जितेंद्र उपाध्याय,
लखनऊ। नौकरी की तलाश में देश छोड़कर इजरायल गए चिनहट के डॉ. नितिन कुमार सिंह अपने वतन लौटकर अपने जैसे युवाओं को रोजगार से जोड़ रहे हैं। मोबाइल मधुमक्खी पालन कर खुद के साथ ही साथी युवाओं के जीवन में समृद्धि की मिठास घोल रहे हैं। कई युवा ऑनलाइन जुड़कर अपने जीवन में समृद्धि का उजाला ला रहे हैं।
डॉ. नितिन कुमार सिंह पत्नी डॉ. पॉपी सिंह के साथ इजरायल में बतौर वैज्ञानिक काम कर रहे थे। लाखों रुपये वेतन को छोड़कर वतन लौटकर ऑनलाइन व ऑफलाइन के माध्यम से युवाओं को प्रशिक्षण दे रहे हैं, वह भी निश्शुल्क।
एक बाक्स और पांच हजार का फायदा
डॉ. नितिन कुमार सिंह का कहना है कि मधुमक्खी के एक बाक्स की कीमत चार हजार रुपये है और एक साल में पांच हजार का शहद निकलता है। मोम व डंग के साथ ही अन्य उत्पाद भी निकलते हैं। ऐसे में एक साल में पूरा खर्च निकल जाता है और अगले साल से फायदा शुरू हो जाता है। 300 मोबाइल बाक्स से मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। कोई भी युवा उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग से संपर्क कर 50 प्रतिशत अनुदान प्राप्त कर सकता है।
खाद्य पदार्थों में उपयोग होता है शहद
उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण के निदेशक डॉ. वीबी द्विवेदी ने बताया कि मधुमक्खी न केवल जैव विविधता और प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र व प्रदूषण को कम करने में अपनी भूमिका निभाने वाली मधुमक्खी से निकला शहद विश्व के 33 प्रतिशत खाद्य पदार्थों में प्रयोग होता है। किसानों और युवाओं को मधुमक्खी पालन से जोड़ा जा रहा है।
शहद से बढ़ती है रोग प्रतिरोधक क्षमता
रानी लक्ष्मी बाई संयुक्त चिकित्सालय की चिकित्सक डॉ. शशि वर्मा ने बताया कि शहद शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है। नींबू और शहद मोटापे को कम करने में भी कारगर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इम्युनिटी बढ़ाने में शहद को कारगर होने की बात कही है।
इसलिए मनाया जाता है विश्व मधुमक्खी दिवस
20 मई 1734 को मधुमक्खी पालन की आधुनिक तकनीक के जनक कहे जाने वाले एंटोन जान्सा का जन्म हुआ था। संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्यों ने 2017 में उनकी जयंती पर विश्व मधुमक्खी दिवस मनाने का निर्णय लिया था। इसलिए 20 मई को हर साल दिवस मनाया जाता है।