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सादे कागज पर लिए साइन, यूपी के इस अस्पताल में बिना सहमति के निकाला गुर्दा; मरीज बोला- किसी अन्य को देने के लिए...

आयोग ने हास्पिटल व डाक्टर पर 1.35 करोड़ रुपये का हर्जाना ठोंका है। ब्याज सहित करीब दो करोड़ से अधिक भुगतान करना होगा। प्रमुख सचिव स्वास्थ्य व मेडिकल एजुकेशन डीजीपी व मेडिकल काउंसिल को कार्रवाई व जांच के लिए आयोग का निर्णय भेजने का आदेश दिया है। निबंधक को 15 दिन में आदेश की अनुपालन आख्या के साथ पत्रावली पीठ के समक्ष प्रस्तुत करना होगा।

By Dharmesh Awasthi Edited By: Aysha Sheikh Updated: Mon, 01 Apr 2024 10:37 AM (IST)
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सादे कागज पर लिए साइन, यूपी के इस अस्पताल में बिना सहमति के निकाला गुर्दा

जागरण संवाददाता, लखनऊ। सादे कागजों पर मरीज से हस्ताक्षर कराकर गुर्दे में पथरी का आपरेशन किया गया। डाक्टर ने बिना सहमति मरीज का बायां गुर्दा निकाल लिया। राज्य उपभोक्ता आयोग ने इसे मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया के निर्देशों का उल्लंघन माना है।

आयोग ने हास्पिटल व डाक्टर पर 1.35 करोड़ रुपये का हर्जाना ठोंका है। ब्याज सहित करीब दो करोड़ से अधिक भुगतान करना होगा। प्रमुख सचिव स्वास्थ्य व मेडिकल एजुकेशन, डीजीपी व मेडिकल काउंसिल को कार्रवाई व जांच के लिए आयोग का निर्णय भेजने का आदेश दिया है। निबंधक को 15 दिन में आदेश की अनुपालन आख्या के साथ पत्रावली पीठ के समक्ष प्रस्तुत करना होगा।

कन्नौज जिले के भगवानपुर मरंदनगर निवासी दीपक कुशवाहा के पेट में 24 जून 2013 को दर्द शुरू हुआ, उसने रामा मेडिकल कालेज हास्पिटल एवं रिसर्च सेंटर जीजी रोड मंधना थाना बिठूर कानपुर नगर में दिखाया। तीन जुलाई 2013 को दीपक रिसर्च सेंटर में डा. प्रफुल्ल गुप्ता से मिला तो उन्होंने बताया कि स्टोन आपरेशन से निकाला जाएगा।

दीपक से कई सादे कागजों पर हस्ताक्षर कराकर आपरेशन करने के बाद नौ जुलाई 2013 को उसे घर भेज दिया। असहनीय दर्द से राहत न मिलने पर 29 जुलाई 2013 को फिर रिसर्च सेंटर आया, अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट देखकर बताया गया कि उसके बायां गुर्दा नहीं है। यह सुनकर दीपक बेहोश में गया। पुलिस ने उसकी रिपोर्ट नहीं लिखी, तब उसने न्यायालय के माध्यम से एफआइआर दर्ज कराई।

राज्य उपभोक्ता आयोग में सुनवाई आयोग के सदस्य राजेंद्र सिंह व सदस्य विकास सक्सेना ने की। प्रिसाइडिंग जज सिंह ने 140 पेज के निर्णय में लिखा कि पहली बार जब दीपक का अल्ट्रासाउंड हुआ तब डाक्टर ने कहा कि किडनी में स्टैग हार्न स्टोन पाया। इसे दो तरह से निकालते हैं अभिलेख में दर्ज नहीं कि कौन सी प्रक्रिया अपनायी गई। गुर्दे को निकालने के संबंध में कोई सहमति पत्र पत्रावली पर नहीं है।

दीपक ने लगाया गंभीर आरोप

दीपक का आरोप है कि है उसका गुर्दा किसी अन्य व्यक्ति को देने के लिए निकाला गया। जज ने कहा कि आमतौर पर 15 प्रतिशत या उससे कम क्रियाशील रहने पर गुर्दे को निकाला जाता है, किंतु इस संबंध में कोई भी अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया गया। वहीं, गुर्दे की बायोप्सी कराने का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। हास्पिटल की ओर से कहा गया कि आपरेशन के दौरान वादी के पिता को बुलाकर उनसे कहा कि गुर्दे को निकालना पड़ेगा, उन्होंने लिखकर दिया कि बायीं तरफ का गुर्दा प्राप्त कर लिया है।

प्रिसाइडिंग जज ने जैकब मैथ्यू, वीपी शंथा आदि के निर्णयों का उल्लेख करते हुए लिखा कि इसमें डाक्टर की लापरवाही है। वादी से ली गयी अनुमति को स्केन कर दिखाया गया, जहां न किसी सर्जन और न ही एनेस्थेसिया देने वाले डाक्टर के हस्ताक्षर हैं।

आदेश दिया हास्पिटल व डाक्टर वादी को 50 लाख रुपये क्षतिपूर्ति, चिकित्सीय उपेक्षा और सेवा में कमी के मद में दें। वादी को 35 लाख रुपये मानसिक, शारीरिक यंत्रणा, 20,000 रुपये वाद व्यय, 50 लाख रुपये गलत उपचार करने के मद में देना होगा। इन सभी धनराशि पर नौ जुलाई 2013 से 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी 30 दिन देना होगा वरना ब्याज की दर 15 प्रतिशत वार्षिक होगी।

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