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पुण्य तिथि पर विशेष: समाज के उत्थान के लिए महामना मदन मोहन मालवीय ने प्रस्तुत किया था बड़ा उदाहरण

Death Anniversary of Bharat Ratan Pandit Madan Mohan Malviya बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के संस्थापक महामना को एक को नरमपंथी कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में भी जाना जाता है। नरेन्द्र मोदी सरकार ने मरणोपरांत 2015 में उनको भारत रत्न से भी सम्मानित किया।

By Dharmendra PandeyEdited By: Updated: Fri, 12 Nov 2021 07:30 PM (IST)
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बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के संस्थापक महामना
लखनऊ, जेएनएन। देश की आजादी के नायकों में से एक प्रमुख नाम पंडित मदन मोहन मालवीय को देश आज नमन कर रहा है। उनकी 160वीं पुण्य तिथि (12 नवंबर) पर देश भर के लोग उनके विभिन्न स्वरूप में उनको याद कर रहे हैं।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के संस्थापक महामना को एक को नरमपंथी कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में भी जाना जाता है। नरेन्द्र मोदी सरकार ने मरणोपरांत 2015 में उनको भारत रत्न से भी सम्मानित किया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी का बहुत बड़ा योगदान माना जाता है। उनके कद के आसपास कोई नेता नहीं ठहरता दिखता, फिर भी कई ऐसे नेता भी रहे हैं। जिन्होंने इस आंदोलन में ऐसे योगदान दिए जिन्होंने ना केवल अपने समय में बल्कि उसके बाद भी बहुत सम्मान पाया है। इनमें सबसे बड़े नामों में पंडित मदन मोहन मालवीय का नाम काफी प्रमुख है। देश में उनको सम्मान पूर्वक महामना भी कहा जाता है।

महमना ने दलितों के उत्थान के लिए विशेष कार्य किया। इस दौरान उन्होंने अस्पृश्यता की जम कर खिलाफत की। वह जातिवाद के विशेष विरोधी थे। उन्होंने देश में भारत स्काउटिंग की भी स्थापना की। सत्यमेव जयते मंत्र को अपने समय में प्रचारित भी मदन मोहन मालवीय ने ही किया। आजादी के एक वर्ष पहले 12 नवंबर 1946 को उनका निधन हो गया। उनकी हरिद्वार में शुरू की हुई हर की पौड़ी की आरती की परंपरा आज भी जारी है।

पंडित मदन मोहन मालवीय ने हमेशा ही देश के स्वतंत्रता आंदोलन के साथ ही समाज के उत्थान के लिए आदर्श प्रस्तुत करते हुए सभी का दिल जीतने वाले कार्य किया। उनका जन्म इलाहाबाद के एक साधारण परिवार में 25 दिसंबर 1861 को हुआ था। पिता का नाम ब्रजनाथ और मां का नाम भूनादेवी था। शुरुआती शिक्षा इलाहबाद में करने के बाद पंडित जी ने कलकत्ता से यूनिवर्सिटी से बीए की शिक्षा पूरी की। बचपन से ही उन्हें कविता लिखने का शौक था। कुछ पत्रिकाओं में उनकी कविताएं मार्कंड नाम से छपा करती थीं।

कांग्रेस में उनके 1886 में कलकत्ता अधिवेशन में संबोधन ने सभी का दिल जीत लिया। यहीं से उनकी राजनैतिक यात्रा शुरू हुई। आर्थिक सहयोग मिलने पर उन्होंने अंग्रेजी दैनिक अखबार शुरू किया। उन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी कर इलाहाबाद जिला अदालत में और दो साल के भीतर ही हाई कोर्ट में वकालत शुरू कर दी।

मदन मोहन मालवीय को शुरू से ही कांग्रेस में बहुत आदर के साथ देखा जाता था। वह 1909, 1918, 1932 और 1933 में कांग्रेस अध्यक्ष रहे। उन्हें नरमपंथी नेता के तौर पर जाना जाता था। उन्होंने 1916 में लखनऊ पैक्ट में मुस्लिमों के लिए अलग से निर्वाचक वर्ग बनाने का विरोध किया था। 1889 में इंडिया ओपिनियन दैनिक अंग्रेजी शुरू करने के बाद उन्होंने 1907 से दो साल तक हिंदी साप्ताहिक अभ्युदय का भी संपादन किया।

महामना ने 1911 में वकालत छोड़ दी जिससे कि वे शिक्षा और समाज सेवा कर सकें। उन्होंने वकालत से सन्यास ले लिया लेकिन देशभक्ति के कार्यों को नहीं छोड़ा। वकालत छोडऩे के बाद भी उन्होंने चौरी चौरा कांड में गिरफ्तार हुए 177 स्वतंत्रता सेनानियों के लिए मुकदमें में वकालत की और उनमें से 156 को छुड़वा लिया। सभी मौत की सजा के आरोपी बनाए गए थे।

पंडित मदन मोहन मालवीय को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी बहुत सम्मान देते थे। वह उन्हें अपने बड़े भाई के समान मानते थे। असहयोग आंदोलन के प्रमुख किरदार रहे मालवीय ने कांग्रेस के खिलाफत आंदोलन का समर्थन करने के पक्ष में नहीं थे। वह एकमात्र ऐसे कांग्रेस नेता रहे थे जो आजादी से पहले चार बार कांग्रेस अध्यक्ष रहे थे। उन्हें महामना नाम रवींद्रनाथ टैगोर ने दिया था।

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के लिए चंदा

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक महान स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, पत्रकार और वकील रहे पंडित मदन मोहन मालवीय की पुण्यतिथि 12 नवंबर को देश उन्हें याद कर रहा है। पंडित मदन मोहन मालीवय बनारस हिंदू कॉलेज सह संस्थापकों में से एक थे। जो जल्दी ही बनारस यूनिवर्सिटी में बदल गया। इसकी स्थापना के लिए उन्होंने पेशावर से कन्याकुमारी तक जगह-जगह जाकर चंदा लिया और एक करोड़ से भी ज्यादा की राशि जुटाई। हैदराबाद के निजाम ने तो गुस्से में उन्हें अपनी जूती देने की पेशकश की, पंडित ने वह जूती ले भी ले और हैदराबाद के बाजार में नीलाम करने भी पहुंच गए। इसके बाद निजाम को अपने गलती का अहसास हुआ और उन्हें पंडित जी को ससम्मान चंदा दिया। 

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