संगीत, प्रथा, परंपरा हमारी विरासत, इन्हें अक्षुण्ण बनाए रखें, मुख्यमंत्री योगी ने उत्तराखंड महोत्सव का किया शुभारंभ
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तराखंड महोत्सव के शुभारंभ में कहा कि विरासत का सम्मान करने वाला समाज विकास की ओर उन्मुख होता है। उन्होंने उत्तराखंड में विरासत को नई ऊंचाई पर पहुंचाने के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने पुराने वाद्य यंत्रों को संजोने और उत्तराखंड के आध्यात्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने पर जोर दिया। उन्होंने पूर्वजों की कठिन परिस्थितियों का सामना करने की भी सराहना की।
जागरण संवाददाता, लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि विरासत का सम्मान करने वाला समाज हमेशा विकास की ओर उन्मुख होता है। परंपरा, प्रथा, संगीत ये सब हमारी विरासत हैं। इनको अक्षुण्ण बनाए रखना है। इनकी पौराणिकता के साथ पुनर्जीवित करना है। आधुनिक संगीत इसका स्थान न ले ले, ये भी ध्यान रखना है।
विरासत को नई ऊंचाई पर पहुंचा रहा उत्तराखंड
गोविंद बल्लभ पंत सांस्कृतिक उपवन में शुक्रवार शाम उत्तराखंड महोत्सव का शुभारंभ करने के बाद मुख्यमंत्री ने पुराने वाद्य यंत्रों को भी संजोने के लिए प्रेरित किया। कहा कि पूर्वजों ने इसे विकसित किया और आगे बढ़ाया होगा, इसे जीवित रखना होगा।
उन्होंने कहा कि विरासत को एक नई ऊंचाई तक पहुंचाने के लिए उत्तराखंड में बहुत कार्य हो रहे हैं। बद्रीनाथ धाम, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के बाद जागेश्वर धाम नए रूप में हैं। प्रधानमंत्री ने इसे देश और दुनिया के सामने रखा तो स्वाभाविक रूप से उत्तराखंड में आध्यात्मिक पर्यटन के रूप में यह धाम सबका ध्यान आकर्षित कर रहा है।
पूर्वजों ने किया कठिन परिस्थितियों का सामना
महोत्सव में पद्मश्री डॉ. कल्याण सिंह को उत्तराखंड गौरव सम्मान दिए जाने पर उन्हें शुभकामना देते हुए योगी ने कहा कि जब वहां के लोगों को यहां सम्मानित किया जाता है तो वास्तव में यह अपनी विरासत का सम्मान होता है। उन्होंने वर्षों पहले उत्तराखंड से उत्तर प्रदेश आवागमन की कठिनाइयों को भी याद किया।
कहा कि हमारे पूर्वज कठिन परिस्थितियों का सामना कर आते-जाते थे। हेमवती नंदन बहुगुणा की जीवनी को पढ़ता हूं तो पता चलता है कि वह पैदल अपने गांव से चलते थे और नजीबाबाद तक आते थे। फिर वहां से ट्रेन या बस से यहां आते थे। इन मुश्किलों के बाद भी उन्होंने अच्छी शिक्षा ली और आजादी के आंदोलन से जुड़े। राजनीति के शीर्ष पद पर आसीन हुए और उत्तराखंड के गौरव को बढ़ाया। उनसे पहले पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने यही रास्ता अपनाया था। आज हिंदी राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित है तो इसके पीछे गोविंद बल्लभ पंत की सोच ही थी। स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया।
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