World Heritage Week: बदहाली की कहानी कह रहा है लखनऊ के कैसरबाग का लाखी दरवाजा, जानिए नाम से जुड़ा रोचक किस्सा
World Heritage Week आज लाखी दरवाजा बदहाली की कहानी कह रहा है। रोजाना भारी भरकम ट्रैफिक भी इसी दरवाजे के नीचे से गुजरता है। वहीं यह अब जर्जर भी हो चुका है। दरवाजे पर लगी लकड़ियां भी टूटी हुई हैं।
लखनऊ, [दुर्गा शर्मा]। लखनऊ अपने एक से एक दरवाजों के लिए भी प्रसिद्ध है। ये दरवाजे शहर के समृद्ध इतिहास और स्थापत्य कला के अनूठे झरोखे हैं। शहर की आत्मा माने जाने वाले कैसरबाग में ऐसा ही एक दरवाजा है, जिसे लाखी दरवाजा कहते हैं। हम विश्व धरोहर सप्ताह मना रहे हैं। तो आइए इसी कड़ी में आपको सुनाते हैं शहर के इस विशेष दरवाजे की खास कहानी...।
1850 में नवाब वाजिद अली शाह ने कैसरबाग की स्थापना की थी। इसी कैसरबाग में बागीचे के रूप में रंग-बिरंगे फूलों और पेड़-पौधों की खूबसूरत दुनिया भी उन्होंने सजाई थी, जिसे कैसरबाग पैलेस का नाम दिया गया। इस मनोरम बगीचे के दोनों तरफ दो भव्य दरवाजे बनाए गए थे। पूर्व और पश्चिम में बनाए गए दोनों दरवाजों पर उस समय एक लाख रुपये प्रति दरवाजा खर्च हुए थे।
इसी वजह से दरवाजे का नाम लाखी दरवाजा पड़ा। इसके तीन दर वाले फाटकों पर चार बुर्ज बने हुए हैं। धीरे-धीरे यह लाखी दरवाजा अपनी पुरानी शानोशौकत और रौनक खोता जा रहा है। पहले इस दरवाजे के ऊपरी हिस्से पर सुनहरे रंग के गुंबद का छत्र रखा रहता था और उसी छत्र पर अवध का झंडा भी लहराता था। दरवाजे की मेहराबें भी खास हैं।
मेहराबों पर तीन मछलियों की आकृति बनी हुई है। मछली की आकृति अवध का प्रतीक भी रही हैं। इस दरवाजे से एक और कहानी जुड़ी हुई है। माना जाता है कि यह दरवाजा नवाब वाजिद अली शाह के शहर से विदा लेने का भी साक्षी है। नवाब बंगाल जाने के लिए महल से निकले थे और पूरी की पूरी आवाम उन्हें विदा करने के लिए इसी दरवाजे भी नम आंखों के साथ खड़ी हुई थी।
आज लाखी दरवाजा बदहाली की कहानी भी कह रहा है। रोजाना भारी भरकम ट्रैफिक भी इसी दरवाजे के नीचे से गुजरता है। वहीं, यह अब जर्जर भी हो चुका है। दरवाजे पर लगी लकड़ियां भी टूटी हुई हैं। वहीं, यहां विज्ञापन के पोस्टर आदि भी चस्पा रहते हैं।