मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari)
Mukhtar Ansari एक समय माफिया से नेता बने बहुबली नेता मुख्तार अंसारी का गढ़ पूर्वांचल माना जाता था। मुख्तार के खिलाफ गुनाहों की लिस्ट लंबी है। बीजेपी नेता की हत्या से लेकर माफिया पर दंगे भड़काने जैसे केस हैं। अभीतक मुख्तार को चार मामलों में सजा हो चुकी है। यूपी पुलिस के मुताबिक देशभर में मुख्तार अंसारी पर करीब 61 केस दर्ज हैं।
By Prabhapunj MishraEdited By: Prabhapunj MishraUpdated: Mon, 24 Jul 2023 10:48 PM (IST)
लखनऊ, जेएनएन। उत्तर प्रदेश की मऊ विधानसभा सीट से पांच बार के रिकॉर्ड विधायक रहे माफिया मुख्तार अंसारी का पूर्वांचल में 90 के दशक से रसूख शुरु हुआ जो 2017 में योगी आदित्यनाथ सरकार बनने तक रहा। योगी सरकार बनने के बाद माफिया से नेता बने मुख्तार पर शिकंजा कसना शुरु हुआ। योगी सरकार बनने से पहले पंजाब की रोपड़ जेल में बंद मुख्तार को यूपी में बांदा की जेल में स्थानांतरित किया गया। जहां उसे हाइसिक्योरिटी बैरक में रखा गया है। मुख्तार अंसारी की बेनामी संपत्ति जब्त करने के लिए आयकर विभाग आपरेशन पैंथर चला रहा है। अबतक मुख्तार की 500 करोड़ से अधिक की संपत्ति जब्त की जा चुकी है।
गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद में हुआ था मुख्तार का जन्म
मुख्तार अंसारी का जन्म गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद में 3 जून 1963 को हुआ था। उसके पिता का नाम सुबहानउल्लाह अंसारी और मां का नाम बेगम राबिया था। मुख्तार अंसारी तीन भाईयों में सबसे छोटा है। उसके पत्नी का नाम अफशां अंसारी है। मुख्तार के दो बेटे अब्बास अंसारी व उमर अंसारी है।
पूर्वांचल की राजनीति में था मुख्तार का रुतबा
पूर्वी उत्तर प्रदेश यानी पूर्वांचल। 26 लोकसभा और 130 विधानसभा सीटों वाले पूर्वांचल का देश की राजनीति में बेहद अहम रोल है। इसी पूर्वांचल में वाराणसी, गाजीपुर, बलिया, जौनपुर और मऊ में एक दौर था जब मुख्तार अंसारी की तूती बोलती थी।- इन इलाकों में मुख्तार अंसारी और अंसारी परिवार का इन इलाकों में कितना दबदबा है ये इस बात से समझ लीजिए कि यूपी के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों मुलायम सिंह यादव और मायावती ने उसे सिर आंखों पर बैठया। उसे गरीबों का मसीहा तक बताया। ये वही मुख्तार अंसारी है जिसके खानदान से कई शख्सियतों के नाम जुड़ हैं।
- मुख्तार अंसारी के दादा डॉ मुख्तार अहमद अंसारी महात्मा गांधी के करीबी हुआ करते थे। यही नहीं अपने जमाने के मशहूर सर्जन मुख्तार अहमद अंसारी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने।
- मुख्तार के नाना ब्रिगेडियर उस्मान महावीर चक्र विजेता रहे हैं। ब्रिगेडियर उस्मान 1947 की नौशेरा की जंग में शहीद हुए थे। यही नहीं मुख्तार के पिता भी कद्दावर नेता थे। कभी मुख्तार अंसारी के घर पर फरियादियों की भीड़ लगी रहती थी।
मुख्तार अंसारी का कालेज स्टूडेंट से माफिया बनने का सफर
90 के दशक में ये वो दौर था जब पूर्वांचल में एक नये तरह का अपराध सिर उठा रहा था। रेलवे शराब और दूसरे सरकारी ठेके हासिल करने की रेस में अपराधियों के कई गैंग उभरने लगे थे। पूर्वांचल में माफिया डॉन और बाहुबली तेजी से उभर रहे थे।
