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Navratri 2022: लखनऊ का पूर्वी देवी मंदिर, 400 साल पुराना है इतिहास; देती हैं शुभता का वरदान

Navratri 2022 मंदिर की स्थापना कब हुई इसकी सही जानकारी तो किसी को नहीं है लेकिन कहा जाता है कि मंदिर करीब 400 वर्ष से अधिक पुराना है। ग्राम देवी के रूप में मां की आराधना की जाती थी। यहां लगा नीम का पेड़ मंदिर की पौराणिकता का प्रतीक है।

By Vikas MishraEdited By: Updated: Wed, 28 Sep 2022 02:57 PM (IST)
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Navratri 2022: पूर्वी देवी मंदिर का इतिहास 400 वर्ष पुराना है।

Navratri 2022: लखनऊ, जागरण संवाददाता। नवरात्र में मां की आराधना को लेकर मंदिरों में जहां विशेष तैयारियां होती हैं तो मान्यता के अनुसार श्रद्धालु मां के दर्शन करते हैं। ठाकुरगंज के मां पूर्वी देवी एवं महाकालेश्वर मंदिर बाघंबरी सिद्धपीठ भी शुभता के प्रतीक हैं। यहां हर दिन मां के स्वरूप के अनुसार मां का श्रृंगार होता है। 

इतिहासः मंदिर की स्थापना कब हुई इसकी सही जानकारी तो किसी को नहीं है, लेकिन कहा जाता है कि मंदिर करीब 400 वर्ष से अधिक पुराना है। ग्राम देवी के रूप में मां की आराधना की जाती थी। यहां लगा नीम का पेड़ मंदिर की पौराणिकता का प्रतीक है। शादी, विवाह, मुंडन व गृह प्रवेश जैसे शुभकार्य मंदिर में किए जाते हैं। मां का चेहरा पूरब की ओर है। इस वजह से पूर्वी देवी के रूप में मां का गुणगान होता है। ग्राम देवी से अब मां पूर्वी देवी के रूप में दर्शन होते हैं। मंदिर परिसर में शिव परिवार के साथ ही अन्य देवी देवताओं के प्रतीक भी स्थापित हैं। 

विशेषताः ठाकुरगंज के तहसीनगंज में जामा मस्जिद के पास मां का दरबार स्थापित है। गुंबदों से बने मंदिर के सामने नीम का विशालकाय वृक्ष मां पूर्वी देवी के होने का संकेत देता है। शारदीय नवरात्र पर यहां श्रद्धालुओं का मेला लगा है। सुबह आरती के साथ ही महिलाओं की ओर से भजन संध्या होती है।

दर्शन के लिए भोर से ही कतारें लग जाती हैं। यहां की खास बात यह है कि मंदिर में श्रद्धालु स्वयं प्रसाद चढ़ाते हैं। महिलाओं और पुरुषों के दर्शन की अलग-अलग व्यवस्था है। नवरात्र में हाजिरी लगाने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। श्रद्धालुओं की ओर से ही श्रृंगार का इंतजाम है। मां का हर स्वरूप श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचता है। 

मंदिर समिति के सभी सदस्य व श्रद्धालु मिलकर भक्तों की सेवा करते हैं। निश्शुल्क पेयजल सेवा के साथ ही शादियों के रिश्तों की नींव भी मंदिर मेें ही पड़ती है। मंदिर में किसी को कष्ट न हो, इसका इंतजाम किया जाता है।

-प्रमोद कुमार शुक्ला, संरक्षक

नवरात्र में आने वाले श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो, इसका पूरा इंतजाम किया जाता है। भोर में ही कपाट खोल दिए जाते हैं। संध्या आरती के दौरान श्रद्धालुओं का तांता लगता है। इस बार भी अधिक होने से प्रसाद चढ़ाकर निकलने की व्यवस्था की गई है। मंदिर परिसर में रुकना मना कर दिया गया है। -नरेश कुमार शुक्ला, अध्यक्ष

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