Pitru Paksha 2021: आज से शुरू हो रहा पितृपक्ष, जानिए पितरों के पूजन की खास विधि और तिथियां
अपनों को याद कर उन्हें तिलांजलि देने पितृपतक्ष 20 सितंबर से शुरू हो रहा है। पहले दिन पूर्णिमा को दिवंगत हुए पूर्वजों का तर्पण किया जाता है। श्राद्ध पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक 16 दिनों तक चलता है।
By Vikas MishraEdited By: Updated: Mon, 20 Sep 2021 10:26 AM (IST)
लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। अपनों को याद कर उन्हें तिलांजलि देने पितृ पक्ष 20 सितंबर से शुरू हो रहा है। पहले दिन पूर्णिमा को दिवंगत हुए पूर्वजों का तर्पण किया जाता है। श्राद्ध पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक 16 दिनों तक चलता है।
पितृ पक्ष 20 सितंबर दिन सोमवार को भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू होगा। पितृपक्ष का समापन छह अक्टूबर बुधवार को आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को होगा। आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि 16 दिनों की अवधि के दौरान सभी पूर्वज अपने परिजनों को आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी पर आते हैं। उन्हें प्रसन्न करने के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंड दान किया जाता है। पितृपक्ष में किए गए दान-धर्म के कार्यों से पूर्वजों की आत्मा को तो शांति मिलती है, साथ ही पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि पितृपक्ष के पखवारे में पितृ किसी भी रूप में आपके घर में आते हैं। किसी भी पशु या इंसान का अनादर नहीं किया जाना चाहिए। बल्कि, आपके दरवाजे पर आने वाले किसी भी प्राणि को भोजन दिया जाना चाहिए और आदर सत्कार करना चाहिए। जिस तिथि को पितरों की मृत्यु हुई हो. उस तिथि को उनके नाम से श्रद्धा और यथाशक्ति के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन करवाएं। आचार्य कृष्ण कुमार मिश्रा ने बताया कि पितरों के नाम पर भोजन गाय, कौओं और कुत्तों को भी खिलाएं. जिन पितरों की पुण्यतिथि परिजनों को ज्ञात नहीं हो तो उनका श्राद्ध, दान, एवं तर्पण पितृविसर्जनी अमावस्या के दिन करते हैं।
तिथिवार तर्पण जरूरी, 26 को नहीं होगा श्राद्धः आचार्य आनंद दुबे ने बताया कि पितृपक्ष में पूर्वजों के दिवंगत होने की तिथि के अनुरूप ही तर्पण दान पुण्य करना चाहिए। तिलांजलि के साथ ही पिंडदान करके पूर्वजों के नाम पर श्रद्धानुसार दान का विशेष फल मिलता है। तिथिवार श्रद्धा इस प्रकार हैं। इस बार 26 सितंबर को श्राद्ध का दिन नहीं है। ऐसे में इस दिन श्राद्ध करने से बचना चाहिए।
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- 21 सितंबर प्रतिपदा श्राद्ध
- 22 सितंबर द्वितीया श्राद्ध
- 23 सितंबर तृतीया श्राद्ध
- 24 सितंबर तृतीया श्राद्ध
- 25 सितंबर पंचमी श्राद्ध
- 27 सितंबर षष्ठी श्राद्ध
- 28 सितंबर सप्तमी श्राद्ध
- 29 सितंबर अष्टमी श्राद्ध
- 30 सितंबर नवमी श्राद्ध
- एक अक्टूबर दशमी श्राद्ध
- दो अक्टूबर एकादशी श्राद्ध
- तीन अक्टूबर द्वादशी श्राद्ध
- चार अक्टूबर त्रयोदशी श्राद्ध
- पांच अक्टूबर चतुर्दशी श्राद्ध
- छह अक्टूबर अमावस्या श्राद्ध