Nag Panchami 2022: लखनऊ का ऐतिहासिक दंगल, यहां अखाड़े में पुरुष नहीं महिलाएं दिखाती हैं दमखम
Nag Panchami 2022 लखनऊ में एक ऐसा ऐतिहासिक दंगल होता है जहां पुरुष नहीं बल्कि महिलाएं दमखम दिखाती हैं। यह दंगल पिछले 200 साल से हो रहा है। कुश्ती का आंखों देखा हाल बताने के लिए कमेंट्री करने वाली भी महिला होती है
By Vikas MishraEdited By: Updated: Tue, 02 Aug 2022 09:21 AM (IST)
लखनऊ, [निशांत यादव]। वैसे तो दंगल फ़िल्म कुश्ती में पहली बार दांव दिखाने वाली एक पहलवान पर बनी थी, लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि लखनऊ में एक ऐसा गांव भी है। जहां 200 साल से महिलाओ का दंगल होता है। यहां ढोलक की थाप के बीच हर कुश्ती पर इनाम रखा जाता है। महिलाएं एक दूसरे को चित करने के दांव लगाती हैं। कुश्ती का आंखों देखा हाल बताने के लिए कमेंट्री करने वाली भी महिला होती है और उसको देखने वाले दर्शक भी केवल महिला। पुरुषों का आज भी इस दंगल में आना मना है।
नागपंचमी के अगले दिन अहिमामऊ में गांव की महिलाएं कुश्ती करती हैं। जिसको यहां हापा कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि लगभग 200 साल पहले हापा की शुरूआत बेगम नूरजहां व कमरजहां ने करवाई थी। उस वक्त अहिमामऊ उनकी एक छोटी रियासत होती थी। ऐसा माना जाता है कि तब पुरुषवादी मानसिकता से पीड़ित महिलाओं के सशकितकरण के लिए हापा की शुरुआत नागपंचमी पर की गई थी। लोकगीत और संगीत भी हापा के आकर्षण का केंद्र बन गए। हापा में कई वर्षों से गांव की रामकली रावत भी हिस्सा ले रही हैं। उनका कहना है कि हापा से महिलाओं में आत्मविश्वास आता है।
हालांकि, युवतियो में हापा को देखने की ललक तो रहती है लेकिन उनकी सहभागिता को और बढ़ाने की जरूरत है। अभी बुजुर्ग औरतों के भरोसे ही दंगल हो रहे हैं। गांव की ही गंगा देवी जैसी महिलाओं पर दशकों पुरानी परंपरा को जीवित रखने की जिम्मेदारी है, कहती हैं कि हापा महिलाओं को उनकी शक्ति का एहसास कराता है। कई पीढियां इसे निभा चुकी हैं। महिलाओं की स्वतंत्रता को भी हापा जैसी गतिविधियां और मजबूत बनाती हैं। परिवार में मुखिया तो पुरुष होते हैं लेकिन अहिमामऊ में आधी आबादी को नजरअंदाज नहीं किया जाता है। उसका केवल एक कारण हापा जैसी परंपरा है।
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