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शादीशुदा मुस्लिम को लिव-इन रिलेशन में रहने का अधिकार नहीं, इलाहाबाद हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि इस्लाम धर्म के मानने वाले व्यक्ति को अपनी पत्नी के जीवित रहते लिव-इन रिलेशन में रहने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस्लामिक मत इस बात की इजाजत नहीं देता कि कोई मुसलमान अपने निकाह के बने रहते दूसरी महिला के साथ भी रहे।

By Jagran News Edited By: Abhishek Pandey Updated: Thu, 09 May 2024 08:27 AM (IST)
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शादीशुदा मुस्लिम को लिव-इन रिलेशन में रहने का अधिकार नहीं, इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ का अहम फैसला
विधि संवाददाता, लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि इस्लाम धर्म के मानने वाले व्यक्ति को अपनी पत्नी के जीवित रहते लिव-इन रिलेशन में रहने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस्लामिक मत इस बात की इजाजत नहीं देता कि कोई मुसलमान अपने निकाह के बने रहते दूसरी महिला के साथ भी रहे।

जस्टिस एआर मसूदी व जस्टिस अजय कुमार श्रीवास्तव प्रथम की पीठ ने यह आदेश याचीगण हिंदू युवती स्नेहा देवी और शादीशुदा मुस्लिम पुरुष मुहम्मद शादाब खान की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया, जिसमें उन्होंने इस मामले में दर्ज प्राथमिकी को रद करने और लिव-इन रिलेशन में रहने के दौरान सुरक्षा की मांग की थी।

रुढ़ियों और प्रथाओं को भी कानून मानता है संविधान : हाई कोर्ट

कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा कि रुढ़ियां व प्रथाएं भी विधि का समान श्रोत हैं और संविधान का अनुच्छेद 21 ऐसे रिश्ते के अधिकार को मान्यता नहीं देता जो रुढ़ियों व प्रथाओं से प्रतिबंधित हो। इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि स्नेहा देवी को उसके माता-पिता के पास पहुंचा दिया जाए।

याचियों का कहना था कि वे बालिग हैं और अपनी मर्जी से लिव-इन रिलेशन में रह रहे हैं, बावजूद इसके युवती के भाई ने अपहरण का आरोप लगाते हुए बहराइच के विशेश्वरगंज थाने में एफआइआर दर्ज करा दी है। याचिका में इसी एफआइआर को चुनौती दी गई और याचियों के शांतिपूर्ण जीवन में दखल न दिए जाने का आदेश देने की भी मांग की गई थी।

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