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Lok Sabha Election 2024: यूपी चुनाव के नए रण के लिए पालिटिकल केमिस्ट्री, 80 सीटों का ‘गणित’

Lok Sabha Election 2024 विरोधियों की शक्ति में वृद्धि की फिलहाल कोई नीति-रणनीति नजर नहीं आ रही है। विपक्षी बिखराव से यूं खाली मैदान देखकर यदि भाजपा के रणनीतिकारों के मन में सभी 80 सीटें जीतने का भरोसा कौंधने भी लगे तो अतिशयोक्ति कैसे कहें?

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 29 Aug 2022 01:35 PM (IST)
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Lok Sabha Election 2024: यूपी लोकसभा चुनाव के नए रण के लिए कमर कस रहा है।

अजय जायसवाल। महज कुछ माह पहले उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव जब उफान पर था, तब समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव दोहराते रहे कि सपा सभी 403 सीटें जीतेगी। इस दावे ने राजनीतिक गलियारों में पहले तंज के तीखे तीर सहे और परिणाम आने के बाद उपहास, क्योंकि सपा खुद 111 और गठबंधन संग 125 सीटों तक ही पहुंच सकी। खैर, अब यूपी लोकसभा चुनाव के नए रण के लिए कमर कस रहा है।

सर्वाधिक 80 लोकसभा सीटें होने के नाते देश की राजनीति में यूपी का सबसे ज्यादा महत्व तो है ही। चुनाव में लगभग डेढ़ वर्ष का समय है, लेकिन भाजपा अभी से यह दावा कर रही है कि सभी 80 लोकसभा सीटें जीतेंगे। याद रखिए, दावा बिल्कुल सपा जैसा ही है। इस पर बहस और कानाफूसी दोनों संभव है कि क्या ऐसा भी हो सकता है कि गुटों-जातियों के गुच्छे वाली राजनीति के प्रदेश में कोई दल इस तरह भी जीत सकता है? क्या भगवा खेमे का भी यह दावा तंज और उपहास का शिकार तो नहीं हो जाएगा? इसे अतिरेक मानने वाले दोनों पाले में मिल जाएंगे, लेकिन चलिए इस खेमेबंदी से थोड़ा तटस्थ होकर इस सजते रण को देखते हैं।

चूंकि लोकसभा चुनाव होने हैं, इसलिए सीधे वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव को देखते हैं। तब सपा, बसपा इस रणक्षेत्र के महारथी थे और भाजपा कमजोर, लेकिन ऐसी मोदी लहर चली कि विरोधियों के शिविर तहस-नहस हो गए। भाजपा गठबंधन ने 80 में 73 सीटें जीत लीं। यहां से बूस्टर डोज लेकर 2017 के विधानसभा चुनाव में भी 325 सीटें जीतकर भाजपा गठबंधन ने प्रदेश को जाति, धर्म और तुष्टिकरण से जकड़ने वाली जंजीरों को तोड़ दिया। वह भी तब, जब भाजपा को रोकने के लिए सपा-कांग्रेस मिलकर लड़े। विपक्षी खेमा इसी भरोसे बैठा रहा कि सत्ता विरोधी लहर चलेगी तो लोकसभा चुनाव में भगवा किला ढह जाएगा।

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा ने एकदूसरे को सहारा भी देना चाहा, लेकिन भाजपा की लहर के सामने बसपा दस तो सपा पांच सीटों पर ही सिमट कर रह गई। कांग्रेस के राहुल गांधी अमेठी की सीट गंवा बैठे और कांग्रेस केवल एक सीट पर सिमट कर रह गई। तब सपा-बसपा के मिलन से भाजपा की मुट्टी से 2014 की तुलना में कुछ फिसला, लेकिन 64 सीटें जीतने का स्पष्ट संदेश था कि अभी भगवा किला अभेद्य ही है। फिर मोदी मैजिक के साथ ही यूपी में योगी युग भी अपना असर दिखाने लगा। अखिलेश यादव ने रालोद सहित दूसरे छोटे दलों के साथ दम जुटाने का प्रयास किया, लेकिन भाजपा 2022 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन को 273 सीटों तक पहुंचने से न रोक सके। भाजपा के सदैव चुनावी मोड में रहते हुए हर चुनाव को गंभीरता से लेने का एक और नतीजा हाल ही में देखने को मिला कि यादव-मुस्लिम बहुल आजमगढ़ और मुस्लिमों की निर्णायक भूमिका वाली रामपुर लोकसभा सीट के उपचुनाव को भी वह जीतने में कामयाब रही। ऐसे में प्रदेश को भाजपा के लिए आगे भी ‘जिताऊ पिच’ माना जा रहा है। हाल ही में बिजनौर निवासी धर्मपाल सिंह को जहां प्रदेश महामंत्री संगठन का दायित्व सौंपा गया है, वहीं भाजपा नेतृत्व ने क्षेत्रीय-जातीय संतुलन साधने को पहली बार जाट नेता भूपेंद्र सिंह चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी है।

चौधरी के जरिये भाजपा की पश्चिमी यूपी में सपा-रालोद गठबंधन को लोकसभा चुनाव में घेरने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। मोदी-योगी के साथ ही दूसरे प्रभावशाली नेताओं-मंत्रियों और गठबंधन सहयोगियों से भाजपा का पूरब में पहले से दबदबा है। एक्सप्रेसवे के जरिये बुंदेलखंड क्षेत्र में भी ‘कमल’ के खिले रहने के आसार हैं। दूसरी तरफ विधानसभा चुनाव में सिर्फ दो सीट पर सिमटने वाली कांग्रेस कोई सबक लेती नहीं दिख रही। प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी महीनों से खाली है। प्रदेश प्रभारी प्रियंका भी यहां सक्रिय नहीं दिख रहीं। बसपा प्रमुख मायावती बैठकें और ट्वीट करने के अलावा क्षेत्र में कहीं पसीना बहाते नहीं दिखतीं। बची सपा तो अखिलेश यादव पूरे परिवार को किनारे कर अकेले खेवनहार बने हुए हैं। ट्विटर पर सक्रिय रहते यदाकदा जनता के बीच पहुंचते हैं, लेकिन कुछ खास क्षेत्रों तक ही वह सीमित हैं। यादव-मुस्लिम उनके लिए पूरी ताकत लगा चुके हैं। 

[राज्य ब्यूरो प्रमुख, उत्तर प्रदेश]

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