Lok Sabha Election 2024: चुनाव-दर-चुनाव ‘हाथ’ से खिसक रहा जनाधार, यूपी में बूथ स्तर तक ताकत जुटाने में जुटी कांग्रेस; पढ़ें ये रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश में अस्तित्व बचाने के लिए इस बार मैदान में उतरी कांग्रेस ने सपा से हाथ मिलाया है। यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि पेपर लीक से लेकर फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को मुद्दा बना रही कांग्रेस राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा से कार्यकर्ताओं में जागे उत्साह के दम पर उत्तर प्रदेश में कैसे नतीजे हासिल कर पाती है।
आलोक मिश्र, राज्य ब्यूरो। चुनाव दर चुनाव प्रदेश में अपना जनाधार खोती कांग्रेस इस बार बूथ स्तर तक ताकत जुटाने की पुरजोर कोशिश में दिख रही है। अस्तित्व बचाने के लिए इस बार मैदान में उतरी कांग्रेस ने सपा से हाथ भी मिलाया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि पेपर लीक से लेकर फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को मुद्दा बना रही कांग्रेस राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा से कार्यकर्ताओं में जागे उत्साह के दम पर उत्तर प्रदेश में कैसे नतीजे हासिल कर पाती है। राज्य ब्यूरो के प्रमुख संवाददाता आलोक मिश्र की रिपोर्ट...
देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस के लोकसभा चुनाव में उसके प्रदर्शन के आंकड़े भी ‘हाथ’ के चुनाव-दर-चुनाव जनाधार खिसकने के साक्षी हैं। आंकड़े बताते हैं कि 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सभी 85 सीटों (तब उत्तराखंड की भी पांच सीटें शामिल) पर चुनाव लड़ी थी और 83 सीटों पर जीत का परचम लहराया था। भले ही तब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के साथ जनभावनाओं का ज्वार था, जिसके सहारे पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अपने प्रदर्शन के शिखर को छुआ। देश-प्रदेश की राजनीति में बदले समीकरणों ने जहां दूसरे दलों के लिए नई संभावनाएं जगाईं, वहीं कांग्रेस को अपनों से मायूसी ही मिलती गई। 1984 में 51.03 प्रतिशत वोट हासिल करने वाली कांग्रेस फिर ऐसे जनाधार को वापस नहीं हासिल कर सकी।
भाजपा ने मुश्किल की कांग्रेस की राह
प्रदेश में सपा व बसपा के उदय के साथ ही कांग्रेस पीछे होती गई और भाजपा की प्रखर हिंदुत्व वाली छवि ने उसकी राह और मुश्किल कर दी। ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम कांग्रेस के परंपरागत वोटर माने जाते थे। सपा के उदय के साथ मुस्लिम कांग्रेस से छिटक कर उसके पाले में चला गया। बसपा ने कांग्रेस के दलित वोटबैंक पर कब्जा कर लिया। कांग्रेस से मोहभंग के बाद ब्राह्मणों ने भाजपा का दामन थाम लिया।
वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड के अलग होने के बाद की बात की जाए तो कांग्रेस वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में 80 सीटों पर लड़ी थी और 21 सीटों पर जीत हासिल की थी। पिछले ढाई दशक में यह कांग्रेस का सर्वाधिक उत्साहित करने वाला प्रदर्शन था। इसके पीछे कांग्रेस की मनरेगा व खाद्य सुरक्षा को लेकर नीतियों की बड़ी भूमिका मानी गई थी। कांग्रेस केंद्र में दोबारा सरकार बनाने में सफल हुई थी। इसके बावजूद कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपनी साख को बचाए रखने में कामयाब नहीं रही।
कांग्रेस ने किए कई प्रयोग, लेकिन...
पार्टी ने फिर कई प्रयोग भी किए। प्रियंका वाड्रा को प्रदेश का प्रभारी भी बनाया गया, लेकिन बूथ स्तर पर कमजोर हुई पार्टी के सामने कार्यकर्ताओं में पुराना जोश भरना सपना ही रहा। एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता इसके पीछे पार्टी में अंतरकलह को भी बड़ी वजह मानते हैं। 2014 लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश में 2009 का अपना प्रदर्शन दोहराने को तरसती ही रही। नेहरू-गांधी परिवार का उत्तर प्रदेश से गहरा रिश्ता होने के बाद भी पार्टी खोया दमखम नहीं जुटा सकी। पिछले चुनाव में कांग्रेस रायबरेली की एकमात्र सीट पर ही जीत का स्वाद चख सकी थी। 1998 का लोकसभा चुनाव ऐसा था, जिसमें कांग्रेस के हिस्से एक भी सीट नहीं आई थी।
अमेठी और रायबरेली में साख बचाए रखने की चुनौती से जूझ रही कांग्रेस
कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपनी खोई जमीन तलाशने के साथ ही परंपरागत सीट अमेठी व रायबरेली में अपनी साख को बचाए रखने की चुनौती से जूझ रही है। इससे निपटने के लिए पार्टी सपा से गठबंधन के तहत उसके हिस्से आईं 17 सीटों पर पूरी ताकत झोंकने की तैयारी में है। प्रदेश मुख्यालय में वार रूम की स्थापना की अमेठी व रायबरेली समेत 17 लोकसभा सीटों के 34 हजार बूथों पर एजेंट जुटाए जा रहे हैं।
वार रूम के सदस्य संजय दीक्षित के अनुसार, 17 लोकसभा क्षेत्रों में अब तक 18 हजार बूथ लेवल एजेंट नियुक्त किए जा चुके हैं। शेष को भी जल्द नियुक्त करने की प्रक्रिया चल रही है। इसके अलावा वार रूम के 10 डेस्क हेड भी बनाए गए हैं और सभी को आठ-आठ लोकसभा क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी गई है। इस प्रकार सभी 80 लोकसभा सीटों पर बूथ स्तर पर संगठन को खड़ा किया जा रहा है।
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