Local to vocal: भटि्टयों में गुम हुई चिनहट पॉटरी की खनक, अब फिर से जगी उम्मीद
लखनऊ के चिनहट पाॅटरी उद्योग को शुरू करने की जगी उम्मीद पुराने कारोबारियों ने शुरू कर दिया दूसरा काम।
कुछ लोग अभी भी करते हैं काम
कारोबारी क्रॉक्ररी अमिताभ बनर्जी ने बताया कि तीन दशक से अधिक समय से बंद चल रहे पॉटरी उद्याेग के बीच कुछ लाेग अभी भी काम करके इस विरासत को संजोए हुए हैं। सरकारी नीतियों और युवा पीढ़ी में इस उद्योग को लेकर कम होती गई दिलचस्पी इसकी बदहाली का मुख्य कारण है। मेरे बच्चे कुछ काम करते हैं, लेकिन प्रोत्साहन न मिलने से ज्यादा दिन तक नहीं कर पाएंगे। प्रजापति समुदाय को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए वर्षों पहले शुरू की गई पहल अब गुमनामी के अंधेरे में खो गई है। सरकार ने लोकल ब्रांड को बढ़ाने की बात तो कही है, लेकिन ऐसे परंपरागत उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए ठाेस रणनीति भी बनानी होगी।
विदेश जाता था टेराकोटा
टेरा कोटा कारोबारी लालता प्रसाद प्रजापति ने बताया कि चीनी मिट्टी के बर्तनों के साथ यहां बने टेराकोटा के बर्तन विदेश तक जाते थे। मेरे चाचा जी की बनी अंचार दानी की मुंबई, कोलकाता, मद्रास तक जाता थी। मांंग के अनुरूप आपूर्ति देने में नंबर लगता था। 1985 से चीनी मिट्टी के साथ ही टेराकोटा का काम कर रहे हैं, लेकिन अब इसे आगे बढ़ाने में दिक्कत हो रही है। मिट्टी मिल नहीं रही है और युवा पीढ़ी परंपरागत काम को छोड़ दूसरे काम में दिलचस्पी ले रही है। सरकार की अोर से कुछ नया किया जाता है तो इस उद्याेग को न केवल सहारा मिलेगा बल्कि इस पुरानी विरासत को बचाया भी जा सकेगा।
जो काम करना चाहें मिलेगी मदद
जिला उद्योग केंद्र के उपायुक्त मनोज चौरसिया ने बताया कि चिनहट के पॉटरी उद्योग से संबंधित जो भी काम करना वहां के लोग चाहेंगे, उसमे पूरी मदद की जाएगी। जिला उद्योग केंद्र के माध्यम से तकनीक के साथ ही इस परंपरागत काम को आगे बढ़ाने में अनुदान की भी व्यवस्था है। जो भी काम करना चाहता है, विभाग से सपर्क कर सकता है। ऐसे कारोबारी की मदद की जाएगी। सरकार की मंशा के अनुरूप हर संभव मदद के लिए विभाग तैयार है।