हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा को 26 साल में सीमित कर रिहाई का आदेश
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने इस पीड़ा को महसूस करते हुए नागेश्वर की उम्र कैद की सजा को 26 साल की सजा में तरमीम करते हुए तत्काल उसकी रिहाई के आदेश दिये हैं।
By Ashish MishraEdited By: Updated: Tue, 05 Dec 2017 12:48 PM (IST)
लखनऊ (जेएनएन)। न्याय में देरी होने से जेल में बंद मुल्जिम को किस कदर पीड़ा व मानसिक यातना सहन करनी पड़ती है बनारस के मानसिक अस्पताल में उम्र कैद की सजा भुगत रहे नागेश्वर की कहानी इसकी बानगी है जो कि पूरे अपराधिक न्याय व्यवस्था को झकझोर देने वाला है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने इस पीड़ा को महसूस करते हुए नागेश्वर की उम्र कैद की सजा को 26 साल की सजा में तरमीम करते हुए तत्काल उसकी रिहाई के आदेश दिये हैं।
अपराधिक न्याय प्रणाली की व्यवस्था ऐसी कि सजा होने के चंद दिन बाद ही कोर्ट ने उसे जमानत के लायक पाया और जमानत आदेश भी जारी कर दिया लेकिन नागेश्वर की मजबूरी ऐसी कि वह 11 साल तक जमानतियों की व्यवस्था नहीं कर पाया और जब जमानतें दाखिल की गयी तो भी बेवजह अगले 13 साल तक वह रिहाई की बाट जोहता रहा। जमानत होने के 24 साल बाद रिहा होने के बाद जब उसने चंद साल आजादी की सांस ली तो फिर वकील ने ऐसी बेरुखी दिखायी कि कोर्ट ने गैरजमानती आदेश जारी कर दिया जिसके चलते उसे फिर से डेढ़ साल से सजा भुगतने के लिए जेल जाना पड़ा। यहां से उसे मानसिक इलाज के लिए फिर से वाराणसी के मानसिक चिकित्सालय भेज दिया गया है।वहां उसकी हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सुलतानपुर जेल अधीक्षक ने नागेश्वर के दो बेटों को 18 मई 2017 को खत लिखा कि वे आकर अपने पिता की देखरेख करें ताकि अस्पताल की कुछ मदद हो सके। ऐसे में नागेश्वार के वकील एवं सरकारी वकील की ओर से बिना किसी प्रकार के सहयेाग के ही हाईकोर्ट ने अपील पर सुनवाई कर उस पर सोमवार को फैसला सुनाया। कोर्ट ने हत्या को जुर्म करना तो बरकरार रखा परंतु उम्रकैद की सजा को 26 साल तक सीमित कर दिया जो कि वह पहले ही बिता चुका है। इस प्रकार कोर्ट ने नागेश्वर की रिहाई को तत्काल सुनिश्चित करते हुए इस संबध में आदेश भी जारी कर दिये।
यह था इल्जाम
नागेश्वर सिंह पर इल्जाम था कि उसने 19 दिसंबर 1981 को अपने पांच वर्षीय भतीजे की हत्या कर दी थी। हुआ यह कि नागेश्वर अपने भाई पर गांव के दो लोगों से एक दीवानी केस में सुलह के लिए दबाव डाल रहा था। ना मानने पर घटना वाले दिन उसे अपने भाई की पत्नी पर कुल्हाड़ी से हमला किया और जब वह अपने पांच वर्षीय बेटे को लेकर भागने लगी तो नागेश्वर ने इतनी जोर से कुल्हाड़ी चलाई कि कमर पर गंभीर चोट लगने से उसकी मौत हो गयी। घटना की रिपोर्ट मृतक की ओर से पिता ने उसी दिन सुलतानपुर जिले के थाना बल्दीराय पर लिखायी।
केस चला और सुल्तानपुर सत्र अदालत ने 24 अगस्त 1982 को नागेश्वर को दोष सिद्ध करते हुए उसे उम्र कैद की सजा सुना दी । उक्त फैसले को नागेश्वर ने हाई कोर्ट में चुनौती दी जिसने तीन सितंबर 1982 को अपील बहस के लिए स्वीकार कर ली और उसे जमानत दे दी। 11 साल तक नागेश्वर जमानतियों की व्यवस्था नही कर पाया और अंतत: जमानतियों की व्यवस्था करने के बाद भी वह 10 मार्च 2007 को जेल से रिहा हो पाया।
दो दिसंबर 2015 को हाई कोर्ट में उसकी विचाराधीन अपील पर उसके वकील हाजिर नहीं हुए जिसके चलते कोर्ट ने उसके खिलाफ एनबीडब्ल्यू जारी कर दिया और उसे फिर से गिरफ्तार कर 15 फरवरी 2016 को जेल में डाल दिया गया। मानसिक हालत ठीक न होने पर उसे 15 मार्च 2017 को वाराणसी के मानसिक चिकित्सालय में भर्ती करा दिया गया जहां वह अभी भी गंभीर हालत में भर्ती है। जस्टिस महेंद्र दयाल व जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की बेंच ने पूरी व्यवस्था पर सख्त टिप्पणी की। खासतौर से कोर्ट ने नागेश्वर के वकील के लचर रवैये पर तंज कसा। कोर्ट ने कहा कि देरी से मिला न्याय, न्याय नहीं रह जाता।