Lok Sabha 2024: यूपी की इन 17 दलित सीटों पर है अखिलेश की नजर, दलितों को साधने के लिए कर रहे हैं हर जतन
Lok Sabha 2024 यूं तो प्रदेश में आरक्षित लोकसभा सीटों की संख्या 17 है किंतु 21 से 22 प्रतिशत दलित वोट बैंक अधिकतर सीटों पर निर्णायक स्थिति में है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा सभी 17 दलित सीटों को जीतने में सफल रही थी वहीं 2019 के चुनाव में उसे 15 सीटों पर सफलता मिली थी जबकि दो सीटें बसपा की झोली में गईं थीं।
By Shobhit SrivastavaEdited By: Nitesh SrivastavaUpdated: Tue, 14 Nov 2023 06:27 PM (IST)
राज्य ब्यूरो, लखनऊ। लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इन दिनों PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के तहत अलग-अलग जातियों व समाज को साधने में लगे हुए हैं। वे पिछड़ों व अल्पसंख्यक के साथ सर्वाधिक फोकस दलितों पर कर रहे हैं।
इन्हें लुभाने के लिए सपा मुखिया हर जतन कर रहे हैं। इसी के तहत अब दिसंबर में लखनऊ में आयोजित महादलित समाज कार्यकर्ता सम्मेलन में भी शामिल होंगे।
यूं तो प्रदेश में आरक्षित लोकसभा सीटों की संख्या 17 है किंतु 21 से 22 प्रतिशत दलित वोट बैंक अधिकतर सीटों पर निर्णायक स्थिति में है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा सभी 17 दलित सीटों को जीतने में सफल रही थी वहीं, 2019 के चुनाव में उसे 15 सीटों पर सफलता मिली थी जबकि दो सीटें बसपा की झोली में गईं थीं।
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इस बार सपा अध्यक्ष की भी नजर इन 17 सीटों पर है। वे लगातार दलित मतदाताओं को लुभाने के प्रयास कर रहे हैं। मध्य प्रदेश चुनाव प्रचार के दौरान भी सपा मुखिया ने आदिवासी समाज के घर जमीन पर बैठकर खाना खाया था।
इससे पहले भी उन्होंने अपनी पार्टी के संविधान में संशोधन कर लोहिया वाहिनी की तर्ज पर बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर वाहिनी का गठन किया। इसमें दलित नेताओं को शामिल किया। अखिलेश डॉक्टर लोहिया के साथ ही डॉक्टर आंबेडकर का भी नाम हर मौके पर लेते हैं।
यह भी पढ़ें: MP Election 2023: राज्य की बदहाली के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों जिम्मेदार, कटनी में जमकर बरसे अखिलेश यादवअब सपा अध्यक्ष राजधानी लखनऊ में दिसंबर में आयोजित महादलित समाज कार्यकर्ता सम्मेलन में शामिल होने जा रहे हैं। इस सम्मेलन का आयोजन बारह संघ विमुक्त घुमंतू जनजाति समाज कर रहा है।
दरअसल, अंग्रेजों ने विमुक्त और घुमंतू जनजातियों पर 12 अक्टूबर 1871 में क्रिमिनल टाइप एक्ट कानून लगाया था। इसमें इन जातियों को घोर यातनाएं दी जाती थीं। 31 अगस्त 1952 को भारत सरकार ने इस कानून को हटाया था।देश में 193 विमुक्त और घुमंतू जनजातियां हैं इन्हें कहीं अनुसूचित जाति कहीं पिछडे़ वर्ग में और बहुत सारे लोगों को तो कोई भी जाति का प्रमाण पत्र नहीं दिया जाता है। अखिलेश इनके सम्मेलन में जाकर यह संदेश देने की कोशिश करेंगे कि उनकी पार्टी ही महादलित समाज के साथ मजबूती से खड़ी है।
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