- गाजीपुर के कॉलेज में पढ़ाई कर रहे मुख्तार को इस ताकत का अंदाजा लग चुका था। उन्हीं दिनो मुख्तार ने एक बाहुबली मखनू सिंह से हाथ मिला लिया। मखनू सिंह पूर्वांचल के दिग्गज नेता हरिशंकर तिवारी का खास हुआ करता था। तभी मखनू सिंह की त्रिभुवन सिंह के साथ एक जमीन पर कब्जे को लेकर गैंगवार में लाशें गिरने का सिलसिला शुरु हो गया। तभी एक कोर्ट परिसर में हुए एक गोलीकांड के बाद एक नाम उभर कर आया।
- नाम था मुख्तार अंसारी। इसमें मखूनी के दुश्मन साहिब सिंह की गोली लगने से हत्या हुई थी। कत्ल के बाद जो नाम सुर्खियों में आया वो मुख्तार का था। कहा जाता है वो गोली मुख्तार ने चलाई थी, लेकिन किसी ने उसे गोली चलाते हुए देखा भी नहीं था।
- सिंगल गन शॉट में कत्ल का यह केस बेहद रहस्यमय और हैरान करने वाला था। कुछ दिन बाद पुलिस लाइन के अंदर खड़े हुए एक दीवान की इसी अंदाज में हत्या हुई थी। नाम था राजेन्द्र सिंह।
- इस हत्या के बाद भी जो नाम सामने आया वो मुख्तार का ही था। यहीं से शुरु हुआ मुख्तार अंसारी के पूर्वांचल के बहुबली और यूपी के माफिया डान बनने का सिलसिला।
मुख्तार के रसूख के चलते शुरु हुआ था भाई अफजाल के चुनाव जीतने का सिलसिला
90 के दशक में पूर्वांचल के एक बड़े क्षेत्र वाराणसी, जौनपुर, गाजीपुर, माऊ और बलिया में उभरते हुए बाहुबली मुख्तार अंसारी का दबदबा कायम हो चुका था और वो प्रदेश की राजनीति में कई नेताओं की नजर में आ गया था। धीरे धीरे राजनीति में उसकी पूछ बढ़ रही थी। साल 1985 में मुख्तार अंसारी का भाई अफजाल अंसारी पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतरे। उस समय मुख्तार का असर कुछ ऐसा था कि पहली बार में ही अफजाल अंसारी को जीत मिल गई। इसके बाद 1989 के चुनाव में भी अफजाल अंसारी ने जीत दर्ज की। अफजाल अंसारी ने भले ही मुख्तार से पहले राजनीति में एंट्री ली लेकिन उनकी दोनों जीतों में मुख्तार के रसूख और रुतबे का बड़ा हाथ था।मुख्तार मऊ सीट से पांच बार चुना गया विधायक
साल 1996 में मुख्तार अंसारी खुद चुनाव मैदान में उतर आया। मुख्तार अंसारी पहली बार में ही मऊ सीट से विधानसभा चुनाव जीत कर पूर्वांचल की राजनीति का बड़ा नाम हो गया था। मुख्तार रिकॉर्ड पांच बार इस सीट से विधायक रहा।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।- मुख्तार ने अपराध कि दुनिया से सियासत का दामन थाम कर अपना कद बढ़ा लिया था, लेकिन पूर्वांचल की खूनी रंजिश और गैंगवार ने उसका पीछा नहीं छोड़ा।
- वर्चस्व की लड़ाई में उसकी ब्रजेश सिंह से दुश्मनी पुरानी थी। साल 2001 में मुख्तार पर जानलेवा हमला हुआ। कहा जाता है कि हमला ब्रजेश सिंह और उसके लोगों ने किया था। इस हमले में मुख्तारअंसारी के तीन साथी मारे गए पर वो बाल-बाल बच गया।
- इस सब के बीच मुख्तार ने राजनीति में अपना कद बढ़ाना जारी रखा। साल 2004 में लोकसभा चुनाव थे। इस लोकसभा चुनाव में गाजीपुर सीट से मुख्तार का भाई अफजाल चुनाव मैदान में उतरे। उस समय मुख्तार अंसारी मुलायम सिंह के करीब थे।
भाजपा के दिग्गज नेता कृष्णानंद राय की हत्या
मुलायम सिंह यादव ने पूर्वांचल में सपा की पकड़ मजबूत करने के लिए मुख्तार को आगे बढ़ाया था। 2004 के लोकसभा चुनाव में सपा से अफजाल अंसारी गाजीपुर सीट से मैदान में थे और उनके सामने बीजेपी से मनोज सिन्हा थे। इस चुनाव में मुख्तार ने अपनी ताकत दिखाई और अफजाल ने मनोज सिन्हा को करीब दो लाख वोटों के अंतर से हराया। इससे मुख्तार का कद काफी बढ़ गया था। लेकिन 2005 में हुए मऊ दंगे में एक बार फिर मुख्तार को वो चेहरा सामने आया जिससे वो एक बार फिर आरोपों से घिर गया। इसमें मुख्तार अंसारी पर दंगे भड़काने का आरोप लगा था। इस मामले में मुख्तार को आत्मसमर्पण करना पड़ा था और वो जेल चला गया था। इसके बाद मुख्तार ने जेल से ही एक हाई प्रोफाइल मर्डर को अंजाम देने की सजिश रची। और ये साजिश थी भाजपा के दिग्गज नेता कृष्णानंद राय की हत्या की।मोहम्मदाबाद सीट पर कृष्णानंद राय की जीत के बाद कत्ल से लिया था मुख्तार ने बदला
