Ghosi: भाजपा के लिए सबक है घोसी के नतीजे, लोकसभा चुनावों में इन बातों को नजरअंदाज करना पड़ सकता है भारी
Ghosi By Election Result घोसी की हार के बाद पार्टी के कई वरिष्ठ पदाधिकारी भी महसूस कर रहे हैं कि दलबदलुओं को आंख मूंदकर तरजीह देने की बजाय पार्टी को अपने पुराने कार्यकर्ताओं पर भरोसा करने के साथ ही प्रत्याशी चयन में जमीनी हकीकत पर भी गौर करना होगा। हर कीमत पर जीत के लिए तथाकथित जिताऊ उम्मीदवार का दांव उलटा भी पड़ सकता है।
By Rajeev DixitEdited By: Nitesh SrivastavaUpdated: Mon, 11 Sep 2023 07:37 PM (IST)
Ghosi By Election Result- राज्य ब्यूरो, लखनऊ : घोसी विधानसभा उपचुनाव का परिणाम भाजपा के लिए नसीहत है। हर कीमत पर जीत के लिए तथाकथित जिताऊ उम्मीदवार का दांव उलटा भी पड़ सकता है। खासतौर पर तब जब इसमें अवसरवाद की स्पष्ट छाप हो। यह घोसी के नतीजे (Ghosi Upchunav) ने दिखाया है।
अगले वर्ष होने वाले लोक सभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) की तैयारियों में जुटी भाजपा को उपचुनाव के इस परिणाम से सबक लेकर प्रत्याशियों के चयन में फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ाना होगा।
केंद्र में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के लिए भाजपा सारे जतन कर रही है। पार्टी को सर्वाधिक 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा (Lok Sabha Seats in Uttar Pradesh) उम्मीदें हैं। पार्टी इस रणनीति के तहत काम कर रही है कि यदि लोकसभा चुनाव में अन्य राज्यों में उसकी कुछ सीटें कम भी हो जाएं तो उनकी भरपाई उत्तर प्रदेश से की जा सके।
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उत्तर प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने में प्रत्याशियों के चयन की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। सत्ताधारी दल होने के नाते लोकसभा चुनाव लडऩे की हसरत रखने वाले संभावित दावेदारों में सर्वाधिक आकर्षण भी भाजपा के लिए ही है।
अपना सामाजिक आधार बढ़ाने के लिए पार्टी दूसरे दलों के नेताओं को अपने खेमे में शामिल करती रही है। इनमें ऐसे नेता भी होते हैं जिन पर दलबदलू का ठप्पा लगा होता है। अतीत के अनुभव के आधार पर लोकसभा चुनाव की आहट तेज होते ही
आने वाले दिनों में दलबदल की मंडी सजना तय है। किसी भी कीमत पर जीत के सिद्धांत से वशीभूत भाजपा खुद को औरों से अलग कहते हुए भी दलबदलुओं को गले लगाने का लोभ संवरण नहीं कर सकी है।यह भी पढ़ें: घोसी में दारा सिंह चौहान को मिली हार, ओपी राजभर को भी करारा झटका; शिकस्त के बाद भी मिलेगा मंत्री पद?
सुभासपा (SBSP) से पुन: गठजोड़ के तत्काल बाद ही दारा सिंह चौहान (Dara Singh Chauhan) की भाजपा में फिर वापसी हुई थी। दोनों ही भाजपा पर पिछड़ों-अति पिछड़ों की उपेक्षा का आरोप लगाकर NDA/BJP से अलग हुए थे।दोनों की वापसी के बाद सामाजिक समीकरण के आधार पर भाजपा घोसी में अपने को बीस आंक रही थी लेकिन नतीजे इसलिए उलट रहे क्योंकि पार्टी ने दारा सिंह चौहान को प्रत्याशी बनाने से पहले उन्हें लेकर जनता की स्वीकार्यता की जमीनी हकीकत का आकलन नहीं किया था।
यही वजह थी कि धुआंधार चुनाव प्रचार के बावजूद घोसी (BJP Loose in Ghosi By Election) में भाजपा 42 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हारी। लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी को प्रदेश में बड़े पैमाने पर टिकट के दावेदारों की छंटाई-बिनाई करनी होगी।यह भी पढ़ें: घोसी सीट पर हुए उपचुनाव के दिन कैसे राउंड-दर-राउंड सपा के सुधाकर सिंह से पिछड़ते चले चले गए बीजेपी के दारा सिंह चौहान
घोसी की हार के बाद पार्टी के कई वरिष्ठ पदाधिकारी भी महसूस कर रहे हैं कि दलबदलुओं को आंख मूंदकर तरजीह देने की बजाय पार्टी को अपने पुराने कार्यकर्ताओं पर भरोसा करने के साथ ही प्रत्याशी चयन में जमीनी हकीकत पर भी गौर करना होगा।
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