Move to Jagran APP

Local to vocal: भटि्टयों में गुम हुई चिनहट पॉटरी की खनक, अब फिर से जगी उम्मीद

लखनऊ के चिनहट पाॅटरी उद्योग को शुरू करने की जगी उम्मीद पुराने कारोबारियों ने शुरू कर दिया दूसरा काम।

By Anurag GuptaEdited By: Updated: Sat, 06 Jun 2020 02:59 PM (IST)
Hero Image
Local to vocal: भटि्टयों में गुम हुई चिनहट पॉटरी की खनक, अब फिर से जगी उम्मीद
लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। अवध क्रांति की गवाह रहे चिनहट की पहचान कभी चीनी मिट्टी से बनने वाले बर्तनों के नाम से होती थी। प्रजापति समुदाय के लाेगों की तादात ज्यादा होने और मुख्य कारोबार होने के चलते सरकार की पहल पर यहां 1958 में चिनहट पॉटरी के नाम से यूनिट की स्थापना की गई। एक दर्जन यूनिटों में चीनी मिट़्टी का काम होता था। पकाने के लिए प्रदूषमुक्त चिमनियों वाली बनी भटि्टयाेें से निकलने वाले धुंए से समृद्धि संदेश फैलता था। बर्तनों की खनक से गुंजायमान रहने वाले इस चिनहट पॉटरी की बदहाल भटि्टयों के बीच गुम हो गई है। देश विदेश में अपने बर्तनों से लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाले इस उद्योग को लेकर एक बार फिर उम्मीद जगी है। काम छोड़कर दूसरे काम को कर रहे पुराने लोगों में भी इस पुरानी परंपरा को जीवंत करने का जज्बा अभी भी बरकरार है। किसी जमाने में यहां 100 से 150 करोड़ रुपये का कारोबार होता था लेकिन अब सिमट कर दो से तीन लाख रुपये ही रह गया है।

कुछ लोग अभी भी करते हैं काम

कारोबारी क्रॉक्ररी अमिताभ बनर्जी ने बताया कि तीन दशक से अधिक समय से बंद चल रहे पॉटरी उद्याेग के बीच कुछ लाेग अभी भी काम करके इस विरासत को संजोए हुए हैं। सरकारी नीतियों और युवा पीढ़ी में इस उद्योग को लेकर कम होती गई दिलचस्पी इसकी बदहाली का मुख्य कारण है। मेरे बच्चे कुछ काम करते हैं, लेकिन प्रोत्साहन न मिलने से ज्यादा दिन तक नहीं कर पाएंगे। प्रजापति समुदाय को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए वर्षों पहले शुरू की गई पहल अब गुमनामी के अंधेरे में खो गई है। सरकार ने लोकल ब्रांड को बढ़ाने की बात तो कही है, लेकिन ऐसे परंपरागत उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए ठाेस रणनीति भी बनानी होगी।

विदेश जाता था टेराकोटा

टेरा कोटा कारोबारी लालता प्रसाद प्रजापति ने बताया कि चीनी मिट्टी के बर्तनों के साथ यहां बने टेराकोटा के बर्तन विदेश तक जाते थे। मेरे चाचा जी की बनी अंचार दानी की मुंबई, कोलकाता, मद्रास तक जाता थी। मांंग के अनुरूप आपूर्ति देने में नंबर लगता था। 1985 से चीनी मिट्टी के साथ ही टेराकोटा का काम कर रहे हैं, लेकिन अब इसे आगे बढ़ाने में दिक्कत हो रही है। मिट्टी मिल नहीं रही है और युवा पीढ़ी परंपरागत काम को छोड़ दूसरे काम में दिलचस्पी ले रही है। सरकार की अोर से कुछ नया किया जाता है तो इस उद्याेग को न केवल सहारा मिलेगा बल्कि इस पुरानी विरासत को बचाया भी जा सकेगा।

जो काम करना चाहें मिलेगी मदद

जिला उद्योग केंद्र के उपायुक्त मनोज चौरसिया ने बताया कि चिनहट के पॉटरी उद्योग से संबंधित जो भी काम करना वहां के लोग चाहेंगे, उसमे पूरी मदद की जाएगी। जिला उद्योग केंद्र के माध्यम से तकनीक के साथ ही इस परंपरागत काम को आगे बढ़ाने में अनुदान की भी व्यवस्था है। जो भी काम करना चाहता है, विभाग से सपर्क कर सकता है। ऐसे कारोबारी की मदद की जाएगी। सरकार की मंशा के अनुरूप हर संभव मदद के लिए विभाग तैयार है।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।