गुरु गोविंद सिंह के चारों साहिबजादाें व माता गुजरी का शहीदी दिवस कल, जानें क्या है पूरी कहानी
27 दिसंबर 1704 में गुरुगोविंद सिंह के दो साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह को इस्लाम धर्म कबूल न करने पर सरहिंद के नवाब ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया। फतेहगढ़ साहिब में गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादों को दीवार में चुनवाने की घटना गर्व की बात थी।
By Anurag GuptaEdited By: Updated: Thu, 23 Dec 2021 06:20 PM (IST)
लखनऊ, जागरण संवाददाता। गुरु गोविंद सिंह के चारों साहिबजादाें व माता गुजरी जी का शहीदी दिवस शुक्रवार से मनाया जाएगा। मुख्य आयोजन गुरुद्वारा नाका हिंडोला में सुबह से दोपहर बाद तक होगा। सजे दीवान हाल में ज्ञानी सुखदेव सिंह गुरु की जीवनी पर प्रकाश डालेंगे। आलमबाग के गुरुद्वारा सिंगार नगर मेंं 25 और 26 दिसंबर को दीवान सजेगा। संयोजक सुरजीत सिंह ने बताया कि शबद के साथ लंगर होगा। गुरुद्वारा सदर के अध्यक्ष हरपाल सिंह जग्गी ने बताया कि 31 दिसंबर को गुरुद्वारे में विशेष गुरुमत समागम होगा।
लखनऊ गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह बग्गा ने बताया कि चारों साहिबजादों और माता गुजरी का बलिदान सिख समाज के लिए गर्व की बात है। 10 लाख सैनिकों के सामने चमकौर के मैदान में हुए युद्ध के दौरान बारी-बारी से उनका बलिदान किया गया। 22 दिसंबर 1704 को गुरु गोविंद साहिब के बड़े साहिबजादे अजीत सिंह और फिर जुझार सिंह शहीद हुए। 27 दिसंबर 1704 में गुरुगोविंद सिंह के दो साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह को इस्लाम धर्म कबूल न करने पर सरहिंद के नवाब ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया।
फतेहगढ़ साहिब में गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादों को दीवार में चुनवाने की घटना सिख के लिए गर्व की बात थी। दीवार बनने के साथ ही साहिबजादों ने 'जपु जी साहिब' का पाठ करना शुरू किया। दीवार पूरी हुई और अंदर से जयकारे की आवाज़ आई, दीवार तोड़ी गयी तो बच्चे जिंदा थे लेकिन जबरन साहिबजादों को मार दिया गया। उधर, साहिबजादों के शहीद होने की ख़बर सुन कर गुरु गोविंद सिंह की माता गुजरी जी ने अकाल पुरख को इस गर्वमयी शहादत के लिए आभार किया और प्राण त्याग दिए।
...और जब राेने लगे छोटे साहिबजादे : लखनऊ गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह बग्गा ने बताया कि चमकौर के मैदान 35 सिखों की शहादत हो चुकी थी तो गुरु गोविंद सिंह के बड़े साहिबजादे अजीत सिंह युद्ध में जाने के लिए तैयार हुए। गुरु जी ने उनको स्वयं तैयार किया तो छोटे साहिबजादे जुझार सिंह रोने लगे। वह भाई को युद्ध में जाने के डर से नहीं, बल्कि छोटे होने पर रोने लगे कि मुझे पहले क्यों मौका नहीं दिया गया। उनकी शहादत सिख समाज के इतिहास का स्वर्णिम पन्ना है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।