कृष्णानंद राय मोहम्मदाबाद सीट से मुख्तार के सामने थे। मोहम्मदाबाद सीट 25 सालों से अंसारी परिवार के कब्जे में थी लेकिन कृष्णानंद राय ने इस सीट पर जीत दर्ज कर मुख्तार के किले को ध्वस्त कर दिया था। BJP विधायक कृष्णानंद राय ने मोहम्मदाबाद सीट जीत कर मुख्तार को खुली चुनौती दी थी।- मुख्तार ये हार सहन नहीं कर पाया और हार का बदला उसने कत्ल से लिया। कृष्णानंद राय की पत्नी ने बताया था कि चक्रव्यूह की रचना कर उनकी हत्या की गई थी। इस हत्या में एक 47 का प्रयोग किया था। हमलावरों ने करीब 400 राउंड फायरिंग की थी। कृष्णानंद राय की हत्या के बाद मुख्तार अंसारी सुर्खियों में आ गया था।
- कृष्णानंद राय की हत्या मुख्तार के खिलाफ सबसे बड़ा केस था। साल 2007 में अंसारी परिवार ने मायावती की पार्टी बीएसपी का दामन थाम लिया। लेकिन अपराध मुक्त प्रदेश का दावा करने वाली मायावती ने तीन साल के बाद ही अंसारी बंधुओं को पार्टी से निकाल दिया।
- इसके बाद अफजाल अंसारी ने कौमी एकता दल नाम से पार्टी बनाई। जिसका 21 जून 2016 को मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी में विलय हो गया। हालांकि, समाजवादी पार्टी संसदीय बोर्ड ने विलय रद्द कर दिया और बलराम यादव को कैबिनेट से निष्कासन रद्द कर दिया गया था। जिसके बाद कौमी एकता दल का बसपा में विलय हो गया था।
- अंसारी परिवार पर दर्ज हैं 97 केस
अवधेश राय हत्याकांड में मुख्तार को हो चुकी है आजीवन कारावास की सजा
32 साल पुराने अवधेश राय हत्याकांड में 5 जून 2023 को कोर्ट ने मुख्तार समेत अन्य को दोषी करार दिया था। मुख्तार अंसारी को इस केस में आजीवन कारावास और 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था। 3 अगस्त 1991 को लहुराबीर क्षेत्र स्थित आवास के गेट पर ही दिनदहाड़े अवधेश राय पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर उनकी हत्या कर दी गई थी।- इस हत्याकांड में अवधेश राय के भाई अजय राय ने चेतगंज थाना में पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी, अब्दुल कलाम, भीम सिंह, कमलेश सिंह व राकेश न्यायिक के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज कराया था।
- मुख्तार अंसारी वर्तमान में बांदा जेल में बंद है। इस मुकदमे की सुनवाई के दौरान पूर्व विधायक अब्दुल कलाम व कमलेश सिंह की मौत हो चुकी है। अवधेश राय हत्याकांड मामले की सुनवाई सबसे पहले बनारस की ही एडीजे कोर्ट में चल रही थी।
- 23 नवंबर 2007 को मुकदमे की सुनवाई के दौरान ही अदालत के चंद कदम दूर ही बम ब्लास्ट हो गया। राकेश न्यायिक ने सुरक्षा को खतरा बताते हुए हाईकोर्ट की शरण ली और काफी दिनों तक सुनवाई पर रोक लगी रही। इस केस के बाद मामले को प्रयागराज जिला अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया था।
- बनारस में एमपी/एमएलए की विशेष कोर्ट के गठन होने पर मुकदमे की सुनवाई यहां शुरू हुई थी। बीते एक साल में मुख्तार अंसारी को चार मामलों में सजा सुनाई जा चुकी है, मुख्तार के खिलाफ हत्या का यह पहला मामला है जिसमें फैसला आया है।