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यादव-मुस्लिम ही नहीं… ब्राह्मण और क्षत्रियों ने भी दिलाई सपा को जीत, मुलायम से एक कदम आगे निकले अखिलेश यादव

समाजवादी पार्टी के संस्थापक व पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव कुश्ती के अखाड़े के बाद राजनीति में भी अपने विरोधियों को ‘चरखा दांव’ से चित करने के माहिर थे। अब उनके बेटे व सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने राजनीतिक विरोधियों को ‘पीडीए’ (पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक) दांव से चित कर दिया है। गैर यादव ओबीसी व दलित प्रत्याशियों में उन्होंने जो विश्वास जताया उसका लाभ भी उन्हें मिला।

By Jagran News Edited By: Shivam Yadav Updated: Thu, 06 Jun 2024 03:02 AM (IST)
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यादव ही नहीं… कुर्मी, मुस्लिम के अलावा इन जातियों ने दिलाई सपा को जीत।
शोभित श्रीवास्तव, लखनऊ। समाजवादी पार्टी के संस्थापक व पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव कुश्ती के अखाड़े के बाद राजनीति में भी अपने विरोधियों को ‘चरखा दांव’ से चित करने के माहिर थे। अब उनके बेटे व सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने राजनीतिक विरोधियों को ‘पीडीए’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) दांव से चित कर दिया है। 

गैर यादव ओबीसी व दलित प्रत्याशियों में उन्होंने जो विश्वास जताया उसका लाभ भी उन्हें मिला। सपा को गैर ओबीसी प्रत्याशियों में 67 प्रतिशत व दलित प्रत्याशियों में 47 प्रतिशत की सफलता मिली है।

प्रदेश की राजनीति में एक समय ऐसा भी था जब सपा का ‘एमवाई’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण बेहद कामयाब हुआ था, किंतु आज बदली हुई राजनीति में केवल इन दोनों के सहारे सफलता नहीं पाई जा सकती है।

गैर यादव पिछड़ी जातियों पर फोकस

सपा अध्यक्ष ने इसे अच्छी तरह समझते हुए अपने मजबूत वोट बैंक में दूसरे जातियों के मत जोड़ने के लिए ‘पीडीए’ रणनीति पर काम किया। गैर यादव पिछड़ी जातियों व दलित मतदाताओं को फोकस करते हुए उन्होंने इस बार जो टिकट दिए उसका लाभ उन्हें चुनाव परिणाम में सर्वाधिक सीटें पाकर मिल गया है। अखिलेश ने 'सोशल इंजीनियरिंग' के जरिए राजनीति में जातियों का नया गुलदस्ता तैयार किया है।

सामान्य सीट पर दलित कार्ड

आईएनडीआईए के तहत प्रदेश में सपा इस बार 62 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। सपा ने इस बार सर्वाधिक 17 टिकट दलितों को दिए। खास बात यह है कि मेरठ व फैजाबाद सामान्य सीट पर भी सपा ने दलित कार्ड खेला। 

नौ बार के विधायक अवधेश प्रसाद ने भाजपा के लल्लू सिंह को फैजाबाद सीट से हराकर भाजपा को बड़ा झटका दिया है। इन 17 में से आठ सीटों पर सपा को सफलता मिली है। इनमें राबर्ट्सगंज, मछलीशहर, फैजाबाद, लालगंज, कौशांबी, जालौन, इटावा व मोहनलालगंज लोकसभा सीट हैं।

कुर्मी व पटेल को 10 टिकट

सपा ने पिछड़ी जातियों में सबसे अधिक 10 टिकट कुर्मी व पटेल बिरादरी को दिए थे। इसमें से सात सीटों पर साइकिल सरपट दौड़ी है। इनमें अंबेडकरनगर, श्रावस्ती, बस्ती, फतेहपुर, बांदा, प्रतापगढ़ व खीरी लोकसभा सीट शामिल हैं।

सपा ने अपने मजबूत वोट बैंक 'एमवाई' के प्रत्याशियों में पांच यादव व चार मुस्लिम को टिकट दिए थे। यादव बिरादरी के टिकट अखिलेश ने अपने ही परिवार को दिए थे, इसमें सभी ने सफलता प्राप्त कर ली है। 

फिरोजाबाद, मैनपुरी, बदायूं, कन्नौज व आजमगढ़ में सैफई परिवार के सदस्य जीते हैं। मुस्लिम प्रत्याशियों ने कैराना, रामपुर, संभल व गाजीपुर लोकसभा सीट में सफलता प्राप्त की है।

क्षत्रिय और जाट भी जीते

गैर यादव पिछड़ी जातियों में इस बार सपा ने निषाद व बिंद समाज के तीन प्रत्याशियों को भी टिकट दिया था। इसमें से दो लोकसभा सीट संतकबीरनगर व सुलतानपुर में पार्टी को सफलता मिल गई है। 

जाट बिरादरी के तीन प्रत्याशियों को टिकट दिए गए थे, इसमें से दो मुजफ्फरनगर व मुरादाबाद में जीत मिली है। क्षत्रिय समाज के दो प्रत्याशियों को टिकट पार्टी ने दिया था दोनों ने ही अपनी-अपनी सीटें जीत ली हैं। इनमें चंदौली व धौरहरा लोकसभा सीट शामिल है।

सपा के जातिवार प्रत्याशियों का प्रदर्शन

जाति कुल टिकट जीते जीत का प्रतिशत
दलित 17 8 47 प्रतिशत
कुर्मी/पटेल 10 7 70 प्रतिशत
कुशवाहा/शाक्य/सैनी 6 3 50 प्रतिशत
यादव 5 5 100 प्रतिशत
मुस्लिम 4 4 100 प्रतिशत
निषाद व बिंद 3 2 67 प्रतिशत
जाट 3 2 67 प्रतिशत
ब्राह्मण 4 1 25 प्रतिशत
क्षत्रिय 2 2 100 प्रतिशत
भूमिहार 1 1 100 प्रतिशत
राजभर 1 1 100 प्रतिशत
लोधी 1 1 100 प्रतिशत
राजभर व लोधी समाज के एक-एक प्रत्याशी को सपा ने लड़ाया, दोनों ने ही अपनी-अपनी सीटें जीत ली हैं। सलेमपुर सीट पर राजभर व हमीपुर सीट पर लोधी समाज के नेता ने साइकिल दौड़ा दी है। सपा ने चार ब्राह्मण व एक भूमिहार समाज के नेता को टिकट दिया था, इसमें से एक ब्राह्मण व एक भूमिहार अपनी-अपनी सीट जीतने में सफल हुए हैं। 

ब्राह्मण बलिया में व भूमिहार घोसी में चुनाव जीते हैं। इसके अलावा पार्टी ने गुर्जर, पाल, वैश्य समाज के एक-एक प्रत्याशी को टिकट दिया किंतु वे अपनी सीट नहीं जीत पाए हैं। दो टिकट अन्य जातियों को भी दिए गए थे, लेकिन वे भी जीत का स्वाद नहीं चख पाए।

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