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लखनऊ का एक ऐसा शख्स जिसका लक्ष्य सिर्फ समाज सेवा

चार वर्षों में साथियों के संग 200 से अधिक भिखारियों की काउंसिलिंग कराई और भिक्षावृत्ति छुड़वा कर उन्हें स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया।

By Krishan KumarEdited By: Updated: Thu, 13 Sep 2018 06:00 AM (IST)
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कई ऐसे लोग हैं, जो समाज सेवा को अपना ध्येय बना चुके हैं। राजधानी के शरद पटेल भी ऐसे ही लोगों में से एक हैं। वह भिखारियों के पुनर्वास को लेकर अभियान चला रहे हैं। चार वर्षों में साथियों के संग 200 से अधिक भिखारियों की काउंसिलिंग कराई और भिक्षावृत्ति छुड़वा कर उन्हें स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया। इससे कई भिखारी निजी कार्यों में जबकि कुछ मेहनत-मजदूरी में लग गए। उनका उद्देश्य है कि सभ्य समाज से दूर रहने वाले भिखारियों को मुख्यधारा में लाया जाए। इसके लिए उन्होंने भिक्षावृत्ति की नींव यानी बाल भिक्षुओं को शिक्षित करने का भी बीड़ा उठाया है।

29 वर्षीय शरद पटेल मूल रूप से हरदोई के मिर्जागंज के निवासी हैं। 2003 में पढ़ाई के लिए लखनऊ आए थे, तब से नयागंज में रहने लगे। केकेवी से इंटरमीडिएट उत्तीर्ण करने के बाद बीएससी किया। फिर सिविल सर्विसेज की तैयारी करने लगे। एक दिन घर जाते समय रास्ते में एक भिखारी से मुलाकात हुई। भीख मांगने का कारण पूछा तो उसने गरीबी का हवाला दिया। शरद ने सोचा कि सरकार इतनी योजनाएं चला रही है, यदि उनका लाभ इन्हें मिल जाए तो इनका कल्याण हो जाएगा। इस बारे में उन्होंने अपने बड़े भाई देवेश से बात की। उन्होंने शरद की रुचि देख पहले समाज कार्य विषय में पीजी और उसके बाद समाजसेवा करने की सलाह दी। इसके बाद शरद ने एमएसडब्ल्यू (मास्टर ऑफ सोशल वर्क) में दाखिला लिया। पढ़ाई के दौरान ही रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता डॉ. संदीप पांडेय से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तो उनसे अपने मन की बात की। शरद का लगाव देख डॉ. संदीप ने उन्हें अपने साथ वॉलंटियर के रूप में काम करने का मौका दिया। इसी बीच शरद ने पीजी की पढ़ाई भी पूरी कर ली। इसके बाद जयदीप कुमार, महेंद्र प्रताप, प्रिंस कुमार के साथ मिलकर भिखारियों के रहन-सहन पर अध्ययन किया।

इसमें उन्हें पता चला कि अधिकांश भिखारियों की भीख मांगना मजबूरी है, क्योंकि उनके पास न तो कोई पहचान पत्र है, न राशन और पेंशन जैसे कार्ड। ऐसे में शरद व उनके साथियों ने 2014 में भिखारी पुनर्वास अभियान शुरू किया। इसमें वे भिखारियों की काउंसिलिंग कर उन्हें काम-धंधे से जोड़ने भी लगे। पहले तो भिखारी काम करने से कतराते थे, लेकिन जब उन्हें समय पर मेहनताना मिलने लगा तो उनकी रुचि बढ़ी। इससे शरद व उनके साथियों का हौसला बढ़ा। आज वह 200 से अधिक भिखारियों का व्यवहार परिवर्तन करा चुके हैं। उन्होंने 148 बीमार भिखारियों का साथियों के सहयोग से इलाज भी कराया। शरद अब डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं, पर समाज सेवा के प्रति उनकी लगन बनी हुई है।

पाठशाला में पढ़ रहे 256 भिखारी बच्चे
शरद ने पहले भिखारियों का सर्वे किया। दुबग्गा बसंत कुंज योजना व डालीगंज स्थित मन कामेश्वर उपवन के आसपास 256 बाल भिखारी मिले। दोनों स्थानों पर उन्होंने शिक्षण केंद्र खोला और वहां बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। वे यहां से बच्चों को बेसिक शिक्षा देने के बाद उनका सरकारी स्कूलों में दाखिला भी कराते हैं। उनकी पाठशाला में बच्चों को तीन दिन किताबी कोर्स पढ़ाया जाता है और दो दिन खेलकूद व कल्चरल एक्टिविटी कराई जाती है। शनिवार को बाल संसद कराते हैं। सेंटर पर ही दस-दस बच्चों का ग्रुप बनाकर किसी मुद्दे पर बहस कराते हैं। ताकि उनकी कम्युनिकेशन स्किल डेवलप हो सके।

ऐसे छुड़वायी भिक्षावृत्ति
शरद व उनके साथियों ने पहले भिखारियों के अड्डे व धर्म स्थलों पर जाकर उनकी पहचान की। पहले विजय बहादुर उर्फ भोला व प्रकाश को प्रेरित किया तो दोनों ने भिक्षावृत्ति छोड़ दी। उनको देख कई और भिखारियों ने भीख मांगना छोड़ दिया। शरद ने उन्हें छोटे-छोटे कामों से जोड़ा। बताते हैं कि अब छह भिखारी कैटरिंग में लगे हैं। पांच रिक्शा चलाते हैं जबकि कई चाय-पानी की दुकानों में काम कर रहे हैं। कुछ तो काम सीख कर रंगाई-पुताई में लग गए हैं।

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