Munawwar Rana Shayari: मुनव्वर राणा के वे शेर और शायरियां, जिन्होंने मुनव्वर को किया मशहूर… क्या आपने भी कभी पढ़ी?
उर्दू के मशहूर शायर मुनव्वर राणा का रविवार को निधन हो गया। उनका पूरा जीवन उर्दू साहित्य की रचनाओं में बीता। वे इतने मशहूर हुए कि उन्हें विदेशों में भी होने वाले मुशायरों में शोहरत हासिल हुई। मुनव्वर खासकर अपने उन शेरों के लिए जाने जाते हैं जो उन्होंने मां पर लिखे हैं। इनमें से कुछ तो लोगों की जुबां पर रटे हुए हैं।
पढ़िए मुनव्वर राणा के मशहूर शेर और शायरियां-
1.
वह कबूतर क्या उड़ा छप्पर अकेला हो गया,
माँ के आंखें मूँदते ही घर अकेला हो गया।
चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है,
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है।
2.
अभी जिंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा,
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है।
3.
छू नहीं सकती मौत भी आसानी से इसको,
यह बच्चा अभी माँ की दुआ ओढ़े हुए है।
4.
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है,
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ,
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
5.
सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे 'राना'
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना।
6.
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती,
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की 'राना'
माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है।
7.
लिपट को रोती नहीं है कभी शहीदों से,
ये हौसला भी हमारे वतन की मांओं में है।
ये ऐसा कर्ज है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता,
मैं जब तक घर न लौटूं मेरी माँ सज़दे में रहती है।
8.
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है।
9.
घेर लेने को जब भी बलाएँ आ गईं,
ढाल बनकर माँ की दुआएँ आ गईं।
10.
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई,
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई।