Lucknow News: आंतों के रोग के लिए पहली बार सीडीआरआई बना रहा दवा, प्रोटीन ‘क्ला’ की कमी से होता है अल्सर
आंतों के सूजन की बीमारी अल्सरेटिव कोलाइटिस में अब तक कोई ठोस कारण सामने नहीं आया है। इसके लिए दुनिया भर में शोध हो रहे हैं लेकिन वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद की लखनऊ स्थित प्रयोगशाला केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई) में बीमारी के कारण के साथ पहली बार निदान की दवा बनाने पर भी खोज की जा रही है।
लखनऊ [रामांशी मिश्रा]: आंतों के सूजन की बीमारी अल्सरेटिव कोलाइटिस में अब तक कोई ठोस कारण सामने नहीं आया है। इसके लिए दुनिया भर में शोध हो रहे हैं, लेकिन वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद की लखनऊ स्थित प्रयोगशाला केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई) में बीमारी के कारण के साथ पहली बार निदान की दवा बनाने पर भी खोज की जा रही है।
इस शोध में सीडीआरआई से निदेशक डाॅ. राधा रंगराजन के निर्देशन में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अमित लाहिरी और शोध छात्रा डॉ. शाजिया खान के साथ केजीएमयू से डॉ. तूलिका चंद्रा और एसजीपीजीआई से डॉ. उदय घोषाल भी शामिल हैं। जून में अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘जर्नल ऑफ क्लिनिकल इन्वेस्टिगेशन- इनसाइट 2023’ में यह शोध प्रकाशित हो चुका है।
सीडीआरआई की शाजिया ने बताया कि फार्माकोलॉजी विभाग में बीते पांच वर्षों से शोध किया जा रहा है। अल्सरेटिव कोलाइटिस आंतों की सूजन का एक रोग है जिसमें शरीर में ऐसे प्रोटीन बनने लगते हैं, जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के विपरीत काम करने लगते हैं। इससे आंतों में सूजन होने के बाद अल्सर हो जाता है। इसकी कोई प्रभावी दवा अभी तक नहीं आई है, कुछ स्टेरॉयड और ब्लॉकर्स हैं, लेकिन उनसे टीबी और अन्य संक्रमण होने की आशंका अधिक होती है।
प्रोटीन की 70 फीसद कमी है कारण
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अमित के अनुसार, चिकित्सा संस्थानों से मरीजों के ऊतक, रक्त नमूने और मल के नमूने मुहैया करवाए जाते हैं जिस पर शोध किया जा रहा है। शोध में यह पता चला है कि जिस जगह अल्सर होता है वहां पर एक प्रोटीन ‘क्ला’ की लगभग 70 फीसद कमी हो जाती है। इससे शरीर को ऊर्जा देने वाला अंग (ऑर्गेनेल) माइटोकॉन्ड्रिया काम करना बंद कर देता है। इसके कारण संक्रमण धीरे-धीरे बढ़ने लगता है। इस प्रोटीन के जरिए दवा बनाने के कई पहलू खोजे जा रहे हैं, जो आंतों की सूजन को कम करने के साथ बीमारी को भी जड़ से खत्म करने में सहायक हो।
एक लाख में 44 को बीमारी
एसजीपीजीआई के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. उदय घोषाल बताते हैं कि यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है। आंतों में गंभीर अल्सर होना ही बीमारी की भयावहता है। एक अध्ययन में एक लाख में 44 व्यक्तियों में इस बीमारी के होने का पता चला है। हालांकि सही इलाज मिले तो मरीज की मृत्यु की आशंका कम हो जाती है।
सही कारणों से हो सकता है निदान
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. तूलिका चंद्रा के अनुसार, अल्सरेटिव कोलाइटिस के कारणों का अब तक पता नहीं चल पाया है। कभी दवा तो कभी कुछ अन्य कारणों से यह बच्चों और बड़ों में हो सकता है। सामान्यत: पेट में दर्द, डायरिया, अपच, मल में खून और बार बार उल्टी इसके लक्षण हैं। यदि इसके असल कारणों का पता चल जाए तो उस आधार पर इलाज के लिए औषधि का निर्माण भी आसान हो सकता है।
सीडीआरआई के शोध में विभाग से रक्त नमूने मुहैया करवाए जाते हैं। इनमें स्वस्थ व्यक्ति के रक्त नमूनों में मौजूद श्वेत रक्त कणिका (डब्ल्यूबीसी या ल्यूकोसाइट) में प्रोटीन फैक्टर, साइटोकाइन नामक एंजाइम समेत कई अन्य पहलू पर शोध किया जा रहा है। इसके बाद बीमारी से जूझ रहे मरीज के नमूने भी जांच किए जाते हैं ताकि दोनों के बीच का अंतर पता चल सके।