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सर्विक्स की प्री कैंसर स्टेज में 'LEEP' से संभव है कारगर इलाज, रिसर्च में हुआ खुलासा

क्वीनमेरी अस्पताल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ रेखा सचान के शोध में हुआ खुलासा सर्विक्स के प्री कैंसर स्टेज में लीप प्रोसीजन से संभव है इलाज।

By Anurag GuptaEdited By: Updated: Mon, 22 Jun 2020 03:36 PM (IST)
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सर्विक्स की प्री कैंसर स्टेज में 'LEEP' से संभव है कारगर इलाज, रिसर्च में हुआ खुलासा
लखनऊ [राफिया नाज]। गर्भाशय ग्रीवा या सर्विक्स के घाव को प्री कैंसर स्टेज में ही डायग्नोस कर लिया जाए तो इसे कैंसर में बदलने से राेका जा सकता है। प्री कैंसर घाव या लीजन में सबसे अच्छा ट्रीटमेंट लीप इलेक्ट्रोसर्जिकल एक्सिसिशन का है। लीप सर्जिकल प्रोसीजर से न केवल सर्विक्स के प्री कैंसर लीजन को जड़ से खत्म किया जा सकता है बल्कि आगे चलकर कैंसर होने का खतरा भी नहीं रहता है। ये रिसर्च क्वीनमेरी अस्पताल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ रेखा सचान की रिसर्च में सामने आई है। इस रिसर्च को अंतरराष्ट्रीय जनरल में छपने के लिए भेजा गया है। 

  

बच्चेदानी में अनियमित स्राव को न करें अनदेखा 

ये रिसर्च क्वीनमेरी अस्पताल में 62 महिलाओं में की गई थी। जिन महिलाओं को लंबे समय से ल्यूकोरिया, पीरयड में अनियमितता, संबंध बनाने के बाद रक्तस्राव या रजोनिवृत्ति के बाद भी रक्तस्राव की समस्या थी। डॉ रेखा सचान ने बताया कि ये सभी सर्विक्स कैंसर के लक्षण हो सकते हैं, इसलिए इन महिलाओं की पहले  पैप स्मीयर जांच की जाता है। जिसमें कैंसर का संदेह होने पर कोल्पोस्कोपी की जाती है। अगर कोल्पोस्कोपी भी आसमान्य आती है तो बायोप्सी की जाती है। बायोप्सी में अगर प्री कैंसर स्टेज निकलती है तो लीप इलेक्ट्रोसर्जिकल एक्सिसिशन किया जाता है।  

क्या है लीप इलेक्ट्रोसर्जिकल एक्सिसिशन

लीप एक सर्जिकल प्रोसीजर है, ये एक गोल छल्ले की तरह होता है। जिसमें इलेक्ट्रिक करंट पास होता है। इसे बच्चेदानी के मुंह पर जहां प्री कैंसर लीजन होता है वहां लगाया जाता है और लीजन या घाव को निकाल लिया जाता है।  

ऐसे होती है जांच 

बायोप्सी में अगर सर्विक्स या बच्चेदानी के मुंह के घाव में कैंसर निकलता है तो यदि घाव को ऑपरेशन किया जा सकता है तो ऑपरेशन किया जाता है। अगर लीजन ऑपरेशन के लायक नहीं हुआ तो कीमोथेरेपी और रेडियाेथेरेपी दी जाती है। वहीं बायोप्सी में हाई ग्रेड इंट्राएपिथियल लीजन ( एचएसआइएल) प्री कैंसर स्टेज निकले जिसका आगे चलकर कैंसर में बदलने की पूरी संभावना होती है। ऐसे में लीप किया जाता है। 

कैसे होती है पहचान 

डॉ सचान ने बताया कि कोल्पोस्कोपी में एक स्वीड स्कोर पैमाना होता है। जिसके सात प्वांइट से ज्यादा लक्षण मिलने पर लीप करने का फैसला लिया जाता है। जैसे कॉलपोस्कोपी में सर्विक्स में एसिटिक एसिड लगाने पर वाइट लीजन दिखना, आयोडीन लगाने पर लीजन का ब्राउन न होना व वहां ब्लड वैसल्स का एब्नार्मल दिखना। आदि के स्वीड स्कोर के आधार पर लीप करने का निर्णय लिया जाता है। 

रिसर्च में शामिल छह महिलाओं का प्रोसिजर किया गया। जब बाद में लीजन की हिस्टोपैथोलॉजी की गई तो उसमें कैंसर निकला जो कि बायोप्सी में नहीं आया था। वहीं बाकि महिलाएं जिसमें  स्वीड स्कोर सात से ज्यादा था उनमें (सीआइएन3- सर्वाइकल इंट्रापीथेलियल नियोप्लासिया lII मिली यानि हाई ग्रेड प्री कैंसर स्टेज मिली। इन महिलाओं में लीप किया गया और सर्विक्स के घाव को निकाल दिया गया। इसमें मरीज को किसी भी तरह की रेडियो और कीमोथेरेपी की जरूरत भी नहीं पड़ी। साथ ही आगे चलकर सर्विक्स कैंसर होने की आशंका भी नहीं रहती है। वहीं जिन महिलाओं में स्पष्ट कैंसर मिला उनकी बच्चेदानी निकाल दी गई।

सावधानी 

लीप प्रोसीजर के बाद भी महिलाओं को सावधानी के तौर पर हर तीन साल पर पैप स्मीयर की जांच करवाते रहना चाहिए। 

लीप के फायदे 

प्री कैंसर स्टेज में लीजन के पता चलने पर उसे लीप सर्जरी से निकालकर कैंसर की आशंका को समाप्त किया जा सकता है। साथ ही मरीज काे केवल लोकल एनेस्थीसिया दिया जाता है। एक ही दिन में अस्पताल से छुट्टी हो जाती है।

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