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रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया... पिता की मर्जी के खिलाफ राजनीति में रखा कदम, जानिए उनका राजनीत‍िक सफर

लोकतंत्र में राजशाही स्‍टाइल का प्रत‍िन‍िध‍ित्‍व करने वाले रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया भले ही आज यूपी की राजनीत‍ि का एक प्रमुख चेहरा बन गए हों लेक‍िन उनका राजनीत‍िक सफर इतना आसान नहीं रहा है। उनके प‍िता नहीं चाहते थे क‍ि वह राजनीत‍ि में आएं।

By Umesh TiwariEdited By: Updated: Thu, 27 Jan 2022 12:15 PM (IST)
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पूर्व कैबिनेट मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया।

लखनऊ, जेएनएन। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में हर बार की तरह अबकी भी दबंग नेताओं की कमी नहीं है। अपने क्षेत्र में दबदबा रखने वाले ये नेता चुनावों को भी प्रभावित करते रहे हैं। ऐसा ही एक नाम है पूर्व कैबिनेट मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया का। राजा भैया अवध के भदरी रियासत से संबंध रखते हैं। उनके पिता उदय प्रताप सिंह भदरी के महाराज हैं। राजनीति में आने वाले राजा भैया अपने परिवार के पहले सदस्य हैं। उन्होंने 25 वर्ष की आयु में ही अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। 

लोकतंत्र में राजशाही स्‍टाइल का प्रत‍िन‍िध‍ित्‍व करने वाले राजा भैया भले ही आज उत्तर प्रदेश की राजनीत‍ि का एक प्रमुख चेहरा बन गए हों, लेक‍िन उनका राजनीत‍िक सफर इतना आसान नहीं रहा है। उनके प‍िता नहीं चाहते थे क‍ि वह राजनीत‍ि में आएं, लेक‍िन तकदीर को कुछ और ही मंजूर था। जब राजा भैया ने अपने पि‍ता से चुनाव लड़ने की इजाजत मांगी तो उनके प‍िता ने गुरुजी से अनुमत‍ि लेने को कहा। फिर वहीं से शुरू हुआ राजा भैया का अजेय राजनीत‍िक सफर। आज वह उत्तर प्रदेश की राजनीत‍ि का प्रमुख चेहरा बन गए हैं।

अब बना ली अपनी पार्टी : रघुराज प्रताप सिंह का जन्म 31 अक्टूबर, 1969 को प्रतापगढ़ की भदरी रियासत में हुआ था। उनके पिता का नाम उदय प्रताप सिंह और माता का नाम मंजुल राजे हैं। उनकी मां भी एक राजसी परिवार से आती हैं। राजा भैया को तूफान सिंह के नाम से भी जाना जाता है। 1993 के विधानसभा चुनाव से राजा भैया ने राजनीति में कदम रखा था और तभी से वह लगातार विधायक हैं। अब उन्होंने अपनी पार्टी बना ली है। राजा भैया ने 30 नवंबर 2018 को जनसत्ता दल लोकतांत्रिक नाम की सियासी पार्टी का गठन क‍िया। उनकी पार्टी को चुनाव आयोग ने 'आरी' चुनाव चिन्ह आवंटित किया है।

6 चुनावों में जीत दर्ज बने अजेय : प्रतापगढ़ जिले की कुंडा व‍िधानसभा सीट से राजा भैया अजेय बने हुए हैं। उन्‍होंने 1993 में कुंडा व‍िधानसभा से पहला चुनाव लड़ा था और तब से 2017 तक हुए वह सभी 6 चुनावों में जीत दर्ज करते आ रहे हैं। 1993 के चुनाव में राजा भैया ने 67287 वोटों के अंतर से सपा के ताहिर हसन को हराया। तो 1996 में 80141 वोटों के अंतर से बीजेपी के शिवनारायण मिश्र को मात दी। 2002 में 81670 मतों के अंतर से सपा के मो शमी को हराया। 2007 के चुनाव में 53128 वोटों के फासले से बसपा के शिव प्रकाश सेनानी को श‍िकस्‍त दी। 2012 में भी उन्होंने बसपा के शिव प्रकाश सेनानी को ही हराया और जीत का अंतर 88255 मतों का रहा। 2017 के चुनाव में सबसे अध‍िक 103646 मतों के अंतर से भाजपा के जानकी शरण को हराया।

न‍िर्दलीय व‍िधायक के बावजूद बनते रहे मंत्री : उत्तर प्रदेश की व‍िधानसभा तक का सफर भले ही राजा भैया न‍िर्दलीय तय करते आ रहे हों, लेक‍िन वह सरकार में मंत्री बनते रहे हैं। राजा भैया पहली बार भाजपा की कल्याण सिंह सरकार में मंत्री रहे। मुलायम सिंह यादव सरकार में भी उन्‍होंने कैबिनेट मंत्रालय संभाला। जब राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री थे, तब भी राजा भैया कैबिनेट मंत्री रहे। वहीं, अखिलेश सरकार में भी राजा भैया मंत्री रहे। 

विवादों के रहा पुराना नाता : मुलायम सिंह यादव ने रघुराज प्रताप सिंह का विरोध किया था। उन पर दंगों में शामिल होने के आरोप थे। मायावती की बसपा सरकार सत्ता में आई तो राजा भैया पर पोटा कानून लगा दिया गया। इसमें उन्हें जेल भेज दिया गया था। 2003 में ही मायावती सरकार ने भदरी में उनके पिता के महल और उनकी बेंती कोठी पर भी छापेमारी करवाई थी। 2012 में सपा की सरकार बनी तो राजा भैया को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया, लेकिन उसी वक्त प्रतापगढ़ के कुंडा में एक हाई प्रोफाइल मर्डर हुआ। डिप्टी एसपी जिया उल-हक की हत्या की गई थी। इस मामले में राजा भैया का नाम आया, जिसके चलते उन्हें अखिलेश मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था। इस मामले की सीबीआई जांच में राजा भैया को क्लिनचिट मिल गई थी।

तालाब से जुड़े खौफनाक किस्से मशहूर : रघुराज प्रताप सिंह के निवास को बेंती कोठी कहा जाता है। उसके पीछे 600 एकड़ का तालाब है। उसी तालाब से कई तरह के खौफनाक किस्से जुड़े हैं। बताया जाता था कि राजा भैया ने उस तालाब में घड़ियाल पाल रखे थे और वो अपने दुश्मनों को मारकर उसी तालाब में फेंक देते थे। हालांकि, राजा भैया इस बात को लोगों का मानसिक दिवालियापन बताते हैं।

प‍िता चाहते थे अनपढ़ रहे उनका बेटा : राजा भैया ने एक साक्षात्कार में बताया था कि उनके पिता उनकी एजुकेशन के खिलाफ थे। बकौल राजा भैया उनके पिता को लगता था कि वह पढ़ लिख लेंगे तो बुजदिल बन जाएंगे। तब उनकी मां ने पिता की मर्जी के खिलाफ चोरी से उनका दाखिला इलाहाबाद में करवा दिया। उन्‍होंने इलाहाबाद के महाप्रभु बाल विद्यालय से अपनी प्रारंभ‍ि‍क श‍िक्षा ली। इसके बाद उन्‍होंने कर्नल गंज इंटर कालेज इलाहाबाद में दाख‍िला ल‍िया। वहां से स्कूलिंग के बाद राजा भैया लखनऊ चले गए। लखनऊ विश्वविद्यालय से उन्होंने ग्रेजुएशन किया। बीए करने के बाद उन्होंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से ही वकालत की भी पढ़ाई की।

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