Lucknow Famous Food: बड़ी स्वादिष्ट है लखनऊ टुंडे कबाब की कहानी, स्वाद की कायल है पूरी दुनिया
Lucknow Famous Food नानवेज खाने के शौकीनों में जितनी शोहरत लखनऊ के टुंडे कबाब ने पाई है उतनी हैदराबादी बिरयानी या किसी और अन्य व्यंजन ने नहीं पाई। लखनऊ के टुंडे कबाब की कहानी बीती सदी की शुरूआत से ही शुरू होती है।
By Vrinda SrivastavaEdited By: Updated: Mon, 15 Aug 2022 04:37 PM (IST)
लखनऊ, जागरण संवाददाता। नानवेज खाने के शौकीनों में जितनी शोहरत लखनऊ के टुंडे कबाब ने पाई है उतनी हैदराबादी बिरयानी या किसी और अन्य व्यंजन ने नहीं पाई। लखनऊ के टुंडे कबाब की कहानी बीती सदी की शुरूआत से ही शुरू होती है, जब 1905 में पहली बार यहां अकबरी गेट में एक छोटी सी दुकान खोली गई।
कहा जाता है लखनऊ आने वाला वो हर शख्स जो नॉनवेज का शौकीन है पता पूछते-पूछते अकबरी गेट की इस दुकान पर एक बार जरूर पहुंचता है। आइए हम आपको रूबरू कराते हैं लखनऊ के उन टुंडे कबाब से जो एक दिन में ही खबरों की सुर्खियां बन गए।
क्या है टुंडे कबाब की कहानी : लखनऊ के टुंडे कबाब की कहानी बीती सदी के शुरूआत से ही शुरू होती है, जब 1905 में पहली बार यहां अकबरी गेट में एक छोटी सी दुकान खोली गई। हालांकि टुंडे कबाब का किस्सा तो इससे भी एक सदी पुराना है। दुकान के मालिक 70 वर्षीय रईस अहमद के मुताबिक, उनके पुरखे भोपाल के नवाब के यहां खानसामा हुआ करते थे।
दरअसल नवाब खाने-पीने के बहुत शौकीन थे, लेकिन बढ़ती उम्र के साथ-साथ उनके दांतों ने उनका साथ छोड़ दिया। ऐसे में उन्हें खाने-पीने में दिक्कत होने लगी। लेकिन बढ़ती उम्र और दांतों के साथ छोडने पर भी नवाब और उनकी बेगम की खाने-पीने की आदत पर कोई खास असर नहीं हुआ। ऐसी स्थिति में उनके लिए ऐसे कबाब बनाने का विचार किया गया, जिन्हें बिना दांत के भी आसानी से खाया जा सके। इसके लिए गोश्त को बेहद बारीक पीसकर और उसमें पपीते मिलाकर ऐसा कबाब बनाया गया जो मुंह में डालते ही घुल जाए।
पेट दुरुस्त रखने और स्वाद के लिए उसमें चुन-चुन कर मसाले मिलाए गए। इसके बाद हाजी परिवार भोपाल से लखनऊ आ गया और अकबरी गेट के पास गली में छोटी सी दुकान शुरू कर दी। हाजी के इन कबाबों की शोहरत इतनी तेजी से फैली कि पूरे शहर-भर के लोग यहां कबाबों का स्वाद लेने आने लगे। इस शोहरत का ही असर था कि जल्द ही इन कबाबों को 'अवध के शाही कबाब' का दर्जा मिल गया।कैसे पड़ा टुंडे कबाब नाम : हाजी जी के इन कबाबों की शोहरत इतनी तेजी से फैली की पूरे शहर भर के लोग यहां कबाबों का स्वाद लेने आने लगे। इस शोहरत का ही असर था कि जल्द ही इन कबाबों को अवध के शाही कबाब का दर्जा मिल गया। इन कबाबों के टुंडे नाम पड़ने के पीछे भी दिलचस्प किस्सा है। असल में टुंडे उसे कहा जाता है जिसका हाथ न हो। रईस अहमद के वालिद हाजी मुराद अली पतंग उड़ाने के बहुत शौकीन थे। एक बार पतंग के चक्कर में उनका हाथ टूट गया। जिसे बाद में काटना पड़ा। पतंग का शौक गया तो मुराद अली पिता के साथ दुकान पर ही बैठने लगे। टुंडे होने की वजह से जो यहां कबाब खाने आते वो टुंडे के कबाब बोलने लगे और यहीं से नाम पड़ गया टुंडे कबाब।
