Lok Sabha Elections 2024: UP की सभी 80 सीटों पर जीत के लिए BJP की माइक्रो प्लानिंग, केंद्र में 35 हजार बूथ
UP Political News विधानसभा चुनाव के परिणाम के तुरंत बाद भाजपा ने मिशन 2024 की रणनीति पर काम शुरू कर दिया। करीब 40 हजार बूथ ऐसे मिले जिन पर भाजपा को वोट न के बराबर मिला। वहां अलग-अलग विपक्षी दल और नेताओं का मजबूत प्रभाव है।
By Umesh TiwariEdited By: Updated: Thu, 01 Sep 2022 04:48 PM (IST)
UP News: लखनऊ [जितेंद्र शर्मा]। भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) बोले कि लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha elections 2024) में सभी 80 सीटें जीतेंगे। दोनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya) और ब्रजेश पाठक (Brajesh Pathak) हर मंच से इस दावे को दोहराते हैं और अब प्रदेश संगठन की कमान थामते ही भूपेंद्र सिंह चौधरी (Bhupendra Singh Chowdhary) ने भी विपक्ष के समूल सफाए की ताल ठोंक दी।
विपक्ष इसे सत्ताधारी दल भाजपा का आत्मविश्वास मान सकता है, जबकि भाजपा के रणनीतिकारों ने आत्ममंथन से यह बिसात बिछाई है। माइक्रो प्लानिंग के केंद्र में मुख्यत: 35000 बूथ ही हैं, जिन पर पार्टी 80 सीटें जीतने की कुंजी तलाश रही है।यूं देखा जाए तो भाजपा का विजय रथ 2014 के लोकसभा चुनाव से ही दौड़ रहा है, लेकिन उसकी तुलना में 2019 में 73 से घटकर 64 हुई गठबंधन की सीटें और 2017 के विधानसभा चुनाव की 325 से घटकर 2022 में हुईं 255 सीटों ने 'अलार्म' भी बजाया, जिसे पार्टी के रणनीतिकार कतई नजरअंदाज नहीं करना चाहते।
इसी वर्ष हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम के तुरंत बाद भाजपा ने मिशन 2024 की रणनीति पर काम शुरू कर दिया। इसके लिए 2014 से 2022 तक के चुनाव परिणामों की बूथवार समीक्षा की गई।इसे खंगाला गया कि 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन, 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा, बसपा, रालोद के गठबंधन और फिर 2022 में सपा, रालोद, सुभासपा, प्रसपा, अपना दल कमेरावादी आदि दलों के गठबंधन के बावजूद भाजपा को पूर्ण बहुमत पाने से विपक्ष क्यों नहीं रोक सका।
इस ताकत के साथ इस कमजोरी पर भी दिमागी घोड़े दौड़ाए गए कि किन समीकरणों के चलते 2019 और फिर 2022 में तुलनात्मक रूप से सीटें कुछ घटीं। ऐसे में निष्कर्ष यह निकला कि प्रदेश के कुल पौने दो लाख बूथों में से एक लाख बूथ ऐसे हैं, जिन पर भाजपा 2014 से लेकर लगातार जीत रही है।यहां विपक्ष की किसी रणनीति का असर नहीं दिखाई दिया है। वहीं, करीब 40 हजार बूथ ऐसे मिले, जिन पर भाजपा को वोट न के बराबर मिला। वहां अलग-अलग विपक्षी दल और नेताओं का मजबूत प्रभाव है।
अब जो उतार-चढ़ाव चुनावों में आया, उसके लिए जिम्मेदार रहे मात्र 35000 बूथ। यहां कभी भाजपा का जादू चला, कभी सपा ने अपना प्रभाव जमाया तो कभी यहां का वोटर बसपा की ओर खिसक गया।पार्टी संगठन के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि समीक्षा में यह पाया गया कि 80 सीटें जीतने का लक्ष्य अधिक कठिन नहीं है। इसके लिए बहुत कमजोर सीटों पर पसीना बहाने की जरूरत नहीं है। एक लाख बूथों पर कार्यकर्ताओं को सक्रिय रखना है।
वहां लाभार्थियों से संपर्क रखा जाए तो वहां सेंध लगाने का विपक्ष का प्रयास सफल नहीं हो पाएगा। वहीं, जिन 35 हजार बूथों को लेकर कोई पार्टी पूरी तरह आश्वस्त नहीं है, वहां यदि डेढ़ वर्ष मेहनत की जाए तो भाजपा उन्हें अपने पक्ष में कर सकती है।इसके बाद सिर्फ 40 हजार बूथ बचेंगे, जिन पर सपा, बसपा, कांग्रेस, रालोद और अन्य दलों का आपसी संघर्ष होता रहेगा। इस तरह भाजपा के पास सभी 80 सीटें जीतने की पूरी संभावना है।
बता दें कि भाजपा ने हाल ही में हुए लोकसभा उपचुनाव में सपा से यादव-मुस्लिम गठजोड़ वाली आजमगढ़ और मुस्लिम के निर्णायक वाेट वाली रामपुर सीट अपनी रणनीति से छीन ली। इससे भगवा खेमे का उत्साह काफी बढ़ा हुआ है। इस तरह वर्तमान में भाजपा गठबंधन की 64 सीटें हो गई हैं।शेष बची 14 सीटों में से दो को वह कमजोर होते देख रही है। माना जा रहा है कि सपा के वयोवृद्ध संरक्षक मुलायम सिंह यादव अब शायद मैनपुरी से चुनाव नहीं लड़ें और रायबरेली से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी संभवत: इस बार प्रत्याशी नहीं होंगे। तब उनके स्थान पर चुनाव लड़ने वाले किसी भी अन्य प्रत्याशी को परास्त करना भाजपा के लिए अधिक आसान होगा।
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