लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में फार्मेसी सेवा चार लेयर में है। ऐसे में रेट कांट्रैक्ट (आरसी) के जरिये करीब चार हजार दवाओं को सस्ती दर पर मुहैया कराने का दावा किया जाता है। बावजूद अधिकतर मरीज निजी मेडिकल स्टोर पर महंगी दवाएं खरीदने को लोग मजबूर हैं। ऐसे में सवाल है कि वर्षभर में खरीदी जा रही करीब 100 करोड़ रुपये से अधिक की दवाएं कौन खा रहा है?
विकास मिश्र, लखनऊ। लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में फार्मेसी सेवा चार लेयर में है। ऐसे में रेट कांट्रैक्ट (आरसी) के जरिये करीब चार हजार दवाओं को सस्ती दर पर मुहैया कराने का दावा किया जाता है।
बावजूद, अधिकतर मरीज निजी मेडिकल स्टोर पर महंगी दवाएं खरीदने को लोग मजबूर हैं।
ऐसे में सवाल है कि वर्षभर में खरीदी जा रही करीब 100 करोड़ रुपये से अधिक की दवाएं कौन खा रहा है?
एक हजार से अधिक बेड के लिए सात फार्मेसी
लोहिया संस्थान में 42 विभागों का संचालन हो रहा है। लगभग 1200 बेड पर मरीजों की भर्ती होती है। यहां हर रोज औसतन तीन हजार से अधिक मरीज ओपीडी में इलाज के लिए आते हैं। ऐसे में सामान्य मरीज हो या गंभीर, हर कोई दवा के संकट से जूझ रहा है।
स्थिति यह है कि हड्डी रोग विभाग, कार्डियोलाजी, नेत्र रोग विभाग, यूरोलाजी, जनरल सर्जरी, पीडियाट्रिक, पीडियाट्रिक सर्जरी, मेडिसिन, ईएनटी, नेफ्रोलाजी में जहां सामान्य दवाएं भी नहीं मिल रही हैं। इमरजेंसी, कैथलैब, सीटीवीएस, विभाग इंजेक्शन व मेडिकल डिवाइस की कमी से जूझ रहे हैं।
संस्थान में सुपर स्पेशलियटी से लेकर हास्पिटल ब्लाक व मातृ एवं शिशु अस्पताल में कुल नौ फार्मेसी का संचालन हो रहा है, लेकिन भर्ती होने वाले मरीजों क ज्यादातर दवाएं बाहर से खरीदनी पड़ रही है।
घंटों लाइन में लगने के बाद मिल रही अधूरी दवाएं
दवा के लिए मरीज सुबह से कतार में लग जाते हैं। एक से दो घंटे के बाद मरीज का जब नंबर आता है तो उन्हें अधूरी दवाएं देकर लौटा दिया जाता है। ऐसे में तीमारदार अपने मरीज की जान बचाने के लिए बाजार से दवा खरीदने को मजबूर हैं।
मंगलवार को गोंडा निवासी नफीस दवा के लिए काउंटर के सामने लगे। नफीस के पिता को कैंसर हैं। पांच तरह की दवाएं डाक्टर ने लिखी। महज एक ही दवा मिली। बाकी चार दवा बाजार से खरीदी। इसी प्रकार सुल्तानपुर निवासी जेपी तिवारी की हाल ही में एंजियोप्लास्टी की गई।
वे रूटीन तौर पर डाक्टर को दिखाने पहुंचे। उन्हें डाक्टर ने कई जरूरी दवाएं लिखी, लेकिन संस्थान के काउंटर पर सिर्फ दो दवाएं मिल सकीं। खास बात यह है कि जो महंगी दवाएं हैं उसे बाहर से लेनी पड़ी।
एचआरएफ की व्यवस्था ठीक करने के लिए कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं। अगले तीन माह में भर्ती और ओपीडी मरीजों को सभी दवाएं मुहैया कराई जाएंगी। अगर जरूरत पड़ी तो एचआरएफ में बदलाव करेंगे।
- प्रो. सीएम सिंह, निदेशक, लोहिया संस्थान
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