कहा जाता है कोई इसकी रेसीपी न जान सके इसलिए उन्हें अलग-अलग दुकानों से खरीदा जाता है और फिर घर में ही एक बंद कमरे में पुरुष सदस्य उन्हें कूट छानकर तैयार करते हैं। इन मसालों में से कुछ तो ईरान और दूसरे देशों से भी मंगाए जाते हैं। हाजी परिवार ने इस गुप्त ज्ञान को आज तक किसी को भी नहीं बताया यहां तक की अपने परिवार की बेटियों को भी नहीं।कबाब बनाने में पूरे दो से ढाई घंटे लगते हैं। इन कबाबों की खासियत को नीम हकीम भी मानते हैं क्योंकि ये पेट के लिए फायदेमंद होता है। इन कबाबों को परांठों के साथ ही खाया जाता है। परांठे भी ऐसे वैसे नहीं मैदा में घी, दूध, बादाम और अंडा मिलाकर तैयार किए जाते हैं। जो एक बार खाए वो ही इसका दीवाना हो जाए। गौरतलब है कि बॉलीवुड स्टार शाहरूख खान अक्सर टुंडे बनाने वाली इस टीम को मुंबई स्थित अपने घर 'मन्नत' में विभिन्न आयोजनों के दौरान बुलाते रहते हैं। अनुपम खेर, आशा भोंसले, सुरेश रैना, जावेद अख्तर और शबाना आज़मी भी इनके बड़े प्रशंसकों में शामिल हैं।
खास बात ये है कि दुकान चलाने वाले रईस अहमद यानि हाजी जी के परिवार के अलावा और कोई दूसरा शख्स इसे बनाने की खास विधि और इसमें मिलाए जाने वाले मसालों के बारे में नहीं जानता है। हाजी परिवार ने इस सीक्रेट को आज तक किसी को भी नहीं बताया यहां तक की अपने परिवार की बेटियों को भी नहीं। यही कारण है कि जो कबाब का जो स्वाद यहां मिलता है वो पूरे देश में और कहीं नहीं। कबाब में सौ से ज्यादा मसाले मिलाए जाते हैं।
कभी दस पैसे में मिलते थे दस कबाब : खास बात ये है कि इन टुंडे कबाबों की प्रसिद्धी बेशक पूरी देश दुनिया में हो लेकिन हाजी परिवार ने इनकी कीमतें आज भी ऐसी रखी हैं कि आम या खास किसी की जेब पर ज्यादा असर नहीं पड़ता। परिवार का ध्यान दौलत से ज्यादा शोहरत कमाने पर रहा। जब दुकान शुरू हुई थी तो एक पैसे में दस कबाब मिलते थे फिर कीमतें बढ़ने लगी तो लोगों को दस रुपये में भर पेट खिलाते थे।
मीडिया में भी सुर्खियां बटोरी : अपनी शुरूआत के बाद यह दुकान 2017 में पहली बार बंद रही, वजह थी बड़े (भैंस) के गोश्त की सप्लाई न होना। अगले दिन दुकान खुली तो टुंडे कबाब के दीवानों की भीड़ यहां टूट पड़ी, यह जानने के लिए कि सब खैरियत तो है ना।टुंडे कबाब की दुकान बंद होने की खबर देशभर की मीडिया में भी चर्चा में रही, लोग हैरत में थे कि एक पकवान की दुकान बंद होने की खबर मीडिया में भी इतनी चर्चा पा गई। असल में ये असर उस स्वाद का था जिसके सामने देश भर के बड़े बड़े खानसामे और फाइव स्टार होटलों के पकवान भी फीके हैं।
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