Tribute to Maulana Kalbe Sadiq: शहर, कौम और इंसानियत ने खोई एक अनमोल रूह
मौलाना कल्बे सादिक...एक ऐसा शख्स जो अपनी विद्वता नम्रता और वैचारिक क्रांति के बूते ऐसी शख्सियत बना जिसके लिए कोई सरहद नहीं थी। बुधवार को उनका जिस्म सिपुर्दे खाक जरूर हुआ लेकिन इस शहर का जर्रा-जर्रा उनकी तालीम और वैचारिक क्रांति का कर्जदार रहेगा।
By Rafiya NazEdited By: Updated: Thu, 26 Nov 2020 12:38 PM (IST)
लखनऊ [अम्बिका वाजपेयी]। मौलाना कल्बे सादिक...एक ऐसा शख्स जो अपनी विद्वता, नम्रता और वैचारिक क्रांति के बूते ऐसी शख्सियत बना, जिसके लिए कोई सरहद नहीं थी। बुधवार को उनका जिस्म सिपुर्दे खाक जरूर हुआ लेकिन, इस शहर का जर्रा-जर्रा उनकी तालीम और वैचारिक क्रांति का कर्जदार रहेगा। उनकी रूह जिस्म से भले ही आजाद हो गई हो, लेकिन यादें चाहने वालों के जेहन में हमेशा कैद रहेंगी। उनके जनाजे में शामिल हजारों गमजदा चेहरे यह बयां करने को काफी थे कि शहर, कौम और इंसानियत ने कितनी कीमती रूह खो दी है।
तालीम से ही दूर होती हैं तकलीफें
धर्मगुरुओं और राजनीति के गठजोड़ को दरकिनार करके अपना अलग मयार कायम करने वाले डॉ. सादिक का मानना था कि कौम के हर मर्ज का इलाज तालीम है। इसी मकसद को पूरा करने के लिए उन्होंने 1984 में तौहीदुल मुस्लेमीन ट्रस्ट की स्थापना की थी। यूनिटी कॉलेज और एरा कॉलेज की स्थापना करने के साथ ही तमाम जरूरतमंद बच्चों को तालीम हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करके मदद की। बचपन में छिपकर हिंदी सीखने वाले डॉ. सादिक का सबसे ज्यादा जोर तालीम हासिल करने पर था। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुसलमानों के लिए 'एक हाथ में कम्प्यूटर और एक हाथ में कुरानÓ का नारा दिया था तो सबसे पहले उन्होंने इस बात का स्वागत किया था।
पाकिस्तान को कहा था पापिस्तानकौम और मजहब के नाम पर पाकिस्तान के लिए साफ्ट कॉर्नर रखने वालों के मुंह पर सबसे बड़ा तमाचा डॉ. सादिक ने तब मारा था, जब उन्होंने पाकिस्तान को पापिस्तान कहा। उन्होंने कहा था कि बेगुनाहों की हत्या से बड़ा कोई पाप नहीं हो सकता। इसलिए पाकिस्तान को पापिस्तान कहना चाहिए। बच्चों, बुजुर्गों और बेगुनाहों का खून बहाने वाला पाक तो हो ही नहीं सकता।
जनसंख्या नियोजन पर दिया जोरआडंबर, पाखंड और दकियानूसी बातों को दरकिनार करके हमेशा भीड़ से अलग रहने वाले डॉ. सादिक ने ज्वलंत मुद्दों पर हमेशा बेबाक राय रखी। परिवार नियोजन जैसे मुद्दे पर जब धर्मगुरुओं ने चुप्पी साधी तब डॉ. सादिक ने खुलकर इसकी वकालत की। 'बच्चे अल्लाह की देन हैंÓ वाली विचारधारा को खारिज करते हुए उन्होंने तमाम परिवारों को इसके लिए प्रोत्साहित किया। अंगदान, रक्तदान और देहदान जैसी चीजों को प्रोत्साहित करने के लिए वह हर साल कैंप लगाते थे। डॉ. सादिक अलग ही मिट्टी के बने थे, इसीलिए समाज की नाराजगी के डर से जिस मुद्दे पर तमाम नेता चुप्पी साध लेते थे, उस पर वो मुखर होकर अपनी बात रखते थे। उन्होंने कहा था कि मुसलमानों को आरक्षण का सहारा नहीं चाहिए।
मुसलमान पैदा होना और मुसलमान होने में फर्क हैदुनिया को अपनी तकरीरों के मुरीद बनाने वाले डॉ. सादिक ने कहा था कि मुसलमान पैदा होना और मुसलमान होने में फर्क है। सच्चा मुसलमान हमेशा दूसरे का बोझ उठाता है, कभी बोझ नहीं बनता। सिर्फ नमाज, टोपी और दाढ़ी के बूते कोई मुसलमान कहलाने का हक हासिल नहीं कर लेता। अपने ईमान में झांककर देखिए आपको पता चल जाएगा कि आप मुसलमान हैं कि नहीं।
बताया था बगावत और मुखालफत का फर्कडॉ. सादिक ने नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हुई ङ्क्षहसा पर नाराजगी जताई थी। बीमार होने के बावजूद वह इस कानून के विरोध में चल रहे प्रदर्शन में शामिल होने पहुंचे थे और लोकतांत्रिक रूप से अपनी बात रखने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि विरोध के नाम ङ्क्षहसा करना जायज नहीं। बगावत और मुखालफत का अंतर आप सबको समझना चाहिए।
धार्मिक एकता का मंच सूनासिर्फ शिया-सुन्नी ही नहीं, उन्होंने हर मजहब के लोगों को एक मंच पर लाकर खड़ा किया। कार्यक्रम किसी भी धर्म का हो, वो हमेशा ध्वजवाहक रहते। चेहरे से हर वक्त मुतमईन नजर आने वाले डॉ. सादिक आने पीढ़ी को शिक्षित और तकनीकी रूप से सक्षम बनाने के लिए अंदर से कितना फिक्रमंद रहते थे, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं।
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