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जानें- कौन थे राजा महेंद्र प्रताप सिंह जिनके नाम पर यूपी के अलीगढ़ में बन रहा राज्य विश्वविद्यालय

राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अफगानिस्तान में भारत की अंतरिम सरकार बनाई थी। ये वो दौर था जब स्वतंत्रता आंदोलन चरम पर था। अंग्रेजों ने राजा पर दबाव डालने के लिए वर्ष 1923 में राजा महेंद्र प्रताप सेंट्रल एक्ट लाकर उन्हें रियासत से बेदखल कर संपत्ति कब्जे में ले ली।

By Umesh TiwariEdited By: Updated: Tue, 14 Sep 2021 06:02 PM (IST)
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महेंद्र प्रताप सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के मुरसान रियासत के राजा थे।
लखनऊ, जेएनएन। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में राजा महेन्द्र प्रताप सिंह राज्य विश्वविद्यालय की सौगात दी। पीएम मोदी ने इस विश्वविद्यालय की आधारशिला अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पास में रखी है। इस विश्वविद्यालय का निर्माण 101 करोड़ रुपये के बजट से 94 एकड़ जमीन पर लोधा ब्लाक के गांव मूसेपुर में होगा। वर्ष 2023 तक इसका निर्माण पूरा होना है। 396 के करीब डिग्री कालेज इस विश्वविद्यालय से संबद्ध होंगे। सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस विश्वविद्यालय की घोषणा वर्ष 2017 में इगलास विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव से पहले की थी। देश की आजादी के लिए अपना जीवन कुर्बान करने वाले राजा महेंद्र प्रताप के नाम कोई इमारत व स्मारक न होने के चलते उनके नाम से विश्वविद्यालय का नाम रखा गया।

महेंद्र प्रताप सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के मुरसान रियासत के राजा थे। उनका जन्म एक दिसंबर 1886 में और मृत्यु 29 अप्रैल 1979 को हुई थी। देश को आजाद कराने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने वाले जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह के इतिहास के जितने पन्ने पलटेंगे, सभी उनके संघर्ष की कहानी से भरे मिलेंगे। देश की खातिर उन्होंने सब कुछ न्यौछावर कर दिया था, उनके परिवार ने भी बड़ी मुसीबत झेली।

राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने जब अफगानिस्तान में भारत की अंतरिम सरकार बनाई तो अग्रेज बौखला गए। उनकी हाथरस रियासत की संपत्ति पर अधिकार जमा लिया और राजा को बेदखल कर दिया। इसके खिलाफ राजा के बेटे प्रेम प्रताप सिंह ने आवाज उठाई। अंग्रेजों ने इस शर्त पर संपत्ति लौटाई कि राजा का इस पर कोई हक नहीं होगा। देश आजाद होने के बाद इस पर संसद में बहस हुई तब राजा को संपत्ति पर पुन: अधिकार मिल सका।

राजा महेंद्र प्रताप ने अफगानिस्तान में एक दिसंबर, 1915 को भारत की अंतरिम सरकार बनाई थी। ये वो दौर था जब स्वतंत्रता आंदोलन चरम पर था। अंग्रेजों ने राजा पर दबाव डालने के लिए वर्ष 1923 में राजा महेंद्र प्रताप सेंट्रल एक्ट लाकर उन्हें रियासत से बेदखल कर संपत्ति कब्जे में ले ली। राजा के प्रपौत्र चरत प्रताप सिंह के अनुसार अंग्रेजों के इस फैसले को राजा के बेटे प्रेम प्रताप ने चुनौती दी और कहा कि हम कहां जाएंगे। इस पर वर्ष 1924 में अंग्रेज सरकार ने नया आदेश जारी कर परिवार को संपत्ति वापस कर दी, लेकिन राजा का संपत्ति से मालिकाना हक छीन लिया।

वर्ष 1946 में प्रेम प्रताप के निधन के बाद सारे अधिकार उनके बेटे अमर प्रताप को मिल गए। आजादी के बाद राजा अपने देश आए तब वर्ष 1960 में संसद ने ब्रिटिश सरकार की शर्त खत्म करते हुए राजा को संपत्ति पर हक दिलाया। इसके लिए राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम से बिल पास हुआ। किसी नागरिक के लिए संसद में पास हुआ यह देश का पहला व्यक्तिगत बिल भी था।

राजा दुनिया की सबसे पुरानी ट्रैवल कंपनी थामस कुक के मालिक के साथ बिना पासपोर्ट कंपनी के स्टीमर से इंग्लैंड गए। उनके साथ स्वतंत्रता सेनानी स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती के पुत्र हरिचंद्र भी थे। इंग्लैड से राजा जर्मनी गए। वहां से बुडापेस्ट (हंगरी), टर्की होकर अफगानिस्तान पहुंचे और काबुल में भारत के लिए अंतरिम सरकार की घोषणा की। इस सरकार के राष्ट्रपति राजा स्वयं बने और प्रधानमंत्री गदर पार्टी के नेता मौलाना बरकतुल्ला खां को बनाया। इसके बाद अफगानिस्तान ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।

इसी दौरान राजा रूस गए और लेनिन से मुलाकात की, मगर लेनिन से उन्हें सहायता नहीं मिली। अफगानिस्तान में भारत की अंतरिम सरकार वर्ष 1915 से 1919 तक रही। इसके बाद राजा वर्ष 1946 तक विदेश में रहे। लौटने पर कोलकाता हवाई अड्डे पर उनका स्वागत बेटी भक्ति ने किया। सरदार पटेल की बेटी मणिबेन भी साथ थीं। राजा देहरादून से निर्बल सेवक नामक समाचार पत्र निकालते थे। उसमें उन्होंने जर्मन के पक्ष में लेख लिखे थे। इस पर अंग्रेजों ने राजा पर 500 रुपये का जुर्माना लगाया था। इस जुर्माने ने राजा के अंदर देश को आजाद कराने की इच्छा और मजबूत की थी।

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