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मंद‍िरों में अर्प‍ित फूल बढ़ाएंगे स‍िर की शोभा-चर्म रोग से भी म‍िलेगी मुक्‍त‍ि, एनबीआरआइ ने बनाया खास सिंदूर

एनबीआरआइ के विज्ञानियों ने मंदिर में चढ़ाए गए फूलों का किया सदुपयोग। पाउडर के साथ लिक्विड भी उपलब्ध बाजार में लाने की चल रही तैयारी। सि‍ंथेटिक सि‍ंदूर में लेड टेट्रा आक्साइड समेत कुछ अन्य भारी धातु के मिश्रण से त्वचा संबंधी बीमारियां होती हैं।

By Anurag GuptaEdited By: Updated: Mon, 07 Mar 2022 09:55 PM (IST)
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राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआइ) के विज्ञानियों ने हर्बल पाउडर और लिक्विड सि‍ंदूर बनाने की तकनीक विकसित की।
लखनऊ, [रामांशी मिश्रा]। हानिकारक रसायन मिश्रित सिंदूर के कारण होने वाले चर्म रोगों से अब महिलाओं को छुटकारा मिल सकेगा। जल्द ही आयुर्वेदिक सिंदूर से वे अपनी मांग सजा सकेंगी। पीले और मैरून गेंदा व गुड़हल के फूलों से बना यह सि‍ंदूर पाउडर के साथ लिक्विड (तरल) भी होगा। इसे बनाने के लिए मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों का उपयोग किया गया है, इसलिए बाजार में इसकी कीमत भी कम होगी।

यह सिंदूर बनाया है वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) की प्रयोगशाला राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआइ) के विज्ञानियों ने। एनबीआरआइ के वरिष्ठ प्रधान विज्ञानी डा. महेश पाल कहते हैं कि आम तौर पर सि‍ंदूर बिक्सा ओरिलेना (सि‍ंदूर) के पौधे से बनाया जाता है, लेकिन वह सि‍ंदूर को चटख रंग नहीं दे पाता है। सि‍ंथेटिक सि‍ंदूर में लेड टेट्रा आक्साइड समेत कुछ अन्य भारी धातु का मिश्रण होता है। इससे स्त्रियों में त्वचा संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। बाल सफेद हो जाते हैं और झडऩे लगते हैं। यहां तक कि त्वचा भी सफेद हो जाती है।

विभिन्न मंदिरों से गेंदा और गुड़हल के फूलों से रंग निकाल कर हर्बल पाउडर और लिक्विड सि‍ंदूर बनाने की तकनीक विकसित करने में हमने सफलता पाई है। यह सि‍ंदूर आर्गेनिक है। इसमें कोई भी भारी धातु नहीं मिलाई गई है। यह त्वचा में एलर्जी और अन्य इंफेक्शन से बचाएगा। लगभग एक किलो फूल से आधा किलो तक सि‍ंदूर का पाउडर बनाया जा सकता है।

कुछ महिलाओं के समूह की मदद से भी हर्बल सि‍ंदूर तैयार करवाया जाएगा, ताकि उन्हें स्वावलंबी बनाने में सहायता मिले। इसे बाजार में लाने के लिए कई कंपनियों से बातचीत चल रही है। - डा. एसके तिवारी, मुख्य विज्ञानी, एनबीआरआइ

मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले पुष्पों का निस्तारण और आसान बनाए जाने की दिशा में यह प्रयास और सार्थक साबित होगा।   -डा. एसके बारिक, निदेशक, एनबीआरआइ

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