परंपरा की मिठास में लिपटा समृद्धि का दशहरा, शहर के इन स्थानों पर होगा रावण का दहन Lucknow News
बुराई पर अच्छाई की विजय के पर्व विजय दशमी पर शहर में रावण के पुतले के दहन से पहले आतिशबाजी का चलन काफी पुराना है।
By Divyansh RastogiEdited By: Updated: Sat, 05 Oct 2019 07:25 AM (IST)
लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। शौर्य और पराक्रम के पर्व दशहरा को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं। अच्छाई के प्रतीक श्रीराम के रावण पर विजय पताका के इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में भी देखा जाता है। एक ओर जहां मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्श मानव जीवन में एक नया रंग भरते हैं तो दूसरी ओर बुराई और घमंड के प्रतीक रावण का हर ओर तिरस्कार होता है।
हर वर्ग अपने तरीके से मनाता है पर्व इस पर्व को समाज का हर वर्ग अपने तरीके से मनाता है। दशहरे को समृद्धि और ज्ञान की देवी मां सरस्वती से भी जोड़ा जाता है। क्षत्रिय समाज इस पर्व को शौर्य के रूप में मनाता है। इस पर्व पर क्षत्रिय समाज के लोग हथियारों की पूजा करके समाज की कुरीतियों को समाज से भगाने का संकल्प लेते हैं। भारतीय संस्कृति सदा से ही वीरता व शौर्य की समर्थक रही है। वहीं, मराठी समाज का मानना है कि शत्रु पर विजय पाने के लिए इसी समय पर प्रस्थान करना चाहिए। इस दिन यदि श्रवण नक्षत्र हो तो विजय नहीं रुकती। इसी दिन दुर्योधन ने पांडवों को जुए में पराजित करके 12 वर्ष का वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास के लिए भेजा था। अज्ञातवास में अजरुन ने अपना धनुष एक शमी वृक्ष पर रखा था और शमी वृक्ष से अपने हथियार उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। विजयकाल में शमी पूजन करने का प्रावधान है।
आतिशबाजी के बीच होता है रावण का दहनबुराई पर अच्छाई की विजय के पर्व विजय दशमी पर शहर में रावण के पुतले के दहन से पहले आतिशबाजी का चलन काफी पुराना है। रंगबिरंगे मेहताबों और पटाखों के बीच पुतला दहन किया जाता है। सितारा, रागिनी, कुमकुम चंदाहार और फिरकी माला जैसे नामों की आतिशबाजी का उल्लास आसमान को रंगीन बनाता है।
उल्लास और समृद्धि का त्योहार
गुजराती समाज के लोग गरबा के माध्यम से उल्लास का पर्व मनाते हैं। नवरात्र के दिनों में हर दिर डांडिया होती है, लेकिन दशहरे के दिन कन्याओं के सिर पर रंगीन घड़ा रखा जाता है और समृद्धि की देवी के रूप में उनकी पूजा की जाती है। गुजराती परेश पटेल ने बताया कि गरबा नृत्य खुशी और समृद्धि की कामना के लिए होता है। इस दिन खास पकवान फाफड़ा और जलेबी का सेवन किया जाता है। नए कपड़ों के साथ ही इस दिन विशेष पकवान जैसे खीर, हलवा और मालपुवा के साथ ही रायता बनाया जाता है। पपीते की चटनी का प्रयोग भी खाने में इस दिन जरूर होता है।
मराठी समाज करता है औजारों की पूजादशहरे के दिन ही मराठार8 शिवाजी ने औरंगजेब के विरुद्ध संघर्ष का एलान किया था और हंिदूू धर्म की रक्षा के लिए इसी दिन प्रस्थान किया था। उन्हीं की याद में मराठी समाज के लोग अस्त्र-शस्त्र के साथ ही औजारों की पूजा करते हैं। मराठी समाज के उमेश पाटिल ने बताया कि दशहरे के दिन मराठी लोग विश्वकर्मा पूजा की भांति औजारों की पूजा करते हैं। दुकानें बंद रहती हैं और नए कपड़े पहन कर एक दूसरे के घरों में जाते हैं और बधाई देते हैं।
इसलिए कहते हैं विजयदशमीदशहरे के पर्व को विजयदशमी भी कहते हैं। आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि मां भगवती का एक नाम विजया भी है। शुंभ निशुंभ के संहार के बाद मां दुर्गा को 'विजया' के नाम से भी जाना जाने लगा था। उन्हीं के नाम से इस दिन को 'विजयदशमी' भी कहते हैं। आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय विजय मुहूर्त होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है। इसलिए भी इस दिन को विजय दशमी कहते हैं।
निकलती है शोभायात्रउत्तराखंड में भगवान के प्रतीकों के साथ ही मनोरंजन के लिए काटरून और जोकरो की यात्र निकाली जाएगी। अल्मोड़ा में यह खास पर्व मनाया जाता है। राजधानी में पांच स्थानों पर होने वाली उत्तराखंड की रामलीलाओं में ऐसा जुलूस निकाला जाता है। उत्तराखंड के गणोश जोशी ने बताया कि उत्तराखंड के गायनशैली में दशहरे पर विजय यात्र निकलती है। पारंपरिक परिधानों को धारण करके लोग जुलूस में शामिल होते हैं।
बच्चे का होता है पहला मुंडन संस्कारदशहरे के दिन सिंधी समाज की ओर से बच्चों को पहला मुंडन संस्कार किया जाता है। संस्कार के दौरान समाज के लोगों को दावत दी जाती है। समाज के नानकचंद लखमानी ने बताया कि सदियों पुरानी परंपरा अभी भी चल रही है। राजधानी के शिव शांति आश्रम में सामूहिक मुंडन कार्यक्रम होते हैं। मान्यता है कि बुराई पर अच्छाई के विजय के पर्व पर इसका आयोजन पहली संतान होने पर परिवार की ओर से किया जात है। हर साल होने वाले आयोजन को लेकर पहले से तैयारियां शुरू हो जाती हैं।
बंगाली समाज का सिंदूर खेलामां दुर्गा के पूजन के बाद इस दिन मां की विसर्जन यात्र निकलती है। विसर्जन यात्र से पहले सुहाग की कामना के लिए महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर मां का आशीर्वाद लेती हैं। बंगाली समाज की प्रिया सिन्हा ने बताया कि पांच दिनों के लिए मां अपने मायके आती हैं। पंडालों में पूजन के बाद अंतिम दिन सिंदूर लगाकर मां को ससुराल के लिए विदा किया जाता है। विदाई से पहले एक दूसरे को मिठाई खिलाकर महिलाएं खुशियां मनाती हैं। फिर सिंदूर से एक दूसरे की मांग भरती हैं। ढाक वादन और धुनुचि नृत्य के साथ मां की विसर्जन यात्र निकलती है। मां के विसर्जन से पहले मां के कान में गुप्त रूप से मन्नत मांग जाती है। सदियों पुरानी परंपरा वर्तमान समय में भी नजर आती है। उड़ीसा और असम में यह पर्व दुर्गा पूजा के रूप में ही मनाया जाता है।
शहर के प्रमुख स्थानों पर पुतला दहन
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।- रामलीला खदरा की ओर से पक्कापुल के पास
- महा जनहित कल्याण समिति गोमतीनगर फेज-दो, नीम उपवन योग पार्क
- श्रीरामलीला कल्याणपुर की ओर से पुतला दहन कल्याणपुर
- बड़ी जुगौली रेलवे क्रासिंग के पास
- सेक्टर-क्यू अलीगंज
- रामलीला मैदान ऐशबाग
- रामलीला मैदान कानपुर रोड एलडीए कॉलोनी सेक्टर-एफ
- महाराजा अग्रसेन घाट मैदान
- विद्या पार्क राजेंद्रनगर
- रामलीला मैदान सदर
- रामलीला मैदान चिनहट
- फैजाबाद रोड एचएएल परिसर
- मेला दशहरा महोना