  • एमडी-एमएस-272
  • एमडीएस-43
  • डीएम-एमसीएच-56
  • एमएससी नॄसग-50
  • बीएससी नॄसग-100
  • एमफिल-08
  • बीएससी-आरटी-05
  • एमएचए-60
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