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कई बार पुलिस को चकमा देकर बच निकला था मुंबई सीरियल ब्लास्ट का मास्टरमाइंड डॉ.जलीस अंसारी

मुंबई सीरियल ब्लास्ट समेत 50 से अधिक आतंकी हमलों के मास्टरमाइंड डॉ.जलीस अंसारी ने स्पेशल टास्क फोर्स की पूछताछ में अपने नेटवर्क से जुड़े कई साथियों के राज भी उगले हैं।

By Umesh TiwariEdited By: Updated: Mon, 20 Jan 2020 09:24 AM (IST)
कई बार पुलिस को चकमा देकर बच निकला था मुंबई सीरियल ब्लास्ट का मास्टरमाइंड डॉ.जलीस अंसारी
लखनऊ, जेएनएन। मुंबई सीरियल ब्लास्ट समेत 50 से अधिक आतंकी हमलों के मास्टरमाइंड डॉ.जलीस अंसारी ने स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) की पूछताछ में अपने नेटवर्क से जुड़े कई साथियों के राज भी उगले हैं। वह कई बार पुलिस को चकमा देकर बच निकलने में कामयाब भी रहा था। डॉ. जलीस अजमेर सेंट्रल जेल में रहकर सस्ते सामान के प्रयोग से बम बनाने का फार्मूला तैयार कर रहा था। उसकी पाकेट डायरी से भी कई अहम जानकारियां सामने आई हैं। यूपी एटीएस व आइबी के अधिकारियों ने भी डॉ.जलीस से लंबी पूछताछ की। शनिवार को मुंबई एटीएस की टीम ट्रांजिट रिमांड पर डॉ.जलीस को अपने साथ ले गई।

मुंबई पुलिस की सूचना पर एसटीएफ ने डॉ.जलीस को शुक्रवार को कानपुर से पकड़ा था। अजमेर सेंट्रल जेल से 21 दिन की पैरोल पर छूटने के बाद मुंबई से वह गुरुवार सुबह भाग निकला था। वर्ष 1993 में मुंबई में हुए सीरियल ब्लास्ट का मुख्य आरोपित डॉ.जलीस पुणे सीरियल ब्लास्ट समेत 90 के दशक में 50 से अधिक बम धमाकों में शामिल था। आइजी एसटीएफ अमिताभ यश ने बताया कि डॉ. जलीस से पूछताछ में सामने आए कई बिंदुओं पर आगे की छानबीन की जा रही है। उससे जुड़े रहे कुछ लोगों की भूमिका की भी जांच होगी। वर्ष 1989 में अब्दुल करीम टुंडा से बम बनाने की ट्रेनिंग लेने के दौरान डॉ.जलीस का मुंह भी झुलस गया था।

वर्ष 1989 में उसने गोंडा में एक बस्ती में भी बम रखे थे। इसी वर्ष उसने मुंबई के बाईकला पुलिस स्टेशन में भी बम फेंका था। इस मामले में पुलिस ने उसे पकड़ा था, लेकिन पूछताछ के बाद छोड़ दिया था। डॉ.जलीस ने पूछताछ में बताया कि उसने मुंबई निवासी रईस, जुनैद व रफीक के साथ मिलकर प्रयागराज में 1990 में मेला परिसर में बम धमाका किया था, जिसमें चार लोग मारे गए थे। कई घायल हुए थे। तब डॉ.जलीस मुंबई से बम बनाने के उपकरण लेकर आया था और प्रयागराज स्टेशन के पास एक लॉज में ठहरा था। वह पोटेशियम, क्लोरेट, रेड फास्फोरस व अन्य सामान लेकर आया था और चार बम बनाए थे और चारों मेला परिसर में रखे थे। इस घटना में डॉ.जलीस व उसके साथियों का नाम सामने नहीं आ पाया था।

यहां भी सामने नहीं आया था नाम

वर्ष 1992 में पुणे के स्वारगेट बस डिपो में किए गए दो बम धमाकों में भी उसका व उसके साथी जुनैद व रईस के नाम सामने नहीं आए थे। वर्ष 1992 में ही माटुंडा लोकल ट्रेन में किए गए ब्लास्ट के मामले में डॉ.जलीस व उसके साथी पकड़े गए थे, लेकिन एक साथी निसार फरार है। डॉ.जलीस ने कई और घटनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

प्रोफेसर व इंजीनियर हैं डॉ.जलीस के भाई

जलीस खुद ही एमबीबीएस नहीं, बल्कि उसके एक भाई लईक बांद्रा में फिजिक्स के प्रोफेसर हैं और एक भाई जुल्फिकार सिविल इंजीनियर। डॉ.जलीस के तीन भाई अनीस, रईस व फिरोज व्यवसाय करते हैं। डॉ.जलीस के चार बेटे व तीन बेटियां हैं। उसका एक बेटा जावेद सिविल इंजीनियर है।

लखनऊ में हाई कोर्ट के पास था जलीस का साथी

आतंकी डॉ. मुहम्मद जलीस अंसारी का एक साथी शुक्रवार दोपहर लखनऊ में ही हाई कोर्ट के पास उसका इंतजार कर रहा था। उसके साथ ही जलीस को संतकबीर नगर होते हुए नेपाल जाना था। एसटीएफ जलीस को लेकर जब तक वहां पहुंची, तब तक वह फरार हो गया। डॉ.जलीस अंसारी नेपाल के बुटवल में नया ठिकाना बनाने वाला था। रेलबाजार थाना और फिर कोर्ट के बाहर पूछताछ के दौरान उसने बताया कि वह बम बनाने की नई तकनीक जानता है। बाजार में आसानी से मिलने वाले उपकरणों व केमिकल से अधिक मारक क्षमता के बम बनाने वाला था। इन बमों की डिमांड हर शहर में होने से खासा मुनाफा होता है। शनिवार शाम नेपाल के सिद्धार्थनगर में उसे दो व्यक्ति लेने आने वाले थे

20 दिन में कई दोस्तों को किए फोन

पैरोल पर छूटने के बाद उसने 20 दिन में कई दोस्तों को फोन किए। इनमें कई के स्लीपर सेल होने की आशंका है। उसकी पॉकेट डायरी में भी कई नाम व मोबाइल नंबर मिले। इनमें कुछ नंबर कानपुर के बताए जा रहे हैं। एसटीएफ के प्रभारी एसपी विशाल विक्रम सिंह ने बताया कि जलीस के मोबाइल में मिले नंबरों की जांच की जा रही है। कानपुर, लखनऊ व यूपी में नेटवर्क का पता लगाया जा रहा है।

धर्मस्थल और शिक्षण संस्थान में भी जांच

एटीएस और एसटीएफ ने शनिवार सुबह फेथफुलगंज के धर्मस्थल के साथ ही पास स्थित एक शिक्षण संस्थान में भी जांच की। जलीस शुक्रवार सुबह इसी धर्मस्थल पर नमाज अदा करने के बाद शिक्षण संस्थान में गया था।

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