पल्लवी की पार्टी को झटके पर झटका, ‘लिफाफा’ नहीं मिला… गठबंधन करके भी ओवैसी ने साथ देने से किया ‘इनकार’
समाजवादी पार्टी गठबंधन से अलग होकर अपना दल कमेरावादी की पल्लवी पटेल द्वारा असदुद्दीन ओवैसी के साथ मिलकर बनाए गए पीडीएम ( पिछड़ा दलित मुस्लिम) न्याय मोर्चा को झटके पर झटका लग रहा है। न्याय मोर्चा को पहला झटका तब लगा जब ओवैसी ने प्रदेश में अपने सिंबल पर प्रत्याशी खड़े करने से इनकार कर दिया। अपना दल कमेरावादी को दूसरा झटका चुनाव चिह्न को लेकर लगा है।
राज्य ब्यूरो, लखनऊ। समाजवादी पार्टी गठबंधन से अलग होकर अपना दल कमेरावादी की पल्लवी पटेल द्वारा असदुद्दीन ओवैसी के साथ मिलकर बनाए गए पीडीएम ( पिछड़ा, दलित, मुस्लिम) न्याय मोर्चा को झटके पर झटका लग रहा है।
न्याय मोर्चा को पहला झटका तब लगा जब ओवैसी ने प्रदेश में अपने सिंबल पर प्रत्याशी खड़े करने से इनकार कर दिया। अपना दल कमेरावादी को दूसरा झटका चुनाव चिह्न को लेकर लगा है। चुनाव आयोग ने अपना दल कमेरावादी द्वारा योगदान रिपोर्ट व वार्षिक आय-व्यय का ब्यौरा न देने के कारण उसका चुनाव चिह्न 'लिफाफा' आवंटित नहीं किया है। पार्टी चुनाव चिह्न आवंटित करने के लिए हाई कोर्ट गई, किंतु वहां उसकी याचिका खारिज हो गई।
सपा से नाराजगी में बनाया नया मोर्चा
दरअसल, समाजवादी पार्टी से नाराज होकर पल्लवी पटेल ने आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी के साथ मिलकर पीडीएम न्याय मोर्चा का गठन 31 मार्च को पहले चरण की नामांकन प्रक्रिया खत्म होने के बाद किया था। इसका गठन सपा के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की काट के लिए पीडीएम (पिछड़ा, दलित, मुस्लिम) के नाम पर किया गया था। इसमें कुछ और छोटे दलों को भी शामिल किया गया था।
पल्लवी पटेल ने यह दावा किया था कि यह मोर्चा लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ ही मुख्य विपक्षी दल सपा को भी घेरेगा और प्रदेश में नया राजनीतिक विकल्प पेश करेगा। मोर्चा ने दो चरणों की नामांकन प्रक्रिया खत्म होने के बाद 13 अप्रैल को सात सीटों पर प्रत्याशी घोषित किए थे। इनमें बरेली, हाथरस, फिरोजाबाद, रायबरेली, फतेहपुर, भदोही व चंदौली शामिल हैं। बरेली के प्रत्याशी रियासत यार खां का पर्चा शुक्रवार को निरस्त हो गया। चुनाव चिह्न न मिल पाने के कारण अब उसका लिफाफा मुक्त चुनाव चिह्न में आ गया है। ऐसे में पार्टी को हर सीट के लिए चुनाव चिह्न की मांग करनी पड़ेगी। जहां लिफाफा नहीं होगा वहां दूसरे चुनाव चिह्न के जरिए लड़ना होगा। इससे पार्टी की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
वहीं, एआईएमआईएम भी प्रदेश में अपने चुनाव चिह्न पर प्रत्याशी नहीं उतार रही है। इसका नुकसान भी मोर्चा को उठाना पड़ सकता है।
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