Navratri 2022: शोभन योग से बेहद खास है महाष्टमी, पढ़ें किस मुहूर्त में करें कन्या पूजन
Navratri 2022 शोभन योग से महाष्टमी खास है। अष्टमी व्रत और हवन पूजन तीन को जबकि चार को नवमी पर कन्या पूजन कर व्रत का पारण होगा। शोभन योग को बहुत ही शुभ माना गया है। इस योग में पूजन करने से वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है।
लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। नवरात्र के आठवें दिन तीन अक्टूबर को पहला व अंतिम दिन व्रत रखने वाले व्रत रखेंगे और चार अक्टूबर को नवमी को कन्या पूजन श्रेयस्कर होगा। इस बार महाअष्टमी शोभन नाम का शुभ योग बन रहा है। शोभन योग दो अक्टूबर को शाम 5 :14 बजे से शुरू हो जाएगा और तीन अक्टूबर को दोपहर 2 : 22 बजे तक रहेगा।
आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि महाअष्टमी शोभन नाम का शुभ योग बन रहा है। शोभन योग दो अक्टूबर को शाम 5 :14 बजे से शुरू हो जाएगा और तीन अक्टूबर को दोपहर 2 : 22 बजे तक रहेगा। शोभन योग को बहुत ही शुभ माना गया है। इस योग में पूजन करने से व्यक्ति का आकर्षण बढ़ता है और वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है।
भारतीय संस्कृति में कन्याओं को दुर्गा का साक्षात स्वरूप माना गया है। इसीलिए कन्या पूजन के बिना नवरात्र व्रत को पूर्ण नहीं माना जाता। मनुष्य प्रकृति रूपी कन्याओं का पूजन करके साक्षात भगवती की कृपा पा सकते हैं। इन कन्याओं में मां दुर्गा का वास रहता है। अष्टमी और नवमी को कन्या पूजन के लिए श्रेष्ठ माना गया है। नवरात्रि के व्रत के बाद कन्या पूजन किया जाता है।
10 वर्ष से कम आयु की कन्याओं का पूजन श्रेष्ठ माना गया है। आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि अष्टमी तिथि दो अक्टूबर को शाम 6:21 बजे से शुरू होकर तीन अक्टूबर दोपहर 3:59 बजे समाप्त होगी। इसके बाद नवमी तिथि शुरू होगी। नवमी तिथि की शुरुआत तीन अक्टूबर को दोपहर 3:39 से शुरू होकर चार अक्टूबर को दोपहर 1:33 बजे तक है।
कब करें कन्या पूजन
आचार्य आनंद दुबे ने बताया कि अष्टमी पर कन्यापूजन व हवन करने वाले तीन अक्टूबर को सुबह दोपहर 3:59 बजे तक कर सकते हैं। नवमी का कन्यापूजन चार अक्टूबर को सुबह से दोपहर 1 :33 बजे तक करना श्रेयस्कर रहेगा। नवमी तिथि पर मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत रखते हुए मां की पूजा-उपासना की जाती है और कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है।
इस दिन महानवमी पर पूरे दिन रवि योग बन रहा है। रवियोग को बहुत ही शुभ माना गया है। इस योग में किए गए सभी तरह के कार्य अवश्य ही सफल होते हैं। कन्याओं के पूजन के बाद उन्हें दक्षिणा, चुनरी, उपहार आदि देकर पैर छूकर आर्शीवाद प्राप्त कर उन्हें विदा करना चाहिए। दुर्गा पूजा पंडालों में अष्टमी तिथि की समाप्ति के 24 मिनट और नवमी तिथि की शुरुआत के 24 मिनट समय के संधिकाल में संधि पूजा की जाती है।
इसलिए खास है नवमी-अष्टमी का मिलन
आचार्य अरुण कुमार मिश्रा ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि चंड और मुंड असुरों का वध करने के लिए संधिकाल में मां चामुंडा प्रकट हुईं थीं। संधि पूजा में मां को 108 कमल के पुष्प और केले के पत्तों से विशेष पूजा किया जाता है और शस्त्र पूजन भी होता है। दशमी तिथि को दुर्गा पूजा का विर्सजन किया जाता है। आश्विन शुक्ल दशमी को विजयदशमी और दशहरा पर्व के रूप में मनाया जाता है जोकि एक अबूझ मुहुर्त है। इस दिन किया गया कोई भी कार्य अवश्य सफल होता है।