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Lucknow: टीले वाली मस्जिद प्रकरण में अगली सुनवाई अब 21 को, पढ़ें क्‍या है पूरा मामला

टीले वाली मस्जिद के मामले में निचली अदालत के आदेश के विरुद्ध दाखिल रिवीजन अर्जी पर अब 21 अक्टूबर को सुनवाई होगी। वर्ष 2013 में निचली अदालत में दाखिल इस वाद में मस्जिद को हटाकर इसका कब्जा हिंदुओं को देने की मांग की गई है।

By Jagran NewsEdited By: Vrinda SrivastavaUpdated: Fri, 07 Oct 2022 07:52 AM (IST)
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टीले वाली मस्जिद प्रकरण में अगली सुनवाई अब 21 को।
लखनऊ, विधि संवाददाता। टीले वाली मस्जिद के मामले में निचली अदालत के आदेश के विरुद्ध दाखिल रिवीजन अर्जी पर गुरुवार को प्रतिवादी पक्ष की ओर से पुनः की गई बहस पूरी हो गई। एडीजे प्रफुल्ल कमल ने अब वादी पक्ष की बहस के साथ ही इस अर्जी निस्तारण के लिए 21अक्टूबर की तारीख तय की है।

प्रतिवादी हिंदू पक्ष की ओर से वकील शेखर निगम ने बहस करते हुए रिवीजन अर्जी की पोषणीयता पर सवाल उठाया और इसे खारिज करने की मांग की। वहीं, रिवीजन दाखिल करने वाले वादी पक्ष की तरफ से अर्जी पर बहस के लिए समय की मांग की गई। वर्ष 2013 में निचली अदालत में दाखिल इस वाद में मस्जिद को हटाकर इसका कब्जा हिंदुओं को देने की मांग की गई है।

कहा गया है कि यह पूरा परिसर शेषनाग टीलेश्वर महादेव का स्थान है। लिहाजा इस पर हिंदुओं को पुजा-अर्चना करने की अनुमति दी जाए व उनके दर्शन में बाधा डालने वालों को रोका जाए। 25 सितंबर, 2017 को निचली अदालत ने इस वाद के खिलाफ प्रतिवादी की ओर से दाखिल आपत्ति को खारिज कर दिया था। निचली अदालत के इसी आदेश को रिवीजन अर्जी में चुनौती दी गई है।

यह वाद लार्ड शेषनागेस्ट टीलेश्वर महादेव विराजमान, लक्ष्मण टीला शेषनाग तीरथ भूमि, डॉ. वीके श्रीवास्तव, रामरतन मौर्य, वेदप्रकाश त्रिवेदी, चंचल सिंह, दिलीप साहू, स्वतंत्र कुमार व धनवीर सिंह की ओर से दाखिल किया गया था।

इसमें युनियन आफ इंडिया जरिए सचिव गृह मंत्रालय, आर्कियोलाजी सर्वे आफ इंडिया की लखनऊ सर्किल, स्टेट आफ यूपी जरिए प्रमुख सचिव गृह, जिलाधिकारी लखनऊ, पुलिस महानिदेशक उप्र, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक लखनऊ, पुलिस अधीक्षक पश्चिम लखनऊ, इंसपेक्टर चौक व सुन्नी सेंट्रल बोर्ड आफ वक्फ जरिए चीफ एग्जीक्यूटिव आफीसर के साथ ही मौलाना फजुर्लरहमान को पक्षकार बनाया गया है।

18 जुलाई, 2017, को अदालत ने मौलाना फजुर्लरहमान की मौत के बाद उनके विधिक उत्तराधिकारी मौलाना फजलुल मन्नान को प्रतिवादी स्थापित करने का आदेश दिया था। निचली अदालत में प्रतिवादी की ओर से इस वाद को खारिज करने की मांग की गई थी